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मोदी@3: विज्ञापन में ही नजर आया दावों और हकीकत के बीच बड़ा फासला

साथ है विश्वास है तक तो ठीक है, लेकिन हो रहा विकास है, इस पर सवाल है।
मोदी@3: विज्ञापन में ही नजर आया दावों और हकीकत के बीच बड़ा फासला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रभावशाली फोटो के साथ उनके नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के तीन साल पूरे होने का जश्न मनाने के लिए भारी-भरकम विज्ञापनों की कापरेट बांबिंग की गयी। हालांकि एनडीए के बावजूद यह भाजपा सरकार ही ज्यादा दिखती है और उसी अंदाज में इसकी उपलब्धि मनाने का जश्न भी चल रहा है।

वैसे तो न्यू इंडिया का दौर है और डिजिटल क्रांति हो रही है। लेकिन इसके बावजूद सरकार ने देश के लोगों को बताया है कि हमने तीन साल में बहुत काम किये हैं और उससे आपका जीवन बदला है। इस बात को कहने के लिए 11 प्वाइंट में बात कही गयी है। लेकिन सही मायने में इन 11 प्वाइंट में से कई में आधा सच है और कई में आधे से भी कम।

मसलन पहला प्वाइंट है, बड़े फैसले कड़े फैसले। इसमें कालेधन और भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए नोटबंदी, बेनामी संपत्ति कानून में संशोधन, सर्जिकल स्ट्राइक और जीएसटी पर बात की गई। सर्जिकल सट्राइक को सबसे कड़ा फैसला माना जा रहा है। इसे राज्य विधानसभा चुनावों में भुनाया भी गया। इसके बावजूद न तो सीमा पर जवानों की शहादत का आंकड़ा कम हो रहा है और न ही कश्मीर में पाकिस्तान का दखल कम हुआ है।

साथ ही जिस तरह पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तानी खूफिया एजेंसी आईएसआई को बुलाकर जांच में शामिल किया गया, उसने कई सवाल जरूर खड़े किये। लेकिन यह नहीं बताया कि नोटबंदी से अभी तक कुल फायदा हुआ या नुकसान हुआ। इस लेखक के साथ खुद मुख्य आर्थिक सलाहकार ने स्वीकार किया ही इस कदम से असंगठित क्षेत्र को नुकसान हुआ, लेकिन आकलन करना मुश्किल है।

इसके साथ ही जीडीपी की विकास दर में गिरावट सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक है। वहीं छह माह से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी रिजर्व बैंक अभी तक नहीं बता पाया कि कितने पुराने नोट वापस आए। वहीं कितना काला धन इसके चलते बाहर निकला है, उसका कोई आंकड़ा अभी सामने नहीं आया है। जीएसटी को लेकर सरकार कामयाबी के काफी करीब है, लेकिन इसे कोआपरेटिव फेडरलिज्म की भावना के अनुरूप मानते हुए सभी राज्य सरकारों को इसकी कामयाबी का भागीदार मानना चाहिए।

दूसरा कदम है, खुशहाल परिवार सुविधाएं अपार, इसमें गरीब महिलाओं को गैस कनेक्शन वाकई कारगर रहा है। लेकिन 28 करोड़ गरीबों की बैंक से जुड़ने की बात कोई बड़ा बदलाव लाने वाली नहीं है, क्योंकि बड़ी संख्या में खाते जीरो बैलेंस पर हैं और इनका औसत बैलेंस 2000 रुपये है। इन खातों पर ओवरड्राफ्ट देने के कदम पर अमल न के बराबर ही हुआ है। साथ ही मुद्रा लोन में बड़ी तादाद उन लोन खातों की है, जो पहले की सिडबी में कवर हो चुके थे। वहीं बड़े जोर-शोर से मुद्रा बैंक खोलने की घोषणा को गायब कर इसे एक योजना बनाकर सिडबी का हिस्सा बना दिया गया है। इसी तरह गरीब को छत देने के मामले में बात लक्ष्य के एक फीसदी तक भी तीन साल में नहीं पहुंची है।

देश की तरक्की, ईमानदारी पक्की में यह बात काफी हद तक सही है कि कोई बड़ा करप्शन का आरोप सरकार पर नहीं लगा है। लेकिन भाजपा की कई राज्य सरकारें भ्रष्टाचार के आरोपों को झेल रही हैं। ग्रेड तीन और चार की नौकरियों में इंटरव्यू खत्म किया गया, लेकिन यह नहीं बताया कि इन ग्रेड में तीन साल में नौकरियां कितनी आई हैं।

सबकी सुरक्षा, सबका खयाल के दावे में यह नहीं बताया गया कि निर्भया कांड के बाद सबसे वीभत्स रेप कांड भाजपा शासित हरियाणा के रोहतक में हुआ। एक दिन पहले ही, कई दशकों बाद सबसे बड़े बहुमत से सत्ता में आयी भाजपा के शासन वाले उत्तर प्रदेश के जेवर में हाइवे पर महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या ही सबकी सुरक्षा है, तो कुछ कहने की गुंजाइश नहीं बचती है। इसमें सहारनपुर को भी जोड़ दें तो बिगड़ती स्थिति दूसरी ही तसवीर पेश करती है। यहां यह जरूरी, इसलिए है क्योंकि उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख पर ही लड़ा गया था।

जन-जन का बढ़ता विश्वास में जिस स्वच्छ भारत अभियान को केंद्र में रखा गया है, उसमें लोगों को स्वच्छता सेस के नाम पर बढ़ते कर बोझ का बदलाव ज्यादा नजर आ रहा है, बाकी बातें गौण हैं। विदेश दौरे खूब हुए हैं, लेकिन मेक इंडिया कहीं खो गया लगता है। कूटनीति की मजबूती को लेकर सवाल हो रहे हैं कि दूर की दोस्ती तो ठीक है, लेकिन पड़ोस की दोस्ती कमजोर हो रही है। सशक्त नारी, सशक्त भारत के लिए गैस कनेक्शन का दावा फिर से दोहरा दिया गया है, लेकिन यह नहीं बताया कि महिला सुरक्षा के लिए निर्भया फंड का उपयोग क्यों नहीं हो रहा है। वहीं महिला बैंक क्यों गायब हो गया है।

नये भारत की शक्ति, युवा शक्ति का डेमोग्राफिक डिविडेंड अब गायब हो गया दिखता है। जिस तरह से सात फीसदी से अधिक की विकास दर के साल में रोजगार की विकास दर 1.1 फीसदी पर सिमट गयी और प्रमुख क्षेत्रों में केवल 2.3 लाख रोजगार पिछले साल के आठ माह में आये, वह सालाना एक करोड़ रोजगार के दावे से बहुत दूर है। साथ ही खुद सरकार के मंत्री स्वीकार कर रहे हैं कि स्किल इंडिया के तहत दिये गये कर्ज एनपीए में तब्दील हो रहे हैं।

खेत-खलिहाल में आ रही नई जान का दावा किसानों की खराब हो रही हालत में एक बड़ा मजाक है। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के तहत लागत का 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर एमएसपी तय करने का वादा गायब ही नहीं आधिकारिक रूप से सुप्रीम कोर्ट में भी इसे लागू नहीं कर पाने की बात सरकार कर चुकी है। वहीं फसल बीमा में घोटाले की बू आने लगी है, तो बीमा कंपनियों के मुनाफे को बढ़ाने का यह नया हथियार बन गया है। जिस नैम को भुनाने की बात कही है, वह अभी कुल कृषि उत्पाद कारोबार के एक फीसदी को भी नहीं छू पाया है। किसानों की पैदावार तो बंपर हो रही है, क्योंकि देश के बड़े हिस्सों में मानसून ने साथ दिया है। लेकिन जब यह पैदावार एमएसपी के नीचे बिक रही होती है, तो सरकार हरकत में क्यों नहीं आती है।

जहां तक इज ऑफ डूइंग बिजनेस की बात है तो अभी यह विश्व रैंकिंग में बहुत नीचे है। साथ ही अगर देश में क्रेडिट ग्रोथ पांच दशक के निचले स्तर पर हो तो फिर कुछ कहने की जरूरत नहीं है। वैसे मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस का जुमला उलट गया है। जिस तरह से हर फैसला केंद्रित होता जा रहा है और सरकारी एजेंसियों का दखल बढ़ रहा है, उसके चलते उद्योग ने भी दबे स्वर में मैक्सिमम गवर्नमेंट की वापसी की बात शुरू कर दी है।

 

 

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