पढ़े-लिखे तथा संभ्रांत घरों के युवाओं के इस्लामिक आतंकवाद पर शामिल होने पर विशेष सावधानी बरती जाए। आज इंटरनेट का युग है। अभिभावकों को यह ध्यान मेंं रखना होगा कि उनका बेटा इंटरनेट पर किस तरह की सामग्री को पढ़ रहा है। अचानक से उसके धार्मिक बनने को भी अभिभावकों को ध्यान से लेना होगा। अचानक से धार्मिक होने के लक्ष्ण को केवल अभिभावक ही पहचान पाएगा। ऐसी स्थिति में उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले जाकर उसे धर्म का सही मतलब समझानेे की कोशिश करें।
इस्लाम में दी गई उकसावें वाली शिक्षा के प्रचार-प्रसार को रोकने की कोशिश की जानी चाहिए। कुरान कहती है कि इस्लाम का प्रसार किया जाए, वो चाहे जैसे हो। प्रसार के लिए हिंसा अख्तियार करने में सहायक ऐसी सभी सामग्रियों तथा शिक्षा से ध्यान हटाने का अब वक्त आ गया है। उन पर रोक लगाई जानी चाहिए। आज हम यह नहीं कह सकते कि गरीब और तंगहाली के जीवन से नाराज होकर ही मुस्लिम युवा आतंक की ओर आकर्षित हो रहे हैं। पढ़े-लिखे और संभ्रात घरों के युवा ही अब इधर आ रहेे हैं।
मुस्लिमों का संतुष्टिकरण भी रोकना होगा। ढाका में हसीना सरकार धर्मनिरपेक्ष ब्लागरों की हत्या पर खामोश रही। इसका नतीजा यह हुआ कि वहां अब आतंक पांव पसारने लगा है। हाल ही में हुए हमले ऐसी ढिलाई के ही परिणाम है। जब भी सरकार इस्लाम केे नाम पर हो रही अराजक गतिविधी देखें, तुरंत इस पर रोक लगाने की कोशिश करे। ऐसा करने के साथ ही मुस्लिमों का संतुष्टिकरण नहीं किया जाए। ऐसा करने से मुस्लिम समुदाय और दुस्साहसी हो जाता है।