उन्हें ओडिशा पर्यटन विभाग के वार्षिकोत्सव के रूप में पुरी के कोणार्क में एक से पांच दिसंबर तक चलने वाले पांचवे अंतरराष्ट्रीय रेत-कला महोत्सव का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया है।
गूगल के मुताबिक सुदर्शन का जन्म 15 अप्रैल, 1977 को ओडिशा के पुरी जिले में हुआ। वह चार साल के थे, तभी पिता छोड़कर चले गए। दादी मुक्ता देई ने ही 200 रुपये की पेंशन से उनके तीन भाइयों समेत पाल-पोस कर बड़ा किया। सुदर्शन छठी क्लास में थे तभी स्कूल छोड़कर आठ साल की उम्र में ही उन्हें दूसरों के घरों में काम करना पड़ा। बचपन से चित्रकला के दीवाने, सुदर्शन के पास उसके सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं होते थे। इसलिए काम खत्म होते ही वह समंदर किनारे पहुंच जाते और रेत पर ही अपनी प्रतिभा से दुखों को आकार देने की कोशिश करते।
सुदर्शन पटनायक की कला देश से ज्यादा विदेश में सराही गई। पूरी दुनिया में नाम रोशन करने वाले भारत के महान रेत-कलाकारों में उनका नाम पहले नंबर पर लिया जाता है। 1995 में पहली बार अमेरिका के रेत-चित्रकला प्रतियोगिता में आमंत्रण बावजूद वीजा न मिलने की वजह से वह मौका हाथ से निकल गया, लेकिन वे अपने काम में लगे रहे। धीरे-धीरे दूसरे देशों से निमंत्रण और अवार्ड्स की झड़ी लगने लगी। विदेश में करीब ५० इनाम जीते। देश में 2014 में पद्मश्री से सम्मानित हुए, तो 2008 में उन्हें ओडिशा सरकार का 'सारला' अवार्ड मिला था।
पुरी के समंदर के किनारे बनाए सबसे बड़े रेत सांता क्लॉज ने उन्हें नौवीं बार लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में जगह दिलाई। रेत-कला के माध्यम से दुनिया में शांति और ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद, एड्स, धूम्रपान जैसे मुद्दों पर समाज में जागरूकता लाने में जुटे हैं। पुरी स्थित उनके 'सुदर्शन सैंड आर्ट इंस्टिट्यूट' में पूरी दुनिया से बच्चे रेत-कला सीखने आते हैं। इनपुट एजेंसी