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इंटरव्यू: "भारत के पास अपार संभावनाएं, लेकिन हमें अपनी क्षमताओं का एहसास नहीं": वरिष्ठ अर्थशास्त्री जयती घोष

1947 से 2022 तक भारत ने एक लंबा सफर तय किया है। जब हमें आजादी मिली, तब भारत की जीडीपी महज 2.7 लाख करोड़ थी और अब...
इंटरव्यू:

1947 से 2022 तक भारत ने एक लंबा सफर तय किया है। जब हमें आजादी मिली, तब भारत की जीडीपी महज 2.7 लाख करोड़ थी और अब भारत फ्रांस को पछाड़कर दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।  2022 में, भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर की है और हम 2027 के अंत तक 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने की योजना के साथ आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन इतने शानदार आंकड़े होने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था अस्थिर है, महंगाई बढ़ रही है, चालू खाता घाटा बढ़ रहा है और रोजगार के अवसर लगभग कम हो गए है। यह समझने के लिए कि भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए क्या करने की आवश्यकता है, आउटलुक के राजीव नयन चतुर्वेदी ने वेटरन डेवेलपमेंट इकोनॉमिस्ट और मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, अमेरिका में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर, जयति घोष से खास बात की।

संपादित अंश:-

दुनिया भर में मुद्रास्फीति अपने उच्चतम स्तर है, ब्याज दरें बढ़ रही हैं। इस समस्या को आप कैसे देखती हैं?

यदि हम विश्व स्तर पर मुद्रास्फीति का कारण देखते हैं, तो पाते हैं कि वे भोजन और कीमतों में वृद्धि से प्रेरित थे।  सभी ने यूक्रेन युद्ध को इसका कारण बताया, लेकिन इसका असर उतना नहीं रहा है। बड़ी तेल, खाद्य और फार्मा कंपनियों द्वारा मुनाफाखोरी और कमोडिटी बाजार में वित्तीय अटकलें कीमतों में वृद्धि का एक प्रमुख कारण थीं। लेकिन अब, वैश्विक बाजार में, खाद्य और ईंधन काफी हद तक युद्ध-पूर्व के स्तर पर वापस आ गए हैं, क्योंकि अटकलें ऐसी ही होती हैं। इसलिए मैं कहूँगी कि केंद्रीय बैंकों की ओर से एक एक्सट्रीम प्रतिक्रिया हुई, जिसमें उन्होंने ब्याज दरों में वृद्धि और आवश्यकता से अधिक मौद्रिक नीति को कड़ा किया नतीजतन, इसका प्रभाव आर्थिक गतिविधियों पर पड़ेगा।

दुनिया भर में सभी आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच, आईएमएफ कह रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से बढ़ रही है और वैश्विक परिदृश्य में एक 'ब्राइटस्पॉट' बनी हुई है। आप इस तर्क को कैसे देखती हैं?

यदि आप उन संकेतकों को देखें जो मायने रखते हैं जैसे रोजगार या एवरेज वर्कर्स की वास्तविक मजदूरी तो हम बिल्कुल भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। यह विचार कि सकल घरेलू उत्पाद बहुत मजबूती से बढ़ रहा है, जनसंख्या के एक बहुत छोटे हिस्से पर आधारित है। हम बहुत असमान (अनइक्वल) विकास कर रहे हैं और हमें यह भी नहीं पता कि विकास के आंकड़ों पर कितना भरोसा करना है। बड़े पैमाने पर मांग गिर रही है और इसका मतलब है कि आपका घरेलू निवेश नहीं बढ़ेगा। हम निवेश में वृद्धि नहीं देख रहे हैं और अगर हम सार्थक तरीके से बढ़ना चाहते हैं तो यह आवश्यक है।

अगर हम भारतीय अर्थव्यवस्था को देखें तो महंगाई, चालू खाता घाटा और ब्याज दरें बढ़ रही हैं। सरकार इससे निपटने की कोशिश कर रही है लेकिन कुछ भी सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। आपके अनुसार भारतीय आर्थिक नीति कहाँ विफल हो रही है और भारत को क्या करने की आवश्यकता है?

यह सरकार अर्थव्यवस्था की बहुत खराब प्रबंधक रही है।  अनावश्यक विमुद्रीकरण हो या जीएसटी हो, ये पूरी तरह विफल साबित हुआ है। सरकार को तुरंत सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च बढ़ाना चाहिए था, इसका मतलब निजी बीमा कंपनियों को पैसा देना नहीं है क्योंकि इससे न तो उन्हें फायदा होता है जो चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, ना जिन्हें चिकित्सा सेवाएं मिल रही हैं। हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य में विस्तार और आवश्यक सामाजिक सुरक्षा में निवेश की आवश्यकता है क्योंकि हमारे पास न्यूट्रिशनल इंडिकेटर्स बहुत बेकार है। इसलिए हमें सबसे पहले मुख्य समस्याओं पर ध्यान देना होगा न कि दूसरे कारणों पर जो इनकी उपज हैं।

देश आजादी की 75वी सालगिरह मना रहा है। आप भारतीय अर्थव्यवस्था के अब तक के विकास से कितने संतुष्ट हैं?

हमारे पास अपार संभावनाएं हैं और मुझे अब भी उम्मीद है, कि भारत का भविष्य बेहतर होगा। लेकिन सच्चाई यह है कि हमें अपनी क्षमता का बिल्कुल भी एहसास नहीं है। अब तक हमें कुछ सफलताएँ मिली हैं, जैसे हमारे जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई, शिशु मृत्यु दर में कमी आई और हम अपनी अर्थव्यवस्था में भी विविधता लाएं हैं, विशेषकर 50, 60 और 70 के दशक में। लेकिन पिछले 30 साल निराशाजनक ही रहे हैं। हमने बहुत से वादे किए, लेकिन कुछ खास नहीं किया। हमने रोजगार में वृद्धि नहीं देखी, महिलाओं के रोजगार में गिरावट आई और युवाओं की बेरोजगारी बढ़ी, तो मेरे लिए यह स्वतंत्रता दिवस मीठा से से ज्यादा कड़वा ही था।

भारत ने 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। आपके अनुसार उस लक्ष्य को हासिल करने में कितना समय लग सकता है और भारत को क्या करने की जरूरत है?

जाने क्यों सरकार सकल घरेलू उत्पाद की कुल संख्या को देख रही है? मान लीजिए यह 5 ट्रिलियन डॉलर का हो जाता है और वह सारा पैसा कुछ लोगों के हाथ में चला जाता है तो क्या यह देश के बाकी हिस्सों के लिए अच्छा है? यह वादा पहली बार 2017 में किया गया था, जब पीएम ने कहा था कि यह 2022 तक हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। अब, यह 2022 है, हमारी अर्थव्यवस्था मात्र 3 ट्रिलियन की है। अगर किसी समय हम 5 ट्रिलियन के आंकड़ा को छू भी लेते हैं तो कौन सी बड़ी बात है? हम यह सुनिश्चित क्यों नहीं करते हैं कि इस तारीख से देश में कोई भी भूखा नहीं सोएगा और इलाज से कोई वंचित नहीं रहेगा। यदि हम अपने सभी मानव विकास लक्ष्यों को प्राप्त कर लेते हैं तो ही हम वास्तविक अर्थों में विकास कर पाएंगे।

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