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तेरह खण्डों में अशोक वाजपेयी रचनावली का लोकार्पण हिंदी साहित्य की एक यादगार घटना

यूँ तो हिंदी में रचनावलियाँ और ग्रंथावलियों के प्रकाशन का लम्बा इतिहास रहा है, लेकिन हिंदी की पहली...
तेरह खण्डों में अशोक वाजपेयी रचनावली का लोकार्पण हिंदी साहित्य की एक यादगार घटना

यूँ तो हिंदी में रचनावलियाँ और ग्रंथावलियों के प्रकाशन का लम्बा इतिहास रहा है, लेकिन हिंदी की पहली सव्यस्थित सुसम्पादित रचनावली मुक्तिबोध की रचनावाली ही थी। जिसका सम्पादन नेमिचन्द्र जैन ने किया।उसके बाद से हिंदी में रचनावलियों के प्रकाशन का तांता शुरू हो गया और आज हिंदी के लगभग हर महत्वपूर्ण लेखक की रचनावलियाँ छपकर सामने आ गयी। रामविलास शर्मा की सौ खण्डों में उनकी रचनावली आने वाली है। अभी हाल ही में सुप्रसिद्ध आलोचक कवि एवम कहानीकार नलिन विलोचन शर्मा की रचनावली सामने आई है जो नलिन जी के निधन के करीब 60 साल बाद आई है लेकिन कुछ लेखक ऐसे भी सौभाग्यवान होते हैं जिनकी रचनावली उनके जीवन काल में ही आ जाती है।

हिंदी के प्रख्यात कवि आलोचक और संस्कृतिकर्मी अशोक बाजपाई ऐसे ही लेखक हैं जिनकी रचनावली 24 मार्च को शाम छह बजे, मल्टीपरपज हॉल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लोकार्पित हो रही है। गौरतलब है कि यह रचनावली किसी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के हाथों लोकार्पित न होकर बल्कि हमारे समय के मशहूर समाजशास्त्री आशीष नंदी जानी मानी इतिहासकार रोमिला थापर प्रसिद्ब कवि चित्रकार गुलाम मोहम्मद शेख भाषाविद गणेश देवी और दार्शनिक रोमिन जहाँ बेगलू के कर कमलों द्वारा हो रही है। जब सत्तासीन लोगों या फिल्मी कलाकारों द्वारा किताबों के लोकार्पण का चलन बन गया हो ,विद्वानों द्वारा इसको लोकार्पित किया जाना सुखद एवं गरिमा पूर्ण है। यह हिंदी साहित्य एक अनोखी घटना होगी क्योंकि अब तक लेखकों के जीवनकाल में रचनावलियों के प्रकाशन की परंपरा नहीं रही है।

आमतौर पर लेखकों के निधन के उपरांत ही उनकी रचनावलियाँ छपी हैं। खुद अशोक जी के ससुर एवम तारसप्तक के कवि एवम नाट्य आलोचक नेमिचन्द्र जैन की रचनावली भी उनके निधन के दो दशक बाद आई। हालांकि इसके कुछ विरल अपवाद भी हैं। आजादी के बाद रचनावली छपवाने का पहला उपक्रम प्रख्यात समाजवादी लेखक एवं स्वतंत्रता सेनानी रामबृक्ष बेनीपुरी ने किया था और उसके दो खण्ड निकले थे लेकिन वह अपनी योजना को पूरा नहीं कर पाए।अलबत्ता उनकी जन्मशती के मौके पर सुरेश शर्मा के संपादन में बेनीपुरी रचनावली निकली। हिंदी में रचनावली निकलने का दूसरा उपक्रम बिहार सरकार ने किया जब हिंदी गद्य के निर्माता आचार्य शिवपूजन सहाय बीमार पड़ गए तो उनकी आर्थिक मदद के लिए 4 खण्डों में उनकी रचनाव ली निकली क्योंकि शिवपूजन जी ने राज्य सरकार से आर्थिक मदद लेने से मना कर दिया था।इसके बाद सत्तर के दशक में मुक्तिबोध रचनावली से हिंदी में रचनावलियाँ निकालने की परंपरा शुरू हुई और उसके बाद से अनगिनत रचनावलियाँ निकली क्योंकि सरकारी खरीद में प्रकाशकों को रचनावलियों से कमाई होने लगी।

लेकिन गिने चुने लेखकों की ही जीते जी रचनावलियाँ निकलीं।हिंदी के लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन की रचनवली भी उनके जीवन काल में प्रकाशित हुई थी और उसका लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था और समारोह की अध्यक्षता नामवर सिंह की थी।

दसेक साल पहले हिंदी के वरिष्ठ कवि रामदरश मिश्र की भी रचना वली छपी थी ।इस दृष्टि से देखा जाए तो अशोक जी की रचनावाली का आना हिंदी साहित्य में एक यादगार घटना की तरह है ।श्री बाजपेई 1966 से लेकर अब तक साहित्य संस्कृति के मोर्चे पर लगातार सक्रिय रहे हैं और अब तो वह अपने आप में एक संस्था बन चुके हैं ।आजादी के बाद गिने चुने लेखकों ने हिंदी साहित्य का नेतृत्व किया।अशोक जी उनमें से एक हैं और 82 वर्ष की उम्र में युवा लेखकों को तराशने में लगे हैं। अशोक बाजपेई वैचारिक आग्रहों और अपनी कुलीन सौन्दर्याभिरूचि की वजह से विवादों के घेरे में भी रहे हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उनकी सक्रियता और जन पक्षधरता के नए आयाम भी सामने आए हैं। उन्होंने पुरस्कार वापसी और असहिष्णुता के मुद्दे पर हिंदी के लेखक समाज का नेतृत्व किया काबिले तारीफ है और उससे लोगों को नई प्रेरणा मिली है।

अशोक जी की 13 खण्डों में 6 हज़ार पृष्ठों की इस रचनवली मे कविता आलोचना संस्मरण आत्मवृत्त पत्र डायरी और उनके स्तंभ आदि शामिल हैं। अशोक जी का पहला कविता संग्रह1966 में "शहर अब भी संभावना" प्रकाशित हुआ था तब उनकी उम्र 25 वर्ष की थी और उसका नामकरण नामवर सिंह ने किया था। दुर्ग में 1941 में जन्मे अशोक जी की इस रचनवली से उनके समग्र लेखन के मूल्यांकन की प्रक्रिया भी शुरू होगी और आसान भी होगी क्योंकि इससे उनका सारा साहित्य एक जगह लोगों को उपलब्ध हो सकेगा। दरअसल हम लोग किसी रचनाकार की सारी रचनाओं को पढ़े बगैर उसके बारे में एक छवि निर्माण कर लेते हैं और अक्सर वह छवि अधूरी या गलत होती है क्योंकि बिना सब कुछ पढ़े हम या तो सरलीकरण या अतिरंजना के शिकार हो जाते हैं और इस तरह हम लेखक की वास्तविक छवि को पेश नहीं कर पाते हैं।

यूं तो अशोक बाजपेई के 20 कविता संग्रह निकल चुके हैं और 15 से अधिक प्रतिनिधि काव्य संग्रह भीउनपर कई पत्रिकाओं के अंक भी निकल चुके हैं और उनपर संपादित पुस्तकें भी आ चुकी हैं। हिंदी समाज
उनके अवदान से पूरी तरह वाकिफ है लेकिन इस रचनवली के जरिये एक सम्पूर्ण अशोक वाजपेयी से साक्षात्कार होगा और आलोचक उनका समग्र मूल्यांकन कर सकेंगे। लेकिन यह भी सच है कि अक्सर रचनावलियाँ छप जाती हैं और उनकी चर्चा तक नहीं होती।पहले तो उसकीजानकारी तक नहीं मिलती थीलेकिन सोशल मीडिया के दौर में कम से कम सबको पता चलता है लेकिन उनकी समीक्षा तक नहीं आती।इसका एक बड़ा कारण यह है कि प्रकाशक रचनावलियाँ समीक्षकों को नहीं देते।

और संपादक भी इस बात में दिलचस्पी नहीं लेते कि उनकी समीक्षा छपे। रचनावलियो का प्रकाशन मुनाफे का व्यापार बन चुका है।उसके सम्पादन पर ध्यान नहीं दिया जाता है।हिन्दी मे कुछ ऐसी रचनावलियाँ हैं जो किताबों कोमात्र जोड़कर रचनावली बना दी गयी है।उसमें न कोई सम्पादकीय अग्रलेख है और न कोई दृष्टि भी।

धर्मवीर भारती रचनावली इसका उदाहरण है।गणेश शंकर विद्यार्थी और शिवपूजन साहित्य समग्र जैसी रचनावलियाँ कम हैंजिनको बड़ी परिश्रम से तैयार किया गया हो। अशोक जी यह रचनावली किस कसौटी पर खरी उतरती है यह वक्त ही बतायेगालेकिंन इस से एक उम्मीद तो जरूर बनती है।

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