न जाने ये कब और कैसे स्थापित हो गया कि गीतों, गजलों की कामयाबी का सारा श्रेय गायकों को हासिल होने लगा। जिसने अपने लहू से शब्द रचे, वह हमेशा गुमनामी में खोया रहा। आज के दौर में भी हमने जो गीत सुने होते हैं, उनके गीतकारों और शायरों के बारे में हमें मालूम नहीं होता है। " प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है", ऐसी ही एक गजल है, जिसे गाकर जगजीत सिंह ने कई महफिलों में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। लेकिन कम ही लोगों को मालूम है कि इस खूबसूरत गजल के शायर हैं हस्तीमल हस्ती। हस्तीमल हस्ती का शायरी का लंबा सफर रहा है। जगजीत सिंह, पंकज उधास, अनूप जलोटा जैसे सफल गजल गायकों ने हस्तीमल हस्ती की गजलें गाईं तो सुनने वाले दिल थामकर रह गए। कुछ ऐसी कशिश, कुछ ऐसा असर था, हस्तीमल हस्ती की शायरी में। हस्तीमल हस्ती से उनके जीवन, शायरी और गजल "प्यार का पहला खत" के बारे में बातचीत की आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने।
साक्षात्कार के मुख्य अंश
"प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है" गजल की पूरी कहानी हमें बताइए, कैसे हुई इस खूबसूरत गजल की रचना ?
एक रोज़ मैं अपनी बालकनी में बैठकर, मन में आ रहे ख्यालों को लिख रहा था। मैं इस गजल की पहली दो लाइनें, जिसे गजल की भाषा में "मतला" कहते हैं, लिख चुका था। पहला शेर लिखने की कोशिश चल रही थी लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था। तभी दिमाग में एक लाइन आई। “ जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था, लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है”। इसे जैसे ही कागज पर लिखा, मैं ख़ुशी से उछल पड़ा। मैंने आँखें बंद कर ली और ऐसा महसूस होने लगा कि मैं बहुत ऊपर उठते चला जा रहा हूँ। अद्भुत अनुभव था।अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करने के बाद मैं मुंबई आ गया था। मुझे कारोबार करना था। मैंने मुंबई में अपनी दुकान खोली थी, जहां उस दौर के कई शायर आकर बैठते और बातचीत करते थे। ऐसे ही एक कवि थे आश करण अटल । एक रोज वो दुकान पर आए तो मैंने उन्हें गजल सुनाई। वह बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने मुझ से कहा कि मैं गजल एक कागज पर लिखकर दे दूं। मैंने गजल लिख दी। कुछ दिन बाद दुकान पर शायर सुदर्शन फ़ाकिर आए।उनकी नज़्म “ ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो” जगजीत सिंह ने गाई थी, जो बेहद लोकप्रिय हुई थी। हम सभी उनकी बड़ी इज्जत करते थे। सुदर्शन जी दुकान में आते ही मुझसे बोले "तुमने जो गजल आश करण अटल को लिखकर दी है, उसे जरा सुनाओ"। मैं पहले तो आश्चर्य से भर गया, फिर मैंने गजल सुनाई। सुदर्शन जी गजल सुनकर खुश हो गए। उन दिनों जगजीत सिंह अपनी नई एल्बम के लिए गजलें चुन रहे थे। उन्होंने सुदर्शन जी से भी कहा था कि वह अपनी और अपने मित्रों की अच्छी गजलें चुन कर लाएं। सुदर्शन जी ने मेरी गजल जब जगजीत सिंह को सुनाई तो उन्हें गजल पसंद आई। जगजीत सिंह ने गजल को गाया और मेरी यह गजल जगजीत सिंह के एल्बम में शामिल हुई। गजल के एल्बम से जुड़ा एक रोचक प्रसंग सुनाता हूं। जब एल्बम रिलीज हुई तो नाम रखा गया "फेस टू फेस”। एल्बम में कुल 8 गजलें थीं। एल्बम के दोनों तरफ यानी 4 -4 गजलें थीं। मेरी गजल दूसरी तरफ़ थी और वह भी दूसरे नंबर पर। यानी छठी गजल थी एल्बम में मेरी। मुझे लगा कौन वहां तक जाकर मेरी गजल सुनेगा। लेकिन नसीब का लिखा,मिलकर रहता है। मेरी गजल इतनी सुपरहिट हुई कि म्यूजिक कंपनी ने एल्बम दोबारा रिलीज किया। एल्बम का नया नाम था “ प्यार का पहला ख़त” और मेरी गजल एल्बम में पहले नंबर पर थी। गजल की कामयाबी से मुझे नाम, सम्मान मिला। इसके साथ ही किताबों और एल्बम का सिलसिला शुरु हो गया।
साहित्य में रुचि किस तरह पैदा हुई, गजल लेखन की विधा में किस तरह शामिल हुए ?
मेरा जन्म 11 मार्च 1946 को राजस्थान के एक कारोबारी जैन परिवार में हुआ। आस पास कोई कोई ख़ास साहित्यिक माहौल नहीं था। पिताजी को थोड़ा शौक था पढ़ने का तो घर में अखबार आता था। उसी में मैं रविवार विशेषांक पढ़ते हुए कविताएं पढ़ लेता था। तभी खबर मिली कि भारत और चीन में युद्ध छिड़ गया है। हर तरफ देशभक्ति का माहौल पैदा हो गया था। तब मैंने पहली बार कुछ लिखा था। फिर पढ़ाई लिखाई में ऐसा व्यस्त हुआ कि साहित्य के लिए समय नहीं मिला। मुंबई में जब कारोबार अच्छा चलने लगा तो फिर से मन में साहित्य के प्रति आकर्षण पैदा हुआ। ये कुछ पचास साल पुरानी बात है। मैं कारोबार से समय निकालकर धर्मयुग पत्रिका पढ़ता था। इसे पढ़ने लिखने में मैंने भी कुछ रचनाएं लिखीं और एक किताब "यादों के गुलाब" प्रकाशित की। मुझे शायरी आकर्षित करती थी लेकिन उसके व्याकरण का कोई ज्ञान नहीं था। मेरे इर्द गिर्द हिंदी के कवि थे, जो दुकान पर आते थे। उन्हें भी गजल की विधा नहीं आती थी। लेकिन मुझ पर जुनून था कि गजल लिखनी है। जुनून हो तो रास्ते खुलते हैं। मेरी दुकान स्ट्रगल करने वाले कलाकारों के लिए खुली रहती थी। एक गीतकार थे “मदन पाल" जो पंजाब से आए थे, हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखने। वह मेरी दुकान पर आए और हमारी दोस्ती हुई। मदन पाल की संगत में उर्दू के कई शायर थे। मदन ने उनसे गजल का व्याकरण सीखा और फिर मैंने मदन से। मैंने खूब प्रैक्टिस की और एक रोज गजल लिखने लगा। मदन का लिखा गीत " चेहरा क्या देखते हो, दिल में उतर कर देखो न" कुमार सानू ने गाया और उसे कामयाबी मिली। इस तरह हम दोनों प्रसन्न थे।
"प्यार का पहला खत" लिखने के बाद जो शोहरत मिली, मन नहीं किया कि फिल्मों के लिए लिखना चाहिए?
मैं हमेशा से थोडा शांत स्वाभाव का आदमी था।अपने कारोबार में संतुष्ट था। इसलिए मैंने कभी फिल्मों में काम करने की नहीं सोची। कारोबार से फुरसत नहीं थी कि फिल्मों के लोगों से मिलूं। जिसे गजल पसन्द आई, उसने गाई। मैं खुद नहीं जा सका किसी से मिलने। मैंने यह भी देखा था कि उस समय के गीतकार, फिल्म प्रोड्यूसर, डायरेक्टर के सामने हाथ बांधे खड़े रहते थे। प्रोड्यूसर, निर्देशक आपके लिखे हुए में छत्तीस बदलाव कराते थे। मुझे यह पसन्द नहीं था सो मैंने खुद को फिल्मी दुनिया से दूर ही रखा।
जीवन के इस मोड़ पर आकर वो कौन से अनुभव हैं, जिन्हें आप शिद्दत से महसूस करते हैं ?
मैं नियति में बहुत यकीन रखता हूँ। मेरा मानना है कि अगर आप सच्चे मन से कर्म करते हैं और अगर आपकी नियति में किसी चीज़ को पाना है तो, वह ज़रूर होकर रहेगी।
अच्छा लिखने का क्या सीक्रेट है ?
एक ही सीक्रेट है। ख़ूब पढ़िए। कहानी, उपन्यास, नज्म,गजल, लतीफे पढ़िए।पढ़कर ही अपनी संस्कृति, सभ्यता, इतिहास का पता चलता है।आदमी गहराई में उतर पाता है। आजकल सबका लिखने पर जोर है। सोशल मीडिया में सभी तुरंत लिखकर प्रतिक्रिया चाहते हैं और स्टार बनना चाहते हैं। यह रास्ता आपको कुछ देर की सक्सेस दिला सकता है। लेकिन आप अच्छा नहीं लिख पाएंगे। उसके लिए आपको किताबों की तरफ ही लौटना होगा।