एयर चीफ एस.पी.त्यागी से गहन बातचीत हो रही है। उन्होंने भी कई चीजें मानी हैं, आगे क्या होना चाहिए
मेरा मानना है कि जरूरत से ज्यादा पूर्व एयर चीफ पर फोकस करना गलत है। उन्हें ही क्यों सबसे बड़े अपराधी के तौर पर पेश किया जा रहा है, जबकि कई लोगों के नाम सामने आ रहे हैं। यह भी सामने आ चुका है कि क्यूआर –बदला गया, अब यह पता लगाना चाहिए कि वह किसके कहने पर बदला। यह काम त्यागी तो नहीं कर सकते।
तो क्या त्यागी से पूछताछ नहीं होनी चाहिए
सिर्फ त्यागी से ही नहीं, सबसे पूछताछ होनी चाहिए। एक पर ही सारा दोष मढ़ने से बड़े खिलाड़ी बच जाए जाएंगे। हमारा सिस्टम एक दो के ऊपर दोष मढ़कर खुश होता है। मुझे लगता है कि उस हाथ से लिखे कागज, जिसे मीडिया दिखा रहा है, उसमें जो नाम लिखे हैं, जैसे डिप्टी चीफ, परिवार के सदस्यों, त्यागी आदि सबकी जांच होनी चाहिए।
तत्कालीन डीजी (एक्वीजिशन-खरीद) और वर्तमान कैग शशिकांत शर्मा का भी नाम आ रहा है, आपका क्या कहना है
मेरा यह निजी तौर पर मानना है कि नैतिकता के आधार पर अगर मैं उनकी जगह होता तो इस्तीफा दे देता। अब यह तो उनके ऊपर है कि वह क्या करते हैं और कैसे करते हैं। अगुस्टा खरीद में डीजी (एक्वीजिशन) की भूमिका बहुत अहम रही है। यह तथ्य किसी से छिपा हुआ नहीं है। इसीलिए मैं कहना चाहता हूं कि जांच का दायरा बड़ा होना चाहिए।
-देश में हथियारों की खरीद में दलाली का खुलासा विदेश में हुआ। कुछ समय हंगामा हुआ और फिर से वही प्रक्रिया शुरू हो जाती है, क्यों
कोई कड़ी कार्रवाई नहीं होती। किसी के खिलाफ ऐसी संख्त कार्रवाई नहीं की गई कि दूसरे को डर लगे। हमने अपने सिस्टम भी ठीक नहीं किए। मैं जानना चाहता हूं कि अगुस्टा मामले में सीबीआई से आखिर जानकारी ईडी को क्यों नहीं दी। अब आप ही सोचिए कि अगर हथियारों के दलालों को यह पता लग जाता है कि डीजी एक्वीजिशन की मेज पर कौन सी फाइल कहां रखी है और उसमें किसने क्या लिखा है, तो किस पैमाने पर उनकी घुसपैठ है। स्थिति बहुत खतरनाक है। मैं जब वहां था, तब से कह रहा हूं कि कड़े कदम उठाने होंगे।
आपने टैटरा ट्रक में रिश्वत की बात कही थी
उस मुद्दे पर मैं बोल चुका हूं। मैंने वह बात इसलिए सार्वजनिक की थी ताकि लोगों को यह अहसास हो कि किस पैमाने पर रिश्वत और दलाली का बोलबाला हो गया है। दलाली के इस पूरे तंत्र का पर्दाफाश जरूरी है। इसमें बहुत लोगों के फंसने का अंदेशा होता है, इसलिए सघन कार्रवाई नहीं होती। मैं बोलती हूं वरना बाकी लोग तो चुप ही रहना पसंद करते हैं।
आज भारत में काम करने वाली विदेशी हथियार कंपनियां बड़ी संख्या में सेना के पूर्व अधिकारियों को अपने यहां रख रही हैं। उनका कहना है कि इससे उन्हें डीलिंग में आसानी होती है। आपकी क्या राय है
यह सही है कि कई मामलों में विशेष जानकारी की जरूरत होती है। वह जानकारी सेना के पूर्व अधिकारी देने में मददगार हो सकते हैं। जब तक वह सलाहकार की भूमिका में रहते हैं, तब तक तो ठीक है, लेकिन जैसे ही वह कंपनी के लिए आगे बढ़ाने लग जाते हैं, फाइलों को आगे बढ़ाने में अपने पुराने संपर्क इस्तेमाल करने लग जाते है तब वह दलाली हो जाती है। ऐसा हो रहा है। यह खतरनाक है। इस पर काबू पाए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता।
अगुस्टा मामले में अब कार्रवाई की उम्मीद है आपको
बिल्कुल। होनी ही चाहिए।