भारत में बढ़ रही आतंकी वारदातों ने देश के भीतर ही नहीं बल्कि सरहद पार भी चिंता की लकीरें खींची हैं। खासतौर से पंजाब के गुरुदासपुर में हुए आतंकी हमले के बाद से खालिस्तान की मांग को लेकर उग्र हिंसक दौर में झुलस चुके पंजाब को फिर से कहीं किसी तरह के हिंसक दौर से न झुलसना पड़े, ये सदाएं लंदन से भी आ रही हैं। उस तबके से जिसकी जड़े पंजाब में रही हैं। पंजाब से बड़ी संख्या में लोग इंग्लैंड में बसे हैं और वे भीतर तक गुरुदास पुर के हमले से हिले हुए हैं। इस बारे में आउटलुक की ब्यूरो चीफ भाषा सिंह से बहुत बोल्ड अंदाज में बातचीत की देवेंद्र प्रसाद ने, जो बिटिश ऑर्गनाइजेशन फॉर पीपुल ऑफ एशियन ओरिजिन (बोपा) के महानिदेशक और कास्ट वॉच, यूके के भी महानिदेशक हैं। बोपा भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश मूल के ब्रिटिश नागरिकों का संगठन है। देवेंद्र स्पष्ट शब्दों में किसी भी तरह की आतंकवादी गतिविधि को मानवता के खिलाफ कार्रवाई मानते हैं, लेकिन साथ ही इस बात पर भी जोर देते हैं कि अल्पसंख्यकों में पनप रहे आक्रोश की असल वजहों को जानकर, उन्हें दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
लंदन में आप बोपा संगठन के जरिए किस तरह की गतिविधियां करते हैं ?
हम तमाम नागरिकों में बराबरी के हिमायती है। किसी भी तरह के भेदभाव, वैमन्सय के हम खिलाफ है। भेदभाव जाति आधारित हो या धर्म आधारित यह मानवता के खिलाफ है। इसके खिलाफ हम लोगों को गोलबंद करते हैं। अभी पिछले दिनों हमने पाकिस्तान के पेशावर के स्कूल में आतंकी हमले का शिकार हुए परिवार की मदद की। एक पिता अपने एक बेटे को इस हमले में खो चुका है और दूसरे का इलाज कराने के लिए लंदन आया हुआ है। हम उसकी मदद करने में जुटे हैं। हमारा मानना है आथंकवाद का कोई मजहब नहीं होता, कोई इलाका नहीं होता।
पंजाब के गुरुदास पुर में हुए आतंकी हमले से लंदन में सिखों की मनःस्थिति पर क्या फर्क पड़ेगा?
दुनिया भर में मानवता आतंकी हमलों से त्रस्त है। लोग सोचते है कि आतंकवाद की जमीन बढ़ रही है, जबकि मुझे लगता है कि नई पीढ़ी इससे बिल्कुल प्रभावित नहीं होती।
कैसे?
पंजाब से आए परिवारों की जो नई पीढ़ी है, उसने 1984 का काला दौर खुद नहीं देखा। उसके जख्म उसकी रूह पर वैसे नहीं है, जैसे उससे पहले की पीढ़ी पर थे। लिहाजा वह 1984 के सवाल पर वैसे उत्तेजित नहीं होगा, जैसे उससे बड़ी पीढ़ी के लोग। वैसे भी जो ब्रिटेन या अमेरिका में रह रहा है, उसकी प्राथमिक चिंता उस देश में अपने जीवन को संवारने की है।
पंजाब पर हमले की क्या वजह हो सकती है?
यह तो हमला करने वालों को पता होगा। लेकिन एक बात में जरूर कहना चाहूंगा कि मैं सभी तरह के आंतकवादी हमलों-गतिविधियों का कट्टर विरोधी हूं, फिर भी अल्पसंख्यकों के भीतर पनप रहे आक्रोश को समझने की जरूरत है। मेरा मानना है कि जब भारत में दक्षिणपंथी सत्ता आती है तो दलित, सिख और मुसलमान खुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। उनके ऊपर हमले तेज हो जाते हैं। हाल में भारत में दलितों और मुसलमानों पर हमले तेज हुए हैं, गुरुद्वारों के आगे जयश्री राम के नारे लगाने की फोटो सोशल मीडिया में वायरल होती रहती है।
इसकी क्या प्रतिक्रिया होती है ?
अंदर आक्रोश पनपता है। भारत में भाजपा की सरकार आने के बाद से बिट्रेन तक में हिंदू संगठनों का रंग-ढंग बहुत आक्रामक हो गया है। इससे परेशानी होती है।
क्या खालिस्तान आंदोलन की वापसी हो सकती है?
ब्रिटेन में तो खालिस्तान के मुद्दे की हवा निकल गई है। इसे लेकर यहां कोई गोलबंदी संभव नहीं दिखती।