अमेरिका की प्रतिष्ठित मैगजीन ‘टाइम’ ने दलित नेता और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ को दुनिया के 100 उभरते नेताओं की सूची में शामिल किया है। मैगजीन ने कहा है कि ये भविष्य को आकार देने वाले नेताओं में से एक हैं। साल 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी हैं। वहीं, अभी भी मुख्यधारा की राजनीति में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा चंद्रशेखर को नजर अंदाज किया जाता रहा है। आगे की रणनीति और मिली इस उपलब्धि का आगामी चुनाव पर क्या असर होगा? इन सब पर आउटलुक के नीरज झा से उन्होंने खास बातचीत की। प्रमुख अंश …
सबसे पहले आपको बधाई! मैगजीन ने आपको भविष्य को आकार दे रहे नेताओं के तौर पर देखा है। क्या कहेंगे?
शुक्रिया!, भीम आर्मी के सभी कार्यकर्ताओं के कामों की वजह से ये जगह मिला है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी लोगों ने हमारी इस लड़ाई में साथ दिया है। ये इस बात का संदेश है कि यदि हम अच्छा करेंगे तो देश-दुनिया में, कही-न-कहीं हमें वो पहचान मिलती है। वंचित तबके की आवाज बनकर आगे बढ़ाने का काम करता रहूंगा। सत्ता में आने का मौका मिला तो निश्चित तौर पर मैं सभी को सशक्त करूंगा।
वो कौन-कौन से काम आपने किए हैं जिसकी वजह से ये उपलब्धि मिली, क्योंकि दलित नेता तो और भी हैं।
देखिए, मैं जिस तबके के लिए काम कर रहा हूं उनकी आवाज को राज्य में बैठी सरकार तक पहुंचाने का काम किया है। चाहे वो हाथरस का मामला हो या उन्नाव का। हमारी तरफ से कई स्कूल चलाए जा रहे हैं जिसमें बच्चों को नि:शुल्क और बेहत्तर शिक्षा दिया जा रहा है। अभी मैं सत्ता में नहीं हूं। बिना किसी पावर के हमने ये काम किए हैं। निश्चित तौर पर आने वाले चुनाव में, मैं अपने मजबूती के साथ लड़ूंगा। हमने देखा है कि दलितों के नाम पर वोट मांगे जाते हैं। सरकार बनती है लेकिन, ये वर्ग यही का यही रह जाता है।
आगामी चुनाव को लेकर गठबंधन की क्या योजना है। किसी के साथ बातचीत चल रही है?
सही वक्त आने पर आपको बता दिया जाएगा। अभी ऐसी कोई योजना नहीं है। इतना तय है कि ना तो मैं किसी के सामने गिड़गिड़ाउंगा और ना ही मदद मांगूंगा। मैं बस अपने संगठन को मजबूत करने पर ध्यान दे रहा हूं। हम अपने स्वाभिमान सम्मान की लड़ाइ लड़ रहे हैं। एक दलित को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन उसके साथ आ रहा है और कौन नहीं।
मैगजीन आपका लोहा मान रही है जबकि अभी भी मुख्यधारा की राजनीति से आपको नकारा जा रहा है। चाहे वो बीजेपी हो या सपा-बसपा।
इस बात को हम जानते हैं कि जब कोई अच्छा काम करता है तो उसे पहले नकारा जाता है। उपहास उड़ाया जाता है। पहले दौर में हम उसके पात्र बन चुके हैं। दूसरे दौर में, अब मुझे विरोध का सामना करना पड़ रहा है। दलितों की आवाज उठाने पर कई तरह के मुकदमे दर्ज कर दिए जाते हैं। अब हमारी पार्टी तीसरे दौर में प्रवेश कर रही है और ये समर्थन का दौर 2022 का विधानसभा चुनाव होगा। हमने बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बसपा... सभी की स्थिति को एक जमाने में देखा है जब किसी के पास दो विधायक तो किसी के पास पांच सदस्य थे। मैंने पहले ही कहा कि मैं किसी के आगे नहीं गिड़गिड़ाउंगा।
किसी समय में इसी मैगजीन ने पीएम मोदी को डिवाइडर-इन-चीफ कहा था। उसके बाद इसने पीएम मोदी को एकजुट लेकर चलने वाले प्रधानमंत्री और 100 तेज तर्रार नेताओं की सूची में शामिल किया। क्या मैगजीन अपना एजेंडा चलाती है?
देखिए, मैं कभी इस मैगजीन के दफ्तर में नहीं गया हूं। जिस दौर में जो जैसा काम करता है। उसे उसी तरह से प्रस्तुत किया जाता है। यदि मैंगजीन ने पीएम मोदी को इन बातों से नवाजा है तो हमें ये देखना होगा कि किस परिपेक्ष्य में ये बातें कही गई।
यूपी में कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष आरोप लगाता रहता है, लेकिन सरकार के दावे तो कुछ और हैं
राज्य में कानून का राज नहीं है। हाथरस मामले में जिस अधिकारी को बर्खास्त किया गया था उसे फिर से बहाल कर दिया गया है। सीधा मतलब है कि जो अधिकारी राज्य के सीएम के मुताबिक काम करेगा उसे वो जगह फिर से मिल जाएगी। घटनाएं नेतृत्व के इशारों पर हो रहा है।
इन दिनों किसान आंदोलन भी जोरो पर है। कई दौर की बातचीत हो चुकी है पर नतीजा शून्य। केंद्र के रवैये पर आप क्या कहेंगे?
प्रधानमंत्री मैं नहीं, नरेंद्र मोदी हैं। इसका सही कारण वही बता सकते हैं। किसान वही मांग कर रहे हैं जो पीएम मोदी ने सत्ता में आने से पहले किया था। केंद्र तनाशाही रवैया अपनाए हुए है। करीब दो सौ किसान मर चूके हैं लेकिन पीएम ने एक शब्द नहीं बोला है।