कुछ दिनों पहले तक जहरीली हवा को लेकर खूब खबरे बनी थीं। लेकिन अब जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंस (जीएफजेड) की एक रिपोर्ट कह रही है कि कृत्रिम रोशनी लोगों के अंतर कैंसर के खतरे को बढ़ा रही है। सोडियम लैंप की पीली रोशनी के बजाय दुधिया रोशनी वाली एलईडी लाइट्स इस नुकसान को और बढ़ा रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2012 से 2016 के बीच कृत्रिम रोशनी के क्षेत्र में 33 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसका मतलब है हर साल लगभग 7.4 प्रतिशत की दर से रात को जलने वाली लाइट्स में बढ़ोतरी हुई है।
अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि भारत में कृत्रिम रोशनी की वजह से परेशानियां बढ़ रही हैं। इसे लाइट पॉल्यूशन का नाम दिया गया है। इस वजह से इंसानों, पौधों और पशुओं पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। जीएफजेड ने आंकड़े इकट्ठे करने के लिए इंफ्रा रेड इमेजर रेडियोमीटर सूट (वीआईआरएस) का इस्तेमाल किया जिससे पता चला कि पृथ्वी की सतह पर कृत्रिम रोशनी के इस्तेमाल हर साल 2.2 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। चीन में रात में भी रोशनी का साम्राज्य 2.1 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।
हालांकि अभी इस रोशनी के लिए राष्ट्रीय या देश के स्तर पर कोई गाइडलाइन नहीं है। चिकित्सकों का कहना है कि मनुष्य की आंख 400 से 500 माइक्रॉन्स की रोशनी के साथ ठीक से सामंजस्य बिठा लेती है। जबकि आज के दौर में प्रचलित एलईडी लाइटें 500 माइक्रॉन्स से ऊपर की होती है। ये लाइटें, विज्ञापनों के होर्डिंग, सड़कों पर लगी लाइटें, मॉल आदि जगहों पर होती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि उच्च दाब वाली नारंगी सोडियम लैंप के बजाय ऊर्जा बचाने और कम खर्च वाली एलईडी ही आजकल सड़कों पर लगाई जा रही हैं। सरकारें भी इन्हीं लाइटों को बढ़ावा दे रही हैं। क्योंकि दुधिया रोशनी से रात दिन की तरह चमकदार हो जाती है।
इन चमकदार लाइट्स से मनुष्यों में कैंसर का खतरा बढ़ गया है। रात का अंधेरा अब बदल कर रोशन हो गया है। इससे नींद की कमी, चिड़चिड़ापन बढ़ता जा रहा है। अवसाद और मधुमेह के पीछे भी कृत्रिम रोशनी में लंबे समय रहना है। शरीर को एक वक्त के बाद पर्याप्त नींद की जरूरत होती है ताकि शरीर ऊर्जा संचित कर सके। इसके लिए अंधेरे की जरूरत होती है ताकि नींद गहरी हो और थकान दूर हो। लेकिन रात में भी चमकदार रोशनी में रहने की वजह से यह क्रम गड़बड़ा जाता है। इस रोशनी में रहने से त्वचा के कैंसर का खतरा भी बढ़ रहा है। जानवरों और पौधों में भी कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। अत्यधिक रोशनी से आंखों की रोशनी पर भी असर पड़ रहा है। चमचमाती लाइटें में लंबे समय से रहने के कारण आंखों की रोशनी पर भी असर पड़ रहा है।