विशेषज्ञों ने कोरोना के संबंध में नई स्टडी का खुलासा किया है, जिसमें पता चला है कि कोरोना वायरस का असर उम्र के हिसाब से हो रहा है। वहीं कम उम्र के लोगों खासतौर पर बच्चों में कोरोना के गंभीर लक्षण कम दिखाई दे रहे हैं और बुजुर्ग लोगों या ज्यादा उम्र के लोगों को करोना के गंभीर संक्रमण से जूझना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों के लिए परेशानी ये है कि इसके असली वजह और अंतर को नहीं खोज पा रहे हैं।
साइंस एडवांसेस जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक एंजियटेनसिन-कन्वर्टिंग एंजाइम 2 (एसीई2) के प्रोटीन और एमआरएनए मिलकर सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंट्रोम कोरोनावायरस 2 (सोर्स-कोव-2) को रिसीव करते हैं। ये बढ़ती उम्र के साथ बढ़ते जाते हैं। इंसानों में एसीई2 उच्च श्रेणी का हेटरोजेनेटी दिखाता है। इसके बाद कोरोना से संक्रमित कोशिकाओं में एंकोप्लासमिक रेटिकुलम स्ट्रेस महसूस होता है, जिसकी वजह से इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है। कोरोना अपना संक्रमण फैलाना शुरु कर देता है।
जबकि, युवा लोगों के फेफड़ों में पहले से मौजूद एपिथेलियल कोशिकाएं ऐसी प्रक्रिया होने से रोकती है। जिसके कारण कम उम्र को लोगों को खासकर बच्चों में कोरोना वायरस के गंभीर संक्रमण कम देखने को मिलते हैं। बता दें कि कोरोना के कारण 15.10 करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हुए 30 लाख से अधिक लोगों की पूरी दुनिया में मौत हुई है।
कोरोना संक्रमण का सबसे ज्यादा असर पूरी दुनिया में बच्चों पर देखने मिला है। हालाकि नवजात बच्चों को सबसे अधिक समय तक आईसीयू में रखने की नौबत आई है, लेकिन बड़े बच्चों को इतनी परेशानी नहीं हुई। वैज्ञानिकों को आश्चर्य हो रहा है कि वयस्क लोगों के शरीर में इम्यूनिटी बढ़ने के बजाय कम कैसे हो रही है।
न्यूयॉर्क सिटी हेल्थ और सीडीसी के आंकड़ों के मुताबिक जितने भी लोग अस्पतालों में भर्ती हुए हैं उनमें से अधिकतर ज्यादा उम्र के लोग थे। बच्चों में कोरोना के गंभीर मामले कम सामने आए, लेकिन नवजात बच्चों के लिए ये काफी खतरनाक साबित हुआ। इसकी मृत्यु दर बढ़े बच्चों की तुलना में अधिक थी।