Advertisement

लोकतांत्रिक तरीके से निकाले शांति का रास्ता

कश्मीर घाटी में जो हो रहा है वह अच्छा नहीं है। आज हो कुछ हो रहा है वह पहली बार भी नहीं है। इससे पहले भी घाटी में हिंसा की इस तरह की घटनाएं होती रही है। कारण साफ है कि घाटी का लोगों का जो गुस्सा है उसे न तो जम्मू-कश्मीर की सरकार ने समझा और न ही केंद्र की सरकार ने।
लोकतांत्रिक तरीके से निकाले शांति का रास्ता

बुरहान वानी की अंतेष्टि में उमड़ी भीड़ इस बात को प्रमाणित करती है कि वहां के लोग उसे शहीद मानते हैं और हमारे यहां आतंकी कहा जाता है। आखिर यह समस्या आई कहां से। इस पर विचार करने की जरूरत है। आज कश्मीर में 60 फीसदी से ज्या‍दा लोग 30 साल से कम उम्र के हैं। इन लोगों के पास कोई रोजगार नहीं है। पढऩे-लिखने का साधन नहीं है और लंबे समय से सैन्य बलों और पुलिस से घिरे देखे। उन लोगों के मन में नफरत का भाव पैदा हो गया है। पहले सेना या पुलिस के जवान जो ऑपरेशन करते थे उसमें गांव वालों का भी साथ मिलता था लेकिन आज यह ट्रेंड बदल गया है। आज गांव वाले उन आतंकियों के मुखबिर बनने लगे जिन्हें सेना या पुलिस खोजती थी। आखिर यह हुआ क्यों?

साल 2005 के आसपास कश्मीर में चार हजार के आसपास आतंकी थे आज उनकी संख्या 200 के आसपास रह गई है। आखिर यह सेना और पुलिस के जवानों के द्वारा ही हुआ है। लेकिन आज भी अगर यह कहा जाए कि सेना या पुलिस ही सब कुछ ठीक रखेगी तो यह गलत है। आज वहां की अवाम का जो गुस्सा है उसको समझने की जरूरत है। भारत विरोधी रूख को जानने की जरूरत है। जब तक जम्मू‍-कश्मीर की सरकार या केंद्र की सरकार उसको नहीं समझेगी तब तक इस तरह की घटनाएं नहीं रूकेगी। आज वहां की कानून-व्यवस्था एक बड़ी समस्या है। मुझे लगता है कि समस्या का समाधान लोकतांत्रिक तरीके से किया जाना चाहिए और उसमें वहां की अवाम, हुर्रियत के नेताओं और राजनीतिक दलों को शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही पाकिस्तान के साथ भी जो समस्या है उसके लिए रास्ता निकालना भारत सरकार की जिम्मे‍वारी है। 

(लेखक रिटायर्ड जनरल और रक्षा विशेषज्ञ हैं )

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad