अपनी खोई हुई स्थिति को फिर से पाने के लिए आइएसआइएस ने हाल ही में अपनी महिला टुकड़ी का इस्तेमाल करते हुए सीरिया के अल होल कैंप स्थित हसाका में आगजनी और श्रृंखलाबद्ध हिंसा को अंजाम दिया। यह एक निराशा भरा और बिना सोचा-विचारा गया कदम था। हिंसा के परिणामस्वरूप दो बच्चों की मौत हो गई और कई महिलाओं को गंभीर चोटें आईं जिनमें ज्यादातर घायल बच्चों की मां थीं। इस हमले के दो मकसद थे। पहला, महिलाओं पर कथित ज्यादतियों के बहाने नाटो बलों की छवि खराब करना और दूसरा, दुनियाभर में इस्लामी खलीफा के विश्वासियों की सहानुभूति प्राप्त करना।
लेकिन इस घटना से आइएसआइएस के हमदर्दों में उसके प्रति कोई सहानुभूति नहीं पनपी। इसके विपरीत, सीरियाई बलों की समय पर कार्रवाई से, संगठन की योजना समय से पहले ही ध्वस्त हो गई। इसे दूसरा झटका तब लगा जब, आइएसआइएस के धार्मिक नेता और उपदेशक, जिसे शफिया अल-नामा उर्फ अबु अब्द अल बारी नाम से जाना जाता है, को स्थानीय नागरिकों की मदद से मोसुल से गिरफ्तार किया गया। वह विद्वानों को कैद/फांसी देने से संबंधित क्रूर फतवों, 2014 में जोनाह की कब्र पर बमबारी, उत्तेजक भाषण देने और सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। स्थानीय लोगों की मदद से उसकी गिरफ्तारी से पता चलता है कि क्षेत्र में आइएसआइएस की स्वीकार्यता घटी है और लोकप्रियता में कमी आई है।
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह आइएसआइएस कैडर के लिए एक बड़ा झटका है, जो अपने संस्थापक और प्रमुख रहे अल बगदादी की हत्या के बाद से अपने एजेंडे को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसी से संबंधित एक और घटना में, फिलिस्तीन ने अमेरिकी शांति समझौते की निंदा की। आइएसआइएस इसे पूरी दुनिया में यहूदियों को लक्षित कर खुद को पुनर्जीवित करने के लिए नए अवसर के रूप में देख रहा है। फिलिस्तीन का समर्थन करके आइएसआइएस का नया नेतृत्व मीडिया का ध्यान खींचने के साथ फिलिस्तीनियों का भी सहयोग हासिल करना चाहता है। साथ ही वह इस बात का प्रचार करना चाहता है कि विश्व के बड़े हिस्से में उसका प्रभाव है और यहूदियों से सहानुभूति रखने वालों पर रासायनिक हथियारों का उपयोग कर दुनिया भर में यहूदियों के खिलाफ जिहाद छेड़ना चाहिए। शुरू में इस तरह के आक्रामक प्रचार को वास्तविकता के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन भविष्य में इस गुब्बारे के फूटने के पूरे आसार हैं।
यहां एक बात महत्वपूर्ण है। आइएसआइएस जहां भी अपनी मौजूदगी दर्ज कर रहा है, वहां जनता ने उसकी आतंकवादी गतिविधियों की तीखी आलोचना की है। पश्चिमी अफ्रीका के लोगों का अब उस संगठन की विचारधारा से मोहभंग हो रहा है, क्योंकि आइएसआइएस के पश्चिम अफ्रीका प्रांत (आइएसडब्लूएपी) नामक संगठन ने अफ्रीका के बुर्किना फासो, नाइजीरिया और साहेल क्षेत्र में भीषण हमले किए थे। इस हमले में सैकड़ों लोग मारे गए थे। दुनिया के अन्य हिस्सों में अपनी उपस्थिति, ताकत और गढ़ पर कब्जा दिखाने की आइएसआइएस की चाल का परिणाम, संगठन के लिए पूरी तरह विफल रहा है। साथ ही जनता की हतोत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया की वजह से भी इसे भारी झटका लगा है। यही वजह है कि आइएसआइस की गतिविधियों में गिरावट आ रही है। इसलिए अब आइएसआइएस के वीभत्स चेहरे को हटाने के लिए नए सिरे से आक्रमक होने की जरूरत है।
इस बीच, एक गैर-कुरैश ‘आमिर मोहम्मद अब्दुल रहमान अल-मावली अल-सल्बी’ को नया आइएस नेता नियुक्त किया गया। चर्चा है कि यह वही अब्दुल्ला कर्दाश है जो अक्टूबर 2019 में मारा गया था। इस संगठन के दूसरे लोगों में असंतोष बढ़ गया है। इससे भविष्य में संगठन पर गंभीर असर हो सकता है, क्योंकि माना जाता है कि कुरैशी जनजाति का कोई व्यक्ति ही अपने समुदाय (उम्माह) का नेतृत्व कर सकता है।
आइएस के खातों पर अंकुश लगने से भी संगठन की स्थिति कमजोर हो रही है। इसमें नए कैडर की भर्ती में गिरावट आ रही है। अब आइएस को जिहादी प्रचार जारी रखने में भी परेशानी आ रही है। यह जिहादी प्रचार को गुमनाम तरीके से जारी रखने के लिए सभी प्रयास कर रहा है। इसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम के रूप में देखा जा सकता है। आइएस की टेक्नोलॉजी इकाई एएफएक्यू (इलेक्ट्रॉनिक होराइजंस फाउंडेशन) नई वेबसाइट और नए दिशा-निर्देश, वीडियो उपलब्ध करा रही है। यह बता रही है कि रॉयट्स, कनवर्सेशन, थ्रीमा, टम टम, टेलिग्राम, मस्टोडोन, मी वी, ब्लॉक चेन मैंसेजर (बीसीएम), माइंड्स, नंदबॉक्स, पिंगल, हूप, लाइकी, टिक टॉक, मैट्रिक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कैसे ठीक ढंग से इस्तेमाल करें। इसके अलावा ये सोशल मीडिया पर फेक अकाउंट के बारे में सचेत भी कर रहे हैं।
जमीनी समर्थन में कमी और हाल ही में टेलीग्राम द्वारा आईएस खातों को अलग-थलग करने के कारण, आइएसआइएस अपने अस्तित्व को बचाए रखने के महत्वपूर्ण चरण से गुजर रहा है। फिलहाल वह इस स्थिति में नहीं है कि 12 अलग-अलग एप पर करीब 300 चैनल्स, समूहों, चैट आदि को जारी रख सके। यहां यह बताना उचित होगा कि नवगठित आईएसडब्ल्यूएपी को नाइजीरिया के बोर्नो/माली के स्थानीय लोगों की तरफ से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के कारण नुकसान उठाना पड़ा है। सुरक्षा बलों ने भी इस क्षेत्र में उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी है। दूसरे शब्दों में कहें तो लोगों ने आइएसडब्लूएपी के गेम प्लान को समझ लिया है।
यह भी उल्लेखनीय है कि इस्लामिक खलीफा की स्थापना के नाम पर साइबर स्पेस में अपने आक्रामक प्रचार के बावजूद आइएसकेपी अफगानिस्तान में विलुप्त होने के कगार पर है। हाल ही में, कुनार प्रांत के रूप में एक मजबूत क्षेत्र भी उसके हाथ से निकल गया है। वहां इसके कैडर के अनेक लोग मारे गए हैं। अब यहां बहुत कम संख्या में सक्रिय लोग बच गए हैं जिनके सामने खुद अस्तित्व का संकट मुंह बाए खड़ा है। अनेक स्थानीय लोग भी अपने मूल स्थानों पर लौट आए हैं, जो आईएस कैडरों के सामूहिक आत्मसमर्पण के बाद छोटे-छोटे काम कर बाहर रह रहे थे। इसके अलावा ऐसी कई बातें हैं जो आइएस के पतन की कहानी कहती है।
(लेखक सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी, सुरक्षा विश्लेषक, सामयिक मुद्दों के स्तंभकार हैं और मॉरीशस के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं। यह व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं)