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फिलहाल हथियार नहीं उठाएंगे नेपाली माओवादी

नेपाल में नया गणतांत्रिक संविधान बनाने की प्रक्रिया राजनीतिक पार्टियों के दांव-पेंच में उलझी पड़ी है। मुख्य तौर पर नेपाली कांग्रेस, कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और माओवादियों के बीच नये संविधान को लेकर कुछ गहरी असहमतियां हैं। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और यूनीफाइड कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) के नेता बाबू राम भट्टाराई ने भारत यात्रा के दौरान एक बातचीत में अपनी पार्टी का पक्ष आउटलुक के सामने रखा।
फिलहाल हथियार नहीं उठाएंगे नेपाली माओवादी

आपकी पार्टी नेपाल में किस तरह का संविधान बनाना चाहती है

हम एक इन्क्लूसिव डेमोक्रेटिक संविधान बनाना चाहते हैं। जिसमें उत्पीड़ित जातियों और समाज के कमजोर तबकों के लिए सम्नानजनक जगह हो। हम एक प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष राज्य के पक्ष में हैं।

हम नेपाल की राष्ट्रीय विविधता को देखते हुए उसे एक संघीय राज्य बनाना चाहते हैं। जिसमें जनजातियों को उनकी पहचान मिल पाये। हम समानुपातिक प्रतिनिधित्व वाला गणराज्य चाहते हैं। हम फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिस्टम के खिलाफ हैं। क्योंकि इस सिस्टम में वंचित समुदाय को प्रतिनिधत्व नहीं मिल पाता है। समानुपातिक प्रतिनिधत्व मिलने पर हर तबके के लोगों को समान प्रतिनिधत्व मिल पायेगा।   

संविधान बनाने में मुख्य दिक्कतें क्या हैं

कांग्रेस और एमाले प्रतिगामी राजनीतिक ताकतें हैं इसलिए वह जनजातीय पहचान वाले संघीय राज्य और आनुपातिक प्रतिनिधित्व को नहीं मान रही हैं। एमाले तो अपने नाम में मार्क्सवाद-लेनिनवाद सिर्फ ब्रांड वैल्यू के तौर पर इस्तेमाल करती है। वह कम्यूनिस्ट तो छोड़िये कांग्रेस से भी ज्यादा पिछड़ी मानसिकता की पार्टी है। जब माओवादी पार्टी जनयुद्ध से बाहर आयी थी तो पार्टियों के बीच समझौते के बाद ही अंतरिम संविधान लागू किया गया था। उसकी धारा 138 में लिखा है कि नेपाल में समानुपातिक लोकतंत्र लागू किया जायेगा और जनजातीयों की पहचान को ध्यान में रखकर संघीय राज्य बनाया जायेगा।    

माओवादी पार्टी का पसंदीदा संविधान बनाने में दक्षिणपंथी भारत सरकार की क्या भूमिका है

नेपाल का संविधान तो वहां की जनता ही तय करेगी। अगर नेपाल राजनीतिक उथल-पुथल से गुजरता है और वहां पर हिंसा होती है तो उसका असर भारत पर भी पड़ेगा। नेपाल में शांति भारत के भी हित में है। इसलिए वहां शांति स्थापित करने में भारत की भी एक भूमिका है। भले ही यहां पर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में हो। नेपाल को लेकर भारत की विदेश नीति में कोई फर्क नहीं आया है।

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क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान प्रतिक्रांतिकारी ताकतें पीछे चली जाती है। लेकिन मौका देखते ही वह फिर सामने आ जाती हैं। नेपाल में भी जनयुद्ध के दौरान सोयी पड़ी यह ताकतें फिर सामने आ गयीं और अब गणतांत्रिक संविधान बनाने के रास्ते में अडंगा डाल रही हैं।

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हमने कांग्रेस, बीजेपी, आप और सीपीएम सबसे मुलाकात की। नेपाल की शांति में सबकी भूमिका है। हम सोचते हैं कि भारतीय कम्यूनिस्ट यहां की स्थितियों के हिसाब से काम करते हैं। हम दुनियाभर के उत्पीडित जनता के साथ हैं।

नेपाल का संविधान कैसे बनेगा? मांगें पूरी नहीं हुई तो आपकी पार्टी फिर हथियार उठायेगी?

फिलहाल हम हथियार नहीं उठाएंगे। हम जन आंदोलन के माध्यम से बाकी पार्टियों को मजबूर कर देंगे कि वह हमारी सही बातों को मान लें। हमारा अपनी मांगों से पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता है क्यों कि हम समझते हैं कि वह जनयुद्ध की उपलब्धि हैं।   

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