वायरस का संक्रमण नियंत्रित रखने के लिए लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग सहित कई उपायों के बावजूद इसका संकट देश में बढ़ता जा रहा है। इससे जनरल इंश्योरेंस कंपनियों की चिंताएं बढ़ गई हैं। इंश्योरेंस कंपनियां प्राइवेट अस्पतालों के भारी-भरकम बिलों पर अंकुश रखने को कोरोना मरीजों के इलाज के रेट्स का स्टैंडर्ड तैयार करने में जुट गई हैं। कोरोना से पीड़ित मरीजों के संभावित क्लेम्स को लेकर कंपनियां सतर्क हो गई हैं। वे उम्मीद कर रही हैं कि भारत में पश्चिमी देशों जैसी गंभीर स्थिति नहीं बनेगी क्योंकि सरकार को दूसरे देशों के अनुभव देखकर संभलने और एहतियातन कदम उठाने का वक्त मिल गया है।
अस्पतालों के मोटे बिल बीमा कंपनियों के लिए मुश्किल
कोरोना संकट बढ़ने के साथ ही प्राइवेट अस्पतालों के भारी बिलों को लेकर इंश्योरेंस कंपनियों की चिंताएं बढ़ गई हैं। कोरोना मरीजों के इलाज के लिए लाखों रुपये बिलों के कुछ मामले भी सामने आने लगे हैं। पिछले दिनों मुंबई के एक अस्पताल में कोरोना के मरीज का सफलतापूर्वक इलाज हो गया। लेकिन इलाज के लिए अस्पताल ने करीब 12 लाख रुपये का बिल बनाया। यह मामला तब सामने आया जब एक सर्जन संजय नागराल ने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी। इसी तरह कई इंश्योरेंस कंपनियों का कहना है कि कोरोना मरीज के इलाज का बिल पांच-छह लाख तक बन रहा है।
इलाज की प्रक्रिया और रेट तय करने पर जोर
वैसे तो कोरोना वायरस से संक्रमण के इलाज के लिए किसी सर्जरी जैसे प्रॉसीजर की आवश्यकता नहीं होती है जो आमतौर पर अस्पतालों में बहुत महंगी होती है। इसके इलाज में एंटीबायोटिक्स और दूसरे सामान्य बीमारियों की दवाइयां ही इस्तेमाल होती हैं। इसके बावजूद लाखों रुपये बिल ही इंश्योरेंस कंपनियों की चिंता का कारण हैं। सूत्रों के अनुसार जनरल इंश्योरेंस काउंसिल ने सरकार से दखल देने का अनुरोध किया है ताकि कोरोना इलाज का प्रॉसीजर और रेट्स का निर्धारण किया जा सके। इंश्योरेंस कंपनियों को बिल में सैकड़ों की संख्या में हैंड ग्लव्स और हर मरीज के लिए रोजाना नए पीपीए सूट जैसे खर्चों पर दिक्कत होती है। उनकी सबसे बड़ी मुश्किल है कि हेल्थ इंश्योरेंस के रेट्स तो पहले से रेगुलेटेड हैं लेकिन अस्पतालों के चार्ज रेगुलेटेड नहीं हैं।
असामान्य रूप से अधिक बिलों पर नजर
आइसीआइसीआइ लोबांर्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी के चीफ अंडरराइटिंग ऑफीसर संजय दत्ता ने आउटलुक को बताया कि कंपनियां रेट्स का स्टैंडर्ड बनाने पर विचार कर रही हैं। उनका कहना है कि अभी तक कोरोना मरीजों के बहुत कम दावे आए हैं, इसलिए अत्यधिक बिलिंग की बात कहना अभी ठीक नहीं है। हम अस्पतालों के असामान्य रूप से ज्यादा बिलों पर अवश्य ध्यान देते हैं। उनका कहना है कि हर मरीज के इलाज की अलग आवश्यकता हो सकती है, इसलिए खर्च अलग हो सकता है लेकिन सामान्य खर्च का स्टैंडर्ड बनाया जा सकता है।
आगे के हालात पर कंपनियों का रुख
हालांकि कोरोना संकट को लेकर बीमा कंपनियां के पास अभी बहुत कम क्लेम आए हैं लेकिन आगे क्या स्थिति बनेगी, इसके बारे में वे अनिश्चित दिखाई देती हैं। सामान्य हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के तहत आने वाले क्लेम की स्थिति इस पर निर्भर होगी कि देश में संक्रमण कितना फैलता है। ग्लोबल स्तर पर और अन्य देशों के मुकाबले अभी भारत में बेहद कम केसों को देखते हुए बीमा कंपनियां अगले दो महीने महत्वपूर्ण मान रही हैं।
तो बहुत ज्यादा नहीं होंगे इंश्योरेंस क्लेम
एक इंश्योरेंस कंपनी के अधिकारी ने कहा कि क्लेम चाहे ज्यादा आए, या कम, कंपनियों को तैयार रहना होगा। गौरतलब है कि किसी भी आपदा के समय में बीमा कंपनियों के सामने क्लेम बढ़ने की चुनौती आ जाती है। आगामी क्लेम के बारे में आइसीआइसीआइ लोंबार्ड के संजय दत्ता कहते हैं कि अगले महीनों में आंकड़ा बहुत तेजी से नहीं बढ़ा तो क्लेम ज्यादा नहीं होंगे। लेकिन काफी कुछ सरकार के उपाय और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने में लोगों के अनुशासन पर निर्भर होगा।
कोरोना के सहारे नए ग्राहकों की तलाश
वैसे तो बीमा कंपनियों के लिए कोरोना संकट क्लेम सेटल करना कठिन है लेकिन उन्होंने कोरोना पॉलिसी पेश करके अपना कस्टमर बेस बढ़ाने के लिए कदम उठाया है। बजाज एलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी ने ई-वॉलेट कंपनी फोनपे के साथ कोरोना केयर पॉलिसी लांच की है। 55 साल तक की आयु के व्यक्ति को कंपनी 156 रुपये में 50,000 रुपये का इंश्योरेंस कवर 30 दिनों के लिए देगी जिसके तहत ग्राहक कोरोना का इलाज करा सकेंगे। इसी तरह आइसीआइसीआइ लोंबार्ड ने 200 रुपये में कोरोना पॉलिसी देने की पेशकश की है। संजय दत्ता का कहना है कि बिजनेस के लिहाज से यह कोई बड़ा कदम नहीं है लेकिन कोरोना संकट के दौरान लोग स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं, ऐसे में लोगों को बीमा सुरक्षा लेने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। देश में अभी भी बीमा सुरक्षा बहुत कम लोगों के पास है। कंपनियों के सामने ग्राहकों की संख्या बढ़ाना बड़ी चुनौती रहती है।