विश्वास-रजत-नग पग -तल में रौंदकर श्रद्धा के कई टुकड़े कर दिए गये | इन श्रद्धाओं के कई नाम हैं-बॉबी प्रियदर्शिनी मट्टू ,नैना साहनी ,कुंजुम , निर्भया ,अनुपमा गुलाटी...असंख्य |इन हत्याओं के कारण जो भी हों,मामला अगर हाई प्रोफाइल हो, तो हत्यारा अपराध की गंभीरता के बावजूद बच निकलता है या बचा लिया जाता है| श्रद्धा हत्याकांड हाई प्रोफाइल मामला नहीं था,इसलिए आफ़ताब पकड़ा गया|
श्रद्धा और आफ़ताब जेनरेशन जेड के युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं|जिन्हें डिजिटल नेटिव भी कहा गया है|डिजिटल नेटिव यानी जन्म लेते ही जिनके हाथों में मोबाइल आ गया और वह आभासी दुनिया के टेक्स्ट,वॉइस,विडियो के द्वारा समाजिक गतिविधियों में भाग लेते बड़े हुए | एक सर्वे के अनुसार इनके लिए इंटरनेट का भरोसेमंद कनेक्शन ,भरोसेमंद प्यार पाने से अधिक आवश्यक है|आभासी दुनिया ने उन्हें इस कदर आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध कर दिया है कि वह परिवार या सामाजिक संबंधों का मूल्य समझ नहीं पाते|सोशल और डिजिटल मीडिया के तय किए गये मापदंडों के आधार पर जीवन का मूल्यांकन करने के अभ्यस्त इन युवाओं ने एक प्रतिसंस्कृति तैयार कर ली है | इन्टरनेट की दुनिया इस पीढ़ी और सामान्य जीवन के बीच एक अंतर्विरोध या विरोधाभास पैदा करती है|स्व-चेतना ,आत्म-बोध जैसे आधुनिक मूल्य से प्रेरित या उद्विग्न यह पीढ़ी किसी एक रिश्ते में बंधने से कतराती है|ड्रग सेवन, लिव-इन ,वन नाइट स्टेंड ,ब्रेक अप ,त्वरित सम्बन्ध की इनकी जीवन शैली प्रचलित संस्कृति के प्रति इनका विद्रोह है |पश्चिम की पॉप संस्कृति की तर्ज पर ये पीढ़ी सामाजिक रेखाओं को पार करती अपने सीमित लक्ष्यों ,महत्वाकांक्षाओं पर ध्यान केन्द्रित करने लगी है |समाज या परिवार के साथ इनका प्रकट या अप्रकट संघर्ष चलता ही रहता है|
आफताब ने पुलिस के सामने स्वीकार किया है कि श्रद्धा को उसने अमेरिकी क्राइम ड्रामा ‘डेक्सटर’ देखकर सीखी गयी तरकीब से मारा है|अपराध को अंजाम देने के बाद उसने कानून से बचने की तरकीब भी गूगल पर सर्च की है| इस कोल्ड ब्लडेड मर्डर को अंजाम देने में ओटीटी और इंटरनेट का उसने भरपूर उपयोग किया| पहले ही टीवी और सिनेमा ने काफी गुमराह किया बच्चों को|अब ओटीटी ने रही सही कसर पूरी कर दी| संचार के नये माध्यमों ने नशे की लत की तरह उनकी मानसिकता पर गहरा असर डाला है| | बिना सेंसर के खुलेआम अश्लीलता और हिंसा परोसकर ओटीटी ने विचारों को कुंद कर दिया है| ऐसे सारे कार्यक्रम या तो सेंसर होने चाहिएँ या इन्हें बंद कर देना चाहिए
ड्रग एक अहम वजह है बच्चों के हिंसक होने की|ड्रग के अवैध व्यापार का अंतर्राष्ट्रीय कालाबाजार क्या कभी ख़त्म हो पाएगा?ख़बरों के अनुसार इस क्रूर हत्या के समय आफताब ने शराब और गांजा पी रखी थी|उसने आवेग में या क्रोध में उसकी हत्या नहीं की होगी|नशे की आदत से दिमाग में लम्बे समय तक चलनेवाले केमिकल बदलाव होते हैं,जिससे व्यक्ति की आत्मनियंत्रण की क्षमता कम या समाप्त हो जाती है | जिस तरह सोच-समझ कर उसने हत्या की ,वह एक अपराधी प्रवृत्ति का या मनोरोगी प्रतीत होता है| मनोचिकित्सक और अध्यात्म दोनों इस तथ्य को स्वीकारते हैं कि मन और देह बहुत गहराई से जुड़े हैं|अस्वस्थ मन नकारात्मकता उत्पन्न करता है|अभी-अभी दिल्ली के पालम में एक ड्रग एडिक्ट ने पूरे परिवार की हत्या कर दी|
अंतरजातीय विवाह कोई अनहोनी नहीं | इस आधुनिक युग में कुछ हद तक अंतरजातीय विवाह स्वीकार कर लिये गये हैं,किन्तु अंतर्धार्मिक विवाह आसानी से गले नहीं उतरते|वजहें अनेक हैं-अपने धर्म के प्रति कट्टरता ,दूसरे धर्म को हीन समझना ,परस्पर अहंकार जनित जीत–हार,सामाजिक मान-सम्मान की भावना|सांस्कृतिक भिन्नता सबसे बड़ी वजह हो सकती है|लेकिन श्रद्धा के केस में विवाह से पहले ही उसकी हत्या कर दी गयी | क्योंकि वह ‘लिव-इन’ में थे ,प्रेमी ही हत्यारा निकला।
युवा महिलाओं ने लैंगिक समानता के अधिकार के साथ स्वतंत्र जीवन की कामना में पारंपरिक छवि से निकल कर स्वच्छंद जीवन चुना| किन्तु परंपरा और रिवाज साथ चलते रहे| जहाँ तक श्रद्धा का सवाल है,वह आफ़ताब के लिए माता-पिता को छोड़ चुकी थी|जैसा कि ऐसे मामलों में होता है ,उसे लगा वह वापस लौटी तो परिवार उसे स्वीकार नहीं करेगा| परिणामस्वरूप श्रद्धा सपोर्ट सिस्टम के अभाव में कमजोर पड़ गयी|अंततः डर,शर्म ,भावनात्मक कमजोरी की वजह से वह मारी गयी|
प्रेम महसूस करने की चीज है ,छीनने की नहीं |युवा वर्ग यह समझ नहीं पाया कि क्षणिक दैहिक आकर्षण ,शाश्वत प्रेम नहीं| अगर आफताब के साथ लिव –इन में रहने के लिए परिवार से विद्रोह किया ,तो शादी न करने पर आफताब से अलग हो सकती थी| जब अपने ही आपके विरुद्ध हो जाएँ ,तो हिम्मत ही काम आती है|कई सालों से आफ़ताब के हाथों प्रताड़ित होती वह चाहती तो आरम्भ में ही अपने क्रूर प्रेमी के हथकंडों से निजात पा सकती थी|वह चूक गयी,समय पर हिम्मत दिखाती तो शायद माता-पिता या दोस्त सहारा बन सकते थे| संभवतः मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान वह अवसाद ग्रस्त हो गयी थी।
अभिभावकों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है बच्चों के प्रति उदार और सचेत होने की | ताकि वह आरम्भ से ही उन्हें डिजिटल नेटिव,ड्रग एडिक्ट बनने से रोक सकें और किसी दुर्घटना से पहले या बाद उचित सलाह ,संरक्षण एवं सहयोग देकर उनकी सुरक्षा कर सकें |श्रद्धा को अपने घर माता –पिता के पास वापसी का विश्वास होता तो शायद अंजाम इतना बुरा न होता|
इस तरह के अपराधों और स्त्री शोषण को केवल खबर बनाने का मंतव्य नहीं होना चाहिए|स्त्री हिंसा के आंकड़ो से अधिक उसके प्रति जागरूकता की आवश्यकता है| हम उनका शोषण क्यों नहीं रोक पा रहे ?समाधान हमारे खुद के और व्यवस्था के हाथों में है|ईरान के खिलाड़ियों की तरह अपने देश की महिलाओं के दमन का विरोध प्रभावकारी हो सकता है|पितृसत्तात्मक समाज के विरोधों और स्वीकार के मध्य महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रचिकित्सा ,विज्ञान ,राजनीति ,सेना आदि में आगे बढ़ अपने को साबित कर रही हैं|फिर क्यों पति, प्रेमी या पुरुषों के प्यार,विश्वास और छल को नहीं समझ पा रहीं ?तहमीना दुर्रानी की ‘कुफ्र’की याद आती है |वह लम्बे समय तक क्रूर पति की हिंसा झेलती रहीं,क्योकि वह बार-बार असत्य से उन्हें छलता रहा|महिलाओं को समझना चाहिए कभी-कभी यथास्थितिवादी होने के दूरगामी परिणाम बड़े भयंकर होते हैं|जेन जेड से यह उम्मीद तो की जा सकती है कि वह इन बेड़ियों को एक झटके से तोड़,स्वचेतना की सच्ची ऊर्जा ले,एक सुंदर दुनिया की तलाश में निकल जाएँ|