ओटीटी माध्यम ने सबसे बड़ा काम यह किया है कि प्रतिभाशाली कलाकारों को मंच मिला है। अलग अलग रंग की कहानियों के लिए जगह मिली है। प्रयोग किए जा रहे हैं। इन्हीं प्रयोगों से प्रतिभावान कलाकारों को अवसर मिल रहे हैं। ऐसे ही एक प्रतिभावान अभिनेता हैं प्रगीत पण्डित। रंगमंच, विज्ञापन, टीवी शो से लेकर फिल्म तक की यात्रा करने वाले प्रगीत पण्डित ने अपनी यात्रा को अच्छे से महसूस किया है। उन्होंने धैर्य रखते हुए संघर्ष का साथ नहीं छोड़ा और आगे बढ़ते रहे। कुछ दिनों पहले प्रगीत डिज्नी हॉटस्टार के शो "बेड स्टोरीज" में नजर आए। प्रगीत पण्डित से उनके जीवन और अभिनय सफर के बारे में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।
साक्षात्कार से मुख्य अंश :
बेड स्टोरीज के बारे में कुछ बताइए?
बेड स्टोरीज डिज्नी हॉटस्टार का शो है। सूरज खन्ना शो के निर्माता हैं और अर्पिता पटनायक निर्देशक हैं। इसमें कुल 7 कहानियां हैं। इन कहानियों को अभिनेता संजय मिश्रा सूत्रधार की तरह सुना रहे हैं। मैंने इसकी कहानी "अहम या वहम" में मुख्य अभिनेता की भूमिका निभाई है। हर कहानी में एक संदेश निहित है। इसका प्रभाव दर्शक को सोचने पर मजबूर करता है।
आपका बचपन किस तरह के परिवेश में बीता ?
मेरा जन्म साधारण से मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। मेरे पिता रमेश पण्डित लेखक हैं और पिछले कई वर्षों से कवि सम्मेलनों में उनकी सक्रियता रही है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे कला, साहित्य से संपन्न परिवार में जन्म लेने का अवसर मिला। इस माहौल ने मुझ पर असर डाला और मेरे अंदर कलात्मक रुचि पैदा की।
नाटक और अभिनय की दुनिया में आना किस तरह से हुआ ?
मैं एक बार आगरा में पिताजी के साथ एक नाटक देखने गया। नाटक देखते हुए मुझे ऐसा लगा कि यही तो वह काम है, जिसे कर के मुझे खुशी मिलेगी। मगर इसके लिए अभ्यास और तैयारी जरूरी थी। मैंने पिताजी के सहयोग से इप्टा ज्वॉइन किया और खूब नाटक किए। इस दौरान दूरदर्शन के एक सीरियल में भी काम करने का अवसर मिला।जब मुझे लगा कि अपने अनुभव को विस्तार देना चाहिए तो मैं दिल्ली चला आया। दिल्ली में मैंने अरविंद गौड़ जी के साथ नाटक किए। नाटक करते हुए मेरी अभिनय की ट्रेनिंग भी हुई और एक मनुष्य के रुप में भी मैं परिपक्व होता चला गया।
जब आप अभिनय में रुचि ले रहे थे, उस वक़्त आपके परिवार वालों का क्या रवैया था ?
शूरुआत में सभी के घरवालों की तरह मेरे परिवार के लोग भी चाहते थे कि मैं साइंस, कॉमर्स लेकर परिपाटी वाली जिंदगी जियूं। लेकिन जब मैंने महसूस किया कि मैं अभिनय और रंगमंच में ही खुशी हासिल करता हूं तो मैंने परिवार के सामने अपनी बात रखी। यह मेरी खुशकिस्मती है कि परिवार ने मेरी बात को समझने की कोशिश की और मुझे हर मोड़ पर सहयोग किया। परिवार के साथ साथ मेरे मित्रों ने भी मेरा हमेशा साथ दिया।
अपने मुंबई के सफ़र के बारे में बताइये, मुंबई में काम करने का अनुभव कैसा रहा ?
कला की दुनिया में कदम रखने वाले हर कलाकार की यात्रा में मुंबई एक अहम पड़ाव होता है। यहां आपकी मेहनत का फल मिलता है और आपकी प्रतिभा की कद्र भी होती है। अभिनय, कला को समझने वाले लोग आपको मुंबई में मिल जाते हैं। मैं भी अपने सपनों को लेकर मुंबई आया। मैंने प्रयास शुरू किए। यह जरुर है कि सिनेमाई बैकग्राउंड न होने के कारण सफर लंबा और चुनौतीपूर्ण रहा। मगर इसी का अपना मजा है। मैंने तकरीबन 25 विज्ञापन फ़िल्में की, जिन्हें खूब पसंद किया गया। इसके अलावा मैंने टेलीविजन पर काम किया। कुमकुम भाग्य में मेरे काम को पसंद किया गया। मेरे पास थियेटर का अनुभव था। यह हमेशा काम आया। मैंने विज्ञापन फिल्मों और टीवी शो के बाद शॉर्ट फिल्म्स की। मेरी शॉर्ट फिल्मों को खूब सराहा गया। "कागपंथ" जैसी शॉर्ट फिल्म खूब लोकप्रिय हुई। मैंने फिल्म "मूसो" में अभिनेता यशपाल शर्मा के साथ मुख्य भूमिका निभाई। इस फिल्म को देश और विदेश के फिल्म फेस्टिवल्स में तारीफ और पुरस्कार मिले। मैं वह काम कर रहा हूं, जो मैं करना चाहता था। इसके लिए मुझे रोज प्रशंसा मिलती है। यह मेरे लिए सबसे बड़ा सुख है। मैं अपनी मुंबई की अभिनय यात्रा से खुश हूं और अच्छे से अच्छा काम करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।
कलाकार की ज़िंदगी में आम ज़िंदगी और कैरियर से अधिक संघर्ष है, इस संघर्ष को कैसे देखते हैं, किस तरह खुद को मजबूत रखते हैं ?
मैं संघर्ष को संघर्ष की तरह नहीं देखता। मैं इसे सफलता का मूल्य मानता हूं। सफलता एक कीमत पर आती है और वह कीमत होती है मेहनत, संघर्ष। संघर्ष से आप तैयार होते हैं विभिन्न परिस्थितियों के लिए। मेरा ऐसा मानना है कि कलाकार का काम और जीवन बहुत से उतार चढ़ाव से भरा हुआ है। यहां एक सेट पैटर्न नहीं है। इसलिए कलाकार के लिए विशेष तैयारी की जरूरत होती है। इसके अभाव में कलाकार ज्यादा लंबा सफर तय नहीं कर सकता। यानी संघर्ष आपको लंबी यात्रा का योद्धा बनाता है। यही सोच, यही विचार मुझे मजबूती प्रदान करता है।
आज सिनेमा की दुनिया में इंस्टाग्राम, टिक टॉक फैन फॉलोइंग को तरजीह दी जा रही है, आपका क्या मानना है ?
मेरा केवल इतना मानना है कि आप कहीं से भी आए हों, यदि कैमरे के सामने आप काम कर सकते हैं, आप डायलॉग बोल पाते हैं, आपके भाव व्यक्त हो पाते हैं, तभी आपको काम मिलेगा। यदि टिक टॉक, इंस्टाग्राम फॉलोइंग के आधार पर आपको बुलाया जाता है और आप कैमरे के आगे घबरा जाते हैं, आप परफॉर्म नहीं कर पाते तो यकीन मानिए बड़ी फैन फॉलोइंग के बावजूद आपको 4 दिन के बाद कोई अपने ऑफिस में खड़े होने नहीं देगा। हुनर है तो अवसर हैं।
जीवन में एक मोड़ पर आकर जब इंसान पीछे देखता है तो उसे लगता है कि ऐसा नहीं करता या ऐसा कर लेता तो बेहतर होता, कोई ऐसा अफ़सोस, मलाल ?
नहीं। मुझे बेहद खुशी है कि मैंने आज तक वही किया, जो मेरी आत्मा को शांति देता है। मैंने कभी भी दुनिया की परवाह कर के, समाज के दबाव में फैसले नहीं लिए। इसका असर यह हुआ कि मैं हमेशा हर हाल में प्रसन्न और संतुष्ट रहा। मुझे ऐसा लगता है कि अगर हम अपने मन की सुनें तो हम मलाल, गिल्ट से मुक्त हो जाएंगे। शोहरत, दौलत चाहे देर सबेर मिलेगी लेकिन सुकून, तृप्ति हमेशा रहेगी कि हमने वह चुना, जो हमें पसन्द था।
इधर बहस चल रही है कि साउथ इंडियन फ़िल्मों ने हिन्दी सिनेमा की कलई खोल दी है, उन्हें पीछे छोड़ दिया है, इस पर आपके क्या विचार हैं ?
यह सब भ्रम फैलाने की बातें हैं। अच्छी फिल्में हर जगह पसंद की जाती हैं। खराब फिल्में हर जगह नकार दी जाती हैं। ऐसा नहीं है कि हिंदी फिल्मों को पसंद नहीं किया जा रहा। अभी इस साल कई फिल्मों ने 100 करोड़ का कारोबार किया है। ऐसे ही साउथ में रिलीज़ हुई सैकड़ों फिल्मों को आप नहीं जानते हैं। आपको 4 से 5 पांच ही फिल्मों के नाम मालूम हैं, जो सफल हुई हैं। समय अच्छा और बुरा आता रहता है। यदि कॉन्टेंट अच्छा बनेगा तो दर्शक फिल्म देखेंगे, फिर वो चाहें किसी भी भाषा में हो।
जो युवा सिनेमाई जगत में काम करना चाहते हैं, उन्हें अपने अनुभव से क्या सलाह देना चाहेंगे ?
मैं यही कहना चाहता हूं कि अपनी यात्रा का आनंद लें। यात्रा में खूब पढें, सुनें और सीखें। यही आपके काम आएगा। सबकी अपनी यात्रा है। इसलिए किसी से तुलना न करें। ईर्ष्या भी न करें। मेहनत करते हैं, समय के साथ अपडेट रहें। समय आने पर आपको मौका जरुर मिलेगा। अगर आपकी तैयारी अच्छी होगी तो आप इस अवसर का लाभ उठा सकेंगे।