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मातृभाषा में पढ़ाई जरूरी - भैरप्पा

कर्नाटक के हासन जिले में रहने वाले एस एल भैरप्पा ने भारतीय संस्कृति पर और पुराणों पर बहुत काम किया है। पर्व और आवरण जैसे चर्चित उपन्यास के लेखक भैरप्पा चाहते हैं कि भारतीय संस्कृति को जीवित रखना है तो आज ही कदम उठाने होंगे।
मातृभाषा में पढ़ाई जरूरी - भैरप्पा

क्या वेद, उपनिषद, पुराण से नई पीढ़ी को जोड़ा जा सकता है?

क्यों नहीं जोड़ा जा सकता। यदि पुरानी पीढ़ी इसे खारिज कर देगी तो नई पीढ़ी को इससे कोई मतलब नहीं होगा। यह सिर्फ विश्वास-अविश्वास की बात नहीं है। इसे धरोहर की तरह समझना होगा।

क्या इसके लिए शैक्षणिक बदलाव की जरूरत है?

पूरी तरह नहीं। इसके लिए भाषा में बदलाव की जरूरत है। मातृभाषा में पढ़ाना शुरू कीजिए आधी परेशानी हल हो जाएंगी। किसी भाषा को सीखना बुरा नहीं है, लेकिन बच्चे जितनी जल्दी मातृभाषा से सीखते हैं उसका दूसरा कोई विकल्प नहीं।

आपने संस्कृति पर बहुत काम किया है...?

इसे सिर्फ संस्कृति कह कर इसे बांध दिया जाता है। मैंने नई पीढ़ी के लिए वह लिखा जो हमारे लिए गौरवशाली है। आखिर उन्हें क्यों नहीं मालूम होना चाहिए कि क्या बीत चुका। जैसे सभी लोग संस्कृत को भूली हुई और पुरानी भाषा कह कर खारिज कर देते हैं। मतलब हम सब मिल कर एक भाषा को ही खत्म करने की तैयारी कर रहे हैं।

तो इसके लिए क्या किया जाए?

अब वक्त आ गया है कि हम भाषा पर नहीं भाषा के लिए काम करें। अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई कोलोनियल माइंडसेट का परिणाम है। इसके असर को कम करना चाहिए। 

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