सर्वे में शामिल 10 में से केवल 5 लोगों को हड्डी एवं जोड़ों की सेहत से जुड़ी समस्याओं के बारे में पता है। अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि भारत में हड्डी एवं जोड़ों की सेहत से जुड़ी जागरूकता और इलाज के बीच बड़ा अंतर है।
हेल्थकेयर से जुड़ी सेवाएं प्रदान करने वाले प्रिस्टीन केयर ने हाल ही में एक स्टडी की है। इस पता चला है कि भारत के लोगों के बीच हड्डियों और जोड़ों की सेहत से जुड़ी जागरूकता बहुत कम है। भारत में हर साल राष्ट्रीय हड्डी एवं जोड़ दिवस मनाया जाता है, इसका उद्देश्य सेहतमंद हड्डियों और जोड़ों के महत्व को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है। रिसर्च में सामने आया है कि जोड़ों के पुराने दर्द से पीड़ित 60 प्रतिशत लोग पेशेवर चिकित्सक की सलाह लेने से परहेज करते हैं।
अध्ययन में शामिल एक तिहाई से ज़्यादा लोगों ने बताया कि उनके परिवार में हड्डियों और जोड़ों से जुड़ी समस्याओं का पुराना इतिहास रहा है। इससे इन बीमारियों की आनुवंशिक प्रवृत्ति का भी पता चलता है। यहां चौंकाने वाली बात यह है कि अध्ययन में शामिल 67 प्रतिशत लोगों को बोन डेंसिटी टेस्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। जबकि ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डी की बीमारियों का शुरुआती दौर में ही पता लगाने वाला यह एक बेहद जरूरी टेस्ट होता है।
प्रिस्टीन केयर के को-फाउंडर डॉ. वैभव कपूर ने कहा कि, " अध्ययन में शामिल 45 प्रतिशत लोगों को इन गंभीर बीमारियों के बारे में जानकारी ही नहीं है। ऐसे में जरूरी है कि देश में सार्वजनिक शिक्षा और जागरूकता से जुड़ी पहलों को प्राथमिकता दी जाए। आवश्यक टूल्स एवं जानकारी की मदद से, हम भारतीयों को हड्डी एवं जोड़ की बेहतर सेहत को लेकर जागरूक बना सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो इससे हमारे देश में लोगों की सेहत में तेजी से सुधार होगा।"
सीनियर ऑर्थोपेडिक सर्जन एवं क्योर माई नी के फाउंडर डॉ. डी.के. दास ने कहा, "जोड़ों में दर्द और हड्डियों से जुड़ी समस्या की फैमिली हिस्ट्री मिलकर इस ओर इशारा करती हैं, कि मरीज को बेहतर प्रिवेंटिव हेल्थ सेवा की बड़ी जरूरत है। जबकि सच यह है कि 60 प्रतिशत लोग बीमारी से जुड़े लक्षणों को लेकर डॉक्टर से परामर्श ही नहीं करते हैं। लोगों की यह आदत एक ऐसी विसंगति पेश करते हैं, जिसके चलते उनके इलाज में चूक हो सकती है, साथ ही उनका इलाज नहीं हो पाता है। हमें इस अंतर को पाटने का प्रयास करना चाहिए, जिससे शुरुआती दौर में ही रोग की पहचान हो सके, साथ ही सही इलाज मिल सके। जिससे हड्डी और जोड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारियों में कमी लाई जा सके।"
अध्ययन में हड्डी एवं जोड़ों की सेहत को लेकर आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक शिक्षा से जुड़े अभियान चलाए जाने की जरूरत पर बल दिया गया है। यदि लक्षणों, जोखिम से जुड़े कारणों और उपचार के उपलब्ध विकल्पों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाती है, तो इससे उम्मीद है कि आगे चलकर ज्यादा से ज्यादा लोग अपनी हड्डियों की सेहत को प्राथमिकता देंगे और समय पर इलाज प्राप्त करेंगे।