बचपन में भावनात्मक या शारीरिक शोषण या प्रताड़ना झेल चुके लोगों में मनोवैज्ञानिक परेशानियां, किसी तरह की लत या लोगों से बातचीत में परेशानियों की संभावनाएं आम लोगों के मुकाबले ज्यादा रहती है। इसके कारण व्यक्ति नौकरी और करिअर दोनों ही जगह अपने रिश्तों के बीच जूझता रहता है। बचपन के खराब अनुभवों में भावनात्मक, शारीरिक और दैहिक शोषण के अलावा परिवार में होने वाले विवाद, माता-पिता के बीच झगड़े, माता-पिता का बच्चों पर ध्यान न देना और माता-पिता का तलाक हो जाना भी शामिल है।
यदि बचपन में प्यार और सहयोग का वातावरण न हो तो बचपन में ही बच्चों को अवसाद घेर लेता है जो उनके सामान्य हार्मोन संतुलन को बिगाड़ना शुरू कर देता है। शरीर में होने वाले यह परिवर्तन लंबे समय तक शरीर में मौजूद रहते हैं। बाद में अवसाद के यही रेशे गहरे हो कर बड़े होने तक बने रहते हैं।
चिकित्सकों का मानना है कि पारंपरिक रूप से जब भी किसी का स्वास्थ्य खराब होता है तो खराब खानपान, दवाओं के इस्तेमाल या खराब जीवनशैली की वजह से स्वास्थ्य खराब है। लेकिन कई बार कारण कुछ और ही निकलते हैं। कई अध्ययन से साबित हुआ है कि डायबिटीज, हाइपरटेंशन और दिल की बीमारियों के बढ़ने का कारणों की तह में जाओ तो पता चला कि ऐसी दिक्कतें उन लोगों में ज्यादा होती है जिन लोगों ने बचपन में प्रताड़ना झेली होती है।
चिकित्कसकों का मानना है कि तनाव से दिल कमजोर होता है। ज्यादातर माता पिता चेतावनी के निशान को नहीं समझते हैं। क्योंकि जानकारी का अभाव रहता है। इसी वजह से बच्चों में तनाव बढ़ता जाता है और उम्र बढ़ने पर गंभीर समस्या में तब्दील हो जाता है। और यदि एक बार बच्चे की स्थिति खराब हो गई तो संभालना मुश्किल होता है। बच्चे अवसाद में ओवर रिएक्ट करते हैं। गुस्सैल हो जाते हैं। गुस्से में पलट कर जवाब देने की प्रवृत्ति से बड़े होने पर उनकी आर्टरी में थक्का जमने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए जरूरी है कि माता-पिता शुरुआती लक्षणों को पहचानें और परामर्श लें। बच्चों के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन पर गौर करें। बच्चों को सकारात्मक माहौल दिया जाए ताकि वह बड़े होकर बेहतर और स्वस्थ्य वयस्क बन सकें।