1. आपको कब अहसास हुआ कि लिखना चाहिए?
अमीश त्रिपाठी: मैंने 12-13 साल पहले लिखना शुरू किया था। शिव ट्रायोलॉजी की शुरुआत दार्शनिक मान्यता के तौर पर हुई थी जो बाद में रोमांचक और अद्भुत होता चला गया, जिसके मूल में दर्शन था।
2. क्या आपकी नई किताब ‘साइन ऑफ ईक्ष्वकु’ भी किसी पुस्तक श्रृंखला का हिस्सा होने जा रही है?
अमीश त्रिपाठी: जी हां, यह ‘रामचंद्र’ सीरीज की पहली पुस्तक है।
3. इस किताब में सीता की अग्नीपरिक्षा का भी कुछ संदर्भ है। आपने इसकी किस प्रकार व्याख्या की है?
अमीश त्रिपाठी: इसके लिए आपको मेरी किताब पढ़ने का इंतजार करना होगा।
4. भारत में पौराणिक कथाएं संवेदनशील विषय हैं?
अमीश त्रिपाठी: भारत में पौराणिक कथाओं की व्याख्या और मिथकों के आधुनिकीकरण की परंपरा सदियों पुरानी है। और सच पूछिए तो ज्यादातर विवाद लेखक खुद ही प्रचार पाने के लिए खड़े करते हैं।
5. आपने धार्मिक कथाओं के पुनर्लेखन को कैसे चुना?
अमीश त्रिपाठी: मैं तो लेखक भी नहीं बनना चाहता था। लेखन के क्षेत्र में मेरा करियर भगवान शिव का आशीर्वाद है।
6. पौराणिक कथाओं पर आधारित लेखन से पहले अपने अनुसंधान के बारे में हमें कुछ बताईये।
अमीश त्रिपाठी: शास्त्रों और पौराणिक कथाओं के बारे में मैंने अपने परिवार से बहुत कुछ सीखा है। मेरे दादा बनारस में एक पंडित थे, और मेरे माता-पिता दोनों ही धार्मिक थे। इसके अलावा मैं पढ़ता भी बहुत हूं।
7. क्या शिव ट्रायोलॉजी ने आपको शिवभक्त बना दिया?
अमीश त्रिपाठी: हां, इस कहानी के जरिये मैंने आस्था को फिर से समझा है।
8. अब तक आप अद्भुत-रोमांचक विधा में लिखते रहे हैं। और किस किस तरह के लेखन के साथ आप प्रयोग करना चाहेंगे?
अमीश त्रिपाठी: मेरे अधिकतर आइडिया पौराणिक, अद्भुत-रोमांचक और दार्शनिक विधा में हैं। अगले 20-25 साल तक मुझे व्यस्त रखने के लिए मेरे पास पर्याप्त आइडिया हैं।
9. भारतीय साहित्य में आपके पसंदीदा लेखक कौन हैं?
अमीश त्रिपाठी: मैंने सभी मशहूर लेखकों को पढ़ा है। हाल के वर्षों में डा. अम्बेडकर और सैम हैरिस को पढ़ना मुझे अच्छा लगा। एम. टी. वासुदेवन नायर द्वारा लिखित भीमा को पढ़ने में बहुत मजा अा रहा है।
10. क्या आपको ऐसा कभी लगा कि वापस बैंकिंग क्षेत्र में लौट जाना चाहिए?
अमीश त्रिपाठी: नहीं, लेकिन मेरी अगली किताब फ्लॉप रही तो शायद रोजी-रोटी के लिए मुझे वापस जाने पर मजबूर होना पड़ सकता है।