साहित्य क्षेत्र का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ इस बार प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती को दिया जाएगा। 18 फरवरी 1925 में पाकिस्तान के हिस्से में चले गए गुजरात में जन्मी कृष्णा सोबती उस दौर में फेमिनिज्म पर लिख चुकी हैं जब लड़कियों को बोलने की आजादी भी नहीं थी।
सिर पर दुपट्टा, आंखों पर धूप का बड़े फ्रेम वाला चश्मा और बेबाक राय सोबती की पहचान रही है। वह जितना साफ लिखती हैं, स्वभाव में भी वह उतनी ही साफगोई से अपनी बात रखती हैं।
यूं तो कृष्णा सोबती की कई पुस्तकें और कहानियां चर्चित हैं लेकिन उनके पाठक और प्रशंसक आज भी उन्हें मित्रो मरजानी के कारण याद करते हैं। मित्रो के रूप में उन्होंने साहित्य को एक ऐसा महिला पात्र दिया जो न सिर्फ खुदखुख्तार थी बल्कि अपनी मर्जी से जीती भी थी। अपने लघु उपन्यास में उन्होंने मित्रो के किरदार को बहुत सशक्त बना कर एक अलग मिसाल पेश की थी।
कृष्णा सोबती ने बुद्ध का कमंडल लद्दाख नाम से एक यात्रा वृत्तांत भी लिखा जिसमें उन्होंने पारंपरिक यात्रा वृत्तांत के बजाय प्रकृति और इतिहास के धागों से गद्य का खूबसूरत ताना-बाना बुना। जिंदगीनामा, ए लड़की, डार से बिछुड़ी, यारों का यार भी उनकी चर्चित कृतियों में से हैं।
हाल ही में उन्होंने गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान तक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने अपने बचपन की यादों और विभाजन की त्रासदी पर लिखा है। यह आत्मकथ्यात्मक पुस्तक राजनैतिक परिवेश को भी बहुत खूबसूरती से रेखांकित करती है।