विकास, योजना और नीतियों का अंतिम उद्देश्य किसी भी समाज के सामाजिक कल्याण और भलाई को बढ़ाना है। केवल आय किसी भी समाज के कल्याण का पूर्ण मापदंड नहीं है, इसलिए मानव विकास समृद्धि के मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों पहलुओं को शामिल करता है, जिसमें दीर्घायु, साक्षरता और एक सम्मानजनक जीवन स्तर के संकेतक होते हैं।
मानव विकास का अर्थ विकल्पों का विस्तार करना है, जबकि गरीबी का अर्थ मानव विकास के सबसे बुनियादी अवसरों और विकल्पों से वंचित होना है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा प्रोत्साहित (promoted) मानव विकास की अवधारणा को सबसे पहले नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन और महबूब उल हक के लेखों में देखा गया था। 1990 में, UNDP ने अपनी पहली वैश्विक मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित की। इसके प्रकाशन के बाद से, महबूब उल हक के मार्गदर्शन में, मानव विकास के मापदंडों को विकसित और अधिक परिष्कृत करने के प्रयास किए गए। मानव विकास आय और धन से परे लोगों की क्षमताओं का विस्तार करने की प्रक्रिया है।
विकास का प्राथमिक उद्देश्य लोगों को गरीबी से मुक्त करना है, जो निम्न जीवन गुणवत्ता, वंचना (अभाव), कुपोषण और अशिक्षा से जुड़ी हुई है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index - MPI) एक अंतरराष्ट्रीय मापदंड है जो स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में वंचनाओं (अभावों) के आधार पर गरीबी की तीव्रता का आकलन करता है। यह सूचकांक राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़ों पर आधारित है।मानव विकास का मूल्यांकन गरीबी के दृष्टिकोण से करने हेतु, MPI को पहली बार नीति आयोग द्वारा वर्ष 2021 में प्रकाशित किया गया था, और इसी आकलन के आधार पर दूसरी MPI रिपोर्ट जुलाई 2023 में जारी की गई। यह रिपोर्ट गरीबी के तीन व्यापक संकेतकों — स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर — पर आधारित है, जिनमें कई उप- संकेतक शामिल हैं। MPI के उप-संकेतक विभिन्न सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals - SDGs) से भी जुड़े हैं, जैसे SDG 1 (गरीबी समाप्ति/No Poverty), SDG 2 (शून्य भूख/Zero Hunger), SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण/Good Health & Wellbeing), SDG 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा/Quality Education), SDG 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता/Clean Water & Sanitation), SDG 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा/Affordable & Clean Energy), SDG 8 (सम्मानजनक कार्य और आर्थिक विकास/Decent Work & Economic Growth) और SDG 10 (कम असमानता/Reduced Inequality)।
रिपोर्ट 2023 के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने बहुआयामी गरीबी में 9.89 प्रतिशत अंकों की उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है — यह 2015-16 में 24.85% से घटकर 2019-21 में 14.96% रह गई। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई — 13.31 प्रतिशत अंक की कमी, जो 32.59% से घटकर 19.28% हो गई। इसकी तुलना में, शहरी क्षेत्रों में गरीबी 3.38 प्रतिशत अंक की कमी के साथ 8.65% से घटकर 5.27% हो गई। राज्यों की बात करें तो बिहार ने बहुआयामी गरीबी में सबसे तीव्र कमी दर्ज की, जो 2015-16 में 51.89% से घटकर 2019-21 में 33.76% हो गई, यानी 18.13 प्रतिशत अंकों की कमी। इसके बाद मध्य प्रदेश का स्थान है, जहां बहुआयामी गरीबी 36.57% से 20.63% हुआ, यानी 15.94 प्रतिशत अंक की कमी। अन्य तीन राज्यों (उत्तर प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान) ने क्रमशः 14.75, 13.66 और 13.55 प्रतिशत अंक की गिरावट दर्ज की। यह भी ध्यान देने योग्य है कि ये सभी राज्य (बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान) पारंपरिक रूप से बीमारू श्रेणी वाले BIMAROU) राज्य माने जाते हैं, क्योंकि इन राज्यों में बुनियादी ढांचे की कमी, खराब सामाजिक संकेतक और लंबे समय से गरीबी की समस्या रही है। इसलिए इन राज्यों में गरीबी में आई यह गिरावट एक बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। ग्रामीण और शहरी प्रगति को देखते हुए, इन राज्यों में ग्रामीण गरीबी में सबसे अधिक कमी मध्य प्रदेश (20.58 प्रतिशत अंक) में दर्ज की गई, उसके बाद बिहार (19.05 प्रतिशत अंक) और उत्तर प्रदेश (17.94 प्रतिशत अंक) का स्थान है। बिहार की आबादी का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है, इसलिए ग्रामीण गरीबी में आई यह गिरावट राज्य के लिए एक प्रमुख उपलब्धि है। इसी प्रकार, शहरी गरीबी में बिहार (7.18 प्रतिशत अंक), ओडिशा (6.90 प्रतिशत अंक) और राजस्थान (6.67 प्रतिशत अंक) ने उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की है।
वास्तविक संख्याओं में देखें तो, वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच उत्तर प्रदेश में 3.43 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी (MPI) से बाहर निकले, इसके बाद बिहार में 2.25 करोड़, मध्य प्रदेश में 1.36 करोड़, राजस्थान में 1.08 करोड़ और पश्चिम बंगाल में 0.93 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए। देशभर में इस अवधि के दौरान कुल 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले। इस प्रकार, भारत में जितने लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं, उनमें लगभग 67 प्रतिशत सिर्फ इन पाँच राज्यों से हैं।
वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच, देश का MPI मान (Value) लगभग आधा, यानि 0.117 से घटकर 0.066 हो गया और बहुआयामी गरीबी में रहने वाली आबादी का अनुपात 24.85% से घटकर 14.96% हो गया, जिससे भारत सतत विकास लक्ष्य (SDG) 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा करने का लक्ष्य) को निर्धारित समय सीमा 2030 से काफी पहले पूरा करने की राह पर अग्रसर है। साथ ही, गरीबी की तीव्रता (Intensity of Poverty) भी 47% से घटकर 44% हो गई है।यह सरकार की सतत एवं समावेशी विकास को सुनिश्चित करने की रणनीतिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के प्रति उसकी निष्ठा का प्रमाण है। देश में स्वच्छता, पोषण, ईंधन, वित्तीय समावेशन, पेयजल और बिजली जैसी आवश्यक सेवाओं की पहुंच को सुधारने के लिए किए गए लक्षित प्रयासों से इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। सभी 12 MPI मापदंडों में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे कार्यक्रमों ने स्वास्थ्य से संबंधित अभावों को कम किया है, जबकि स्वच्छ भारत मिशन (SBM) और जल जीवन मिशन (JJM) ने स्वच्छता में 21.8 प्रतिशत अंकों का सुधार किया है। प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना ने खाना पकाने के ईंधन की पहुंच में 14.6 प्रतिशत अंक की वृद्धि की है। सौभाग्य, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना और समग्र शिक्षा जैसी पहलों ने भी बहुआयामी गरीबी को कम करने में मदद की है। विशेष रूप से, देश ने बिजली, बैंक खाता पहुंच और पेयजल से संबंधित अभावों में उल्लेखनीय कमी देखी है।
यदि राज्यों के प्रदर्शन पर ध्यान दिया जाए, तो यह देखा गया कि देश की 2.60% जनसंख्या वाले केरल में 2019-21 में बहुआयामी गरीबी में रहने वाले व्यक्तियों का अनुपात सबसे कम (0.55%) है, जबकि देश की 9.00% जनसंख्या वाले बिहार में गरीबी दर सबसे अधिक (33.76%) है। खास तौर पर, इन पांच वर्षों में बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश ने बहुआयामी गरीबी में सबसे बड़ी कमी देखी है, जिसका अर्थ है कि राज्यों की कल्याणकारी योजनाएं प्रभावी रूप से प्रत्येक गरीब व्यक्ति तक पहुंची हैं। गरीबी में तेजी से आई कमी इन प्रयासों का परिणाम है। इसलिए, राज्यों ने अच्छा प्रदर्शन किया है और अभी भी इसे बेहतर बनाने में जुटे हैं।
योजना आयोग को 2015 में समाप्त किए जाने के बाद, वर्तमान में सामान्य प्रयोजन वाले वित्तीय हस्तांतरण वित्त आयोग द्वारा किए जाते हैं, जबकि विशिष्ट प्रयोजन वाले हस्तांतरण संबंधित मंत्रालयों की जिम्मेदारी है। इसलिए, क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने और अधिक समानता को बढ़ावा देने के लिए, 16वें वित्त आयोग (FC16) द्वारा राज्यों के बीच संसाधनों के वितरण के क्षैतिज मानदंडों (Horizontal Criteria) में बहुआयामी वंचना (अभाव) के स्तर को शामिल किया जा सकता है।पहले भी, 12वें वित्त आयोग ने स्थानीय सरकारों को अनुदान के वितरण के लिए वंचना (अभाव) का सूचकांक अपनाया था। अब इसी प्रकार, राज्यों के MPI स्कोर को भी क्षैतिज मानदंडों में शामिल किया जा सकता है ताकि राज्यों के बीच करों के वितरण के लिए अभाव या गरीबी की सीमा को मापा जा सके।
डॉ. बरना गांगुली, बिहार लोक वित्त एवं नीति संस्थान (बीआईपीएफपी) में संकाय सदस्य हैं।
मनोज नारायण, सामाजिक नीति विशेषज्ञ हैं।