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जन्मदिन विशेष । दलाई लामा : युद्ध के दौर में शांतिदूत

चौदहवें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, तिब्बत के आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता हैं। उनका जन्म पूर्वोत्तर...
जन्मदिन विशेष । दलाई लामा : युद्ध के दौर में शांतिदूत

चौदहवें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, तिब्बत के आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता हैं। उनका जन्म पूर्वोत्तर तिब्बत के तकत्सेर नामक एक छोटे से गाँव में 6 जुलाई 1935 को हुआ था। एक किसान परिवार में जन्मे, दलाई लामा, जब वे दो साल के थे, तो बौद्ध अधिकारियों के एक खोज दल ने उन्हें, तिब्बती परंपरा के अनुसार, उनके पूर्ववर्ती 13वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में मान्यता दी गई थी।

 

उनके माता-पिता, जिन्होंने उनका नाम ल्हामो धोंडुब रखा था। बौद्ध मठ में जुड़ने के बाद, दलाई लामा का नाम तेनज़िन ग्यात्सो रखा गया। उन्होंने एक मठ में शिक्षा प्राप्त की और आगे चलकर उन्होंने बौद्ध दर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि, गेशे ल्हारम्पा की उपाधि प्राप्त की।

सन 1950 में, 16 वर्ष की आयु में, वर्तमान दलाई लामा को राज्य और सरकार के प्रमुख के रूप में पूर्ण राजनीतिक शक्ति संभालने के लिए बुलाया गया था।तब तिब्बत को चीन से खतरा था। सन 1950 में, जब दलाई लामा 15 वर्ष के थे, चीन की नव-स्थापित कम्युनिस्ट सरकार की सेना ने तिब्बत में प्रवेश किया।जैसे ही सैनिकों की आमद हुई, दलाई लामा ने राज्य प्रमुख के रूप में पूर्ण शक्ति अपने हाथ में ले ली। स्थिति अनुकूल नहीं थी। मई 1951 में चीन ने तिब्बत को चीन में शामिल करने को वैध बनाने वाला 17 सूत्री समझौता तैयार किया। दलाई लामा जानते थे कि चीन की नजर तिब्बत पर है। 

साल 1954 में दलाई लामा चीनी नेता माओ त्से-तुंग से बात करने के लिए गए। इसके बाद सन 1956 में, बुद्ध की 2500वीं जयंती में भाग लेने के लिए दलाई लामा ने भारत की यात्रा की। इस दौरान, उन्होंने तिब्बत में बिगड़ती स्थितियों के बारे में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से बातचीत की। लेकिन चीन एक शक्तिशाली देश था। चीन को अपनी महत्वकांक्षा पूरी करनी थी। 

10 मार्च 1959 को एक चीनी जनरल ने दलाई लामा को एक चीनी नृत्य मंडली के प्रदर्शन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया।तिब्बतियों को डर था कि यह दलाई लामा को अगवा करने के उद्देश्य से बिछाया गया एक जाल है। दलाई लामा की रक्षा के लिए उनके महल के पास लोग इकट्ठा होने लगे।

यह तिब्बती क्षेत्र में चीनी सैनिकों की मौजूदगी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में बदल गया। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने क्रूर दमन शुरू कर दिया। चीनी सैनिकों की क्रूरता में कई तिब्बती लोगों को जान गंवानी पड़ी। इस सब के बीच दलाई लामा को भगाकर भारत आना पड़ा। भारतीय सरकार ने दलाई लामा को शरण दी। 1960 से दलाई लामा धर्मशाला में रहते हैं, जिसे "लिटिल ल्हासा" के रूप में जाना जाता है, जो निर्वासित तिब्बती सरकार का मुख्यालय है।

निर्वासन के शुरुआती वर्षों में, दलाई लामा ने तिब्बत के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र से अपील की, जिसके परिणामस्वरूप 1959, 1961 और 1965 में महासभा द्वारा तीन प्रस्ताव पारित किए गए। 1963 में, दलाई लामा ने तिब्बत के लिए एक मसौदा संविधान प्रख्यापित किया जो सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप का आश्वासन देता है।

निर्वासन में दलाई लामा ने तिब्बती लोगों की संस्कृति को संरक्षित करने और विश्व मंच पर उनकी दुर्दशा को उजागर करने का कार्य शुरू किया।1987 में, हान चीनियों के तिब्बत में बड़े पैमाने पर स्थानांतरण के खिलाफ ल्हासा में विरोध प्रदर्शनों के बीच, दलाई लामा ने एक पांच सूत्री योजना प्रस्तावित की, जिसमें उन्होंने तिब्बत को शांति क्षेत्र के रूप में स्थापित करने का आह्वान किया।वह शांतिपूर्ण प्रतिरोध के अपने रुख से कभी पीछे नहीं हटे और 1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

 

पिछले कई दशकों में दलाई लामा ने दुनिया भर के कई राजनीतिक और धार्मिक नेताओं से मुलाकात की है। उन्होंने कई मौकों पर दिवंगत पोप जॉन पॉल द्वितीय से मुलाकात की और आर्कबिशप डेसमंड टूटू के साथ मिलकर एक किताब भी लिखी। 

ऐतिहासिक रूप से, दलाई लामा तिब्बतियों के राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता दोनों के रूप में कार्य करते हैं। लेकिन मार्च 2011 में, वर्तमान दलाई लामा ने अपनी राजनीतिक सत्ता को लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित निर्वासित सरकार को सौंप दिया ।

दलाई लामा पर कई बार चीन को लेकर नर्म रवैया होने का आरोप लगता रहा है। कई लोग मानते हैं कि इसी नर्म रवैये के कारण तिब्बती समाज अपनी भूमि को प्राप्त करने से दूर होता जा रहा है। इस सबके बीच दलाई लामा के उत्तराधिकारी का प्रश्न अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। 

एक समय पर दलाई लामा ने ऐसे संकेत दिए थे कि उनकी मृत्यु के बाद दलाई लामा का पद समाप्त हो जाएगा। लेकिन तिब्बती समाज के आग्रह के बाद उन्होंने अपने विचार में फेरबदल किया है। उन्होंने कहा कि भविष्य में दलाई लामा की खोज पूरी होगी। दलाई लामा के आधिकारिक कार्यालय गादेन फोडरंग ट्रस्ट ने भी बयान जारी कर कहा है कि दलाई लामा की संस्था 600 साल पुरानी है और इसका अस्तित्व उनके जीवन के बाद भी बना रहेगा। अगला यानी 15वां दलाई लामा किसे बनाया जाएगा, इसका निर्णय पूरी तरह गादेन फोडरंग ट्रस्ट ही करेगा। गादेन फोडरंग ट्रस्ट ने 24 सितंबर 2011 के बयान का हवाला देते हुए कहा कि "भविष्य में दलाई लामा की मान्यता की प्रक्रिया पूरी तरह ट्रस्ट के सदस्यों की जिम्मेदारी होगी।"दलाई लामा ने स्पष्ट कहा है कि कोई भी बाहरी व्यक्ति या देश या संस्था दलाई लामा के चयन में हस्तक्षेप नहीं करेगी। दलाई लामा का चयन बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है। तिब्बती समुदाय और मानवाधिकार कार्यकर्ता आशंका जता रहे हैं कि चीन भविष्य में एक "सरकारी दलाई लामा" नियुक्त कर सकता है, ताकि तिब्बत पर उसका नियंत्रण और मजबूत हो जाए।

 प्रेम और करुणा का संदेश देने वाले दलाई लामा अभी अपने जीवन को लेकर सकारात्मक हैं। वह कहते हैं कि उन्हें अभी और बीस तीस वर्ष जीना और सेवा करनी है। वह कहते हैं कि उनकी जिंदगी 130वर्ष की होगी। यह जिजीविषा और उत्साह ही दलाई लामा को युद्ध और त्रासदी के दौर में शांति का अग्रदूत बनाता है।

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