आइवीएफ ट्रीटमेंट के वक्त एम्ब्रियो ट्रांसफर यानी भ्रूण को गर्भाशय में रखना महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रक्रिया से एक मिथ जुड़ा हुआ है। वह यह कि यदि एम्ब्रियो ट्रांसफर के तुरंत बाद महिला आराम न करे तो भ्रूण के बाहर निकल कर गिरने का खतरा रहता है।
इलाज की इस प्रक्रिया से गुजर रहे दंपतियों को जानना जरूरी है कि ऐसा कुछ नहीं होता। इस प्रक्रिया से गुजरने से पहले दंपतियों की काउंसलिंग की जाती है लेकिन कुछ रूढ़ विश्वास को तोड़ना कठिन होता है। आइवीएफ को लेकर यह बड़ा भ्रम है जिसे दूर किया जाना जरूरी है।
सभी जोड़ों को इससे बाहर आने की जरूरत है और जब तक चिकित्सक न कहे तब तक सामान्य आराम से ज्यादा की जरूरत नहीं है. एम्ब्रियो ट्रांसफर के बाद महिला सामान्य ढंग से अपने काम कर सकती है। यहां तक की उसे अपनी दिनचर्या में बदलाव की भी जरूरत नहीं है। एम्ब्रियो ट्रांसफर के बाद सामान्य चलने-फिरने से गर्भाशय की ओर रक्त संचार बढ़ता है और यह भ्रूण के लिए फायदेमंद है। शारीरिक रूप से सक्रिय रहने पर तनाव कम होता है और चिंता या घबराहट से निजात मिलती है।
दंपतियों को इस बारे में जागरूक करना जरूरी है कि मानवीय शरीर बहुत एक्यूरेसी यानी सही तरीके से बना है। इसलिए जब आइवीएफ के बाद एम्ब्रियो ट्रांसफर किया जाता है तब यह बाहर नहीं आ सकता। ऐसा समझिए कि जैसे प्राकृतिक तरीके में भ्रूण बाहर आने का कोई खतरा नहीं रहता इसी प्रकार आइवीएफ प्रक्रिया में भी इसका कोई खतरा नहीं रहता।
आइवीएफ प्रक्रिया से गुजरने के दौरान इस बात का ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए कि महिला तनाव मुक्त रहे और आराम से अपने रोजमर्रा के काम करें। न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, आइवीएफ पर मार्च 2017 से दिसंबर 2017 तक 450 लोगों पर एक विश्लेषण किया गया। इसमें ज्यादातर मरीजों (औसतन 76 प्रतिशत) ने एम्ब्रियो ट्रांसफर के वक्त नियमित रूप से अपने काम किए थे। उन महिलाओं ने आराम करने वाली महिलाओं की तुलना में सफलता पूर्वक गर्भ धारण कर बच्चे को जन्म दिया। इन महिलाओं में वे महिलाएं भी थीं जिनका मिसकैरेज या हार्मोन असंतुलन की परेशानी रह चुकी थी।