फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखिका कल्याणी सिंह उन चुनिंदा शख्सियतों में से हैं, जिन्होंने पुरूष प्रधान फिल्म इंडस्ट्री में अपनी मेहनत, प्रतिभा और समर्पण से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना मुकाम हासिल किया है। पत्रकार के तौर पर अपना करियर शुरु करने वाली कल्याणी सिंह ने राइट इमेज इंटरनेशनल कंपनी की स्थापना की और गुनहगार, जुर्माना, राजा भैया जैसी फिल्मों का निर्माण किया। टीवी और विज्ञापन जगत में पहचान बनाने वाली कल्याणी सिंह ने हॉलीवुड निर्देशक मार्टिन स्कोर्सेसे की अकेडमी से फिल्म निर्देशन की ट्रेनिंग ली है। इन दिनों कल्याणी सिंह अपनी फिल्म "नानक नाम जहाज है" को लेकर उत्साहित हैं। सन 1969 में आई सुपरहिट पंजाबी फिल्म के नाम पर बनी इस फिल्म को कल्याणी सिंह ने बहुत मेहनत और संघर्ष से बनाया है। कल्याणी सिंह से उनके जीवन, फिल्मी करियर और आगामी फिल्म "नानक नाम जहाज है" को लेकर आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।
साक्षात्कार के मुख्य अंश :
फिल्म "नानक नाम जहाज है" से आपका परिचय किस तरह हुआ?
मैंने फिल्म "नानक नाम जहाज है" के बारे में बहुत सुना था। मैंने सुना था कि इस फिल्म को देखने के लिए लोग जूते, चप्पल उतारकर थियेटर में जाते थे। लेकिन सही मायनों में इस फिल्म से मेरा परिचय मेरे पति मान सिंह जी ने कराया। मान सिंह जी ने अपने पत्रकारिता के दिनों में "नानक नाम जहाज है" के निर्देशक का इंटरव्यू किया था। तभी से उनके मन में इस फिल्म को लेकर विशेष भावना घर कर गई थी।
"नानक नाम जहाज है" टाइटल से फिल्म बनाने का निर्णय क्यों लिया?
जब 4 साल पहले मैंने और मान सिंह जी ने फिल्म निर्माण की योजना बनानी शुरु की तो हमारे आगे कई चुनौतियां थीं। अव्वल तो हमारे पास वो बजट नहीं था कि हम फिल्म इंडस्ट्री के बड़े स्टार्स को अपनी फिल्म में कास्ट कर पाते। इसलिए हमें कुछ तो ऐसा ठोस और दमदार चाहिए था, जिसके आधार पर फिल्म की मजबूत नींव रखी जा सकती हो। आज की सच्चाई तो यही है कि कॉन्टेंट चाहे जितना अच्छा हो, फिल्म की कामयाबी के लिए स्टार, ब्रांड चाहिए होता है। हम अपनी फिल्म का आधार ढूंढ़ रहे थे कि मान सिंह जी के मन में ख्याल आया कि हमें "नानक नाम जहाज है" के टाइटल से फिल्म बनानी चाहिए। एक तो यह टाइटल ही अपने आप में सुपरहिट रहा है और दूसरा इसमें बाबा नानक का नाम शामिल है, जिसके बाद इसे किसी स्टार या ब्रांड की जरूरत नहीं पड़ती। हमें टाइटल के इस्तेमाल के लिए ओरिजिनल फिल्म के निर्माताओं से अधिकार लेने थे। इसमें 2 वर्ष का समय बीत गया। आखिरकार बाबा नानक की कृपा से, 2 साल के इंतजार के बाद हमें फिल्म का टाइटल मिल गया।
फिल्म "नानक नाम जहाज है" के निर्माण की यात्रा साझा कीजिए?
फिल्म के टाइटल से बाबा नानक का नाम जुड़ा था। इसलिए हमारी जिम्मेदारी कहीं बड़ी थी। हमने जिम्मेदारी समझते हुए एक अच्छी कहानी की तलाश शुरु की। लेकिन काफी खोजबीन के बाद भी हमें ऐसी कहानी नहीं मिली, जो दिल को सुकून पहुंचा सके। तब मैंने अपने जीवन से जुड़े अनुभवों पर कहानी लिखनी शुरू की। मेरे और मान सिंह जी के जीवन से ऐसे कई लोग जुड़े हैं, जिन पर बाबा नानक की कृपा हुई और उनका जीवन बदल गया। मैंने जब कहानी लिखी दी तो मान सिंह ने कहा कि मुझे ही फिल्म का निर्देशन करना चाहिए। उनका मानना था कि मैंने चूंकि इस कहानी को जिया है, इसलिए जो न्याय इस कहानी के साथ मैं कर सकती हूं, कोई दूसरा नहीं कर सकता। मैंने सही मायने में कहानी को रोम रोम जिया था और फिर मेरे पास हॉलीवुड निर्देशक मार्टिन स्कॉर्सेसे की फिल्म निर्देशन की ट्रेनिंग थी। मुझे बाबा नानक ने हिम्मत और साहस दिया और मैंने फिल्म का निर्देशन करने का निर्णय लिया। फिल्म के निर्माण के दौरान मैंने पंजाबी भाषा सीखी। मैंने फिल्म के हर डिपार्टमेंट को अच्छी तरह से समय दिया और उसे बेहतरीन बनाने का प्रयास किया। इस मेहनत का फल है कि फिल्म का निर्माण हो चुका है। बाबा नानक की कृपा से यह फिल्म शीघ्र ही दर्शकों के बीच होगी।
इस पूरे सफर में आपके परिवार ने आपका कितना साथ दिया ?
मैं आज जो कुछ भी हासिल कर सकी हूं, उसमें पूरी तरह से मेरे परिवार का योगदान है। परिवार के योगदान के बिना यह फिल्म संभव नहीं थी। मेरे पति मान सिंह जी शुरूआत से मेरा मार्गदर्शन किया।उन्होंने फिल्म निर्माण के दौरान कदम कदम पर मेरा हौसला बढ़ाने का काम किया। इसी हौसले के कारण मैं यह फिल्म बना सकी हूं। मेरे बेटे ने मेरा दाखिला मार्टिन स्कोर्सेसे की अकेडमी में कराया, जहां मैंने फिल्म निर्देशन की बारीकियां सीखी। फिल्म निर्देशन की ट्रेनिंग मेरे बहुत काम आई। फिल्म निर्देशन एक जिम्मेदारी से भरा हुआ टेक्निकल काम है। मैं अपने परिवार के सहयोग से ही इस काम को सफलतापूर्वक कर पाई हूं।
वो क्या माहौल या कारण रहे होंगे, जब आपके मन में कला, सिनेमा के प्रति आकर्षण पैदा हुआ ?
मुझे बचपन से ही फिल्में देखना पसंद था। मैं हमेशा स्कूल में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी। मुझे मंच पर प्रस्तुति देने में आनंद आता था। मैंने गोपी कृष्ण जी से कथक सीखा और शंभू सेन जी से शास्त्रीय गायन की तालीम हासिल की। मुझे कला, सिनेमा, संगीत में बहुत रस मिलता था। कला, सिनेमा के प्रति मेरा रुझान तब और बढ़ा, जब मेरी मुलाकात मेरे पति मान सिंह जी से हुई। मान सिंह जी हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय थे। उन्होंने मुझे भी लेखन कार्य करने के लिए प्रेरित किया। तब मैं अबू धाबी बैंक में काम करती थी। मुझे मान सिंह जी का सुझाव पसंद आया। मैंने नौकरी छोड़कर पत्रकारिता शुरु कर दी। मैं अंग्रेजी भाषा में लिखती थी। अंग्रेजी पत्रकारिता के दिनों में मैंने फिल्मों के बारे में लिखा। फिल्मी सितारों का इंटरव्यू किया। इससे मेरी रुचि और अधिक बढ़ी। कुछ समय बाद मैंने और मेरे पति मान सिंह जी ने विज्ञापन फ़िल्में बनानी शुरु की। फिर धीरे धीरे विज्ञापन फिल्मों से स्वतंत्र फिल्म निर्माता तक का सफर तय किया। इस दौरान हमने गुनहगार, जुर्माना, राजा भैया जैसी फिल्मों का निर्माण किया। हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी की बात यह रही कि एक नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से आने के बावजूद हमने अपनी मेहनत, लगन, प्रतिभा और समर्पण से एक मुकाम हासिल किया। यही हमारी कमाई है कि हम आज भी अपनी फिल्में बना रहे हैं, उन कहानियों को कह रहे हैं, जो हमारे दिल को छू जाती हैं।
एक महिला फिल्म निर्माता के रूप में आपको बॉलीवुड में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
जिस दौर में मैंने काम करना शुरु किया, उस समय महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। अभिनेत्रियों के अलावा गिनी चुनी महिलाएं ही फिल्म निर्माण कार्य से जुड़ी हुई थीं। अभिनेत्रियों की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं थी। उनको वही पारंपरिक छवि वाले किरदार मिलते थे। हिन्दी फिल्में केवल नायक यानी हीरो के बारे में होती थीं। फिल्मी गलियारों में महिलाओं को लेकर बातें, अफवाहें बहुत तेजी से फैलती थीं।मैंने क्योंकि फिल्मों में आने से पहले लम्बा समय पत्रकारिता में बिताया था इसलिए मैं फिल्मी दुनिया के रंग ढंग से भली भांति परिचित थी। मैंने हमेशा अपना एक दायरा रखा, जिसके भीतर सभी को आने की इजाज़त नहीं थी। यदि आप काम को लेकर समर्पित हैं, आपके अंदर अनुशासन है तो ही आप मुझ तक पहुंच सकते हैं। मेरा मानना है कि जब आपकी मेहनत की कमाई दांव पर लगती है तो आपको पूरी ईमानदारी से काम करना चाहिए बजाय इसके कि आप गॉसिप और प्रैंक में व्यस्त हैं।
सोशल मीडिया, यूटयूब चैनल्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म ने मुंबई आने और बॉलीवुड में काम करने की अनिवार्यता को ख़त्म कर दिया है, क्या इससे बॉलीवुड का महत्व और क्रेज ख़त्म हो जाएगा?
बिलकुल। आज ही आप देखें तो धीरे धीरे बॉलीवुड का क्रेज खत्म हो रहा है। पहले टीवी, सिनेमा और रेडियो के अलावा कुछ नहीं था। आपको मजबूरी में मुंबई आना ही पड़ता था। फिल्म बनाने की लागत अधिक थी। फिल्म रिलीज करने के लिए मंच नहीं थे। आज आपके पास अगर फोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया अकाउंट्स हैं तो आप को किसी के आगे गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं है। आपके अंदर यदि हुनर है तो आप दुनिया के किसी भी कोने में, अपने कॉन्टेंट से कामयाबी हासिल कर सकते हैं। आपके और दर्शकों के बीच अब सीधा संबंध है। दिल से निकली हुई चीज, दिल तक जरुर पहुंचती है। आज केवल फोन से वीडियो, शॉर्ट फिल्म बनाकर लोग यूट्यूब स्टार बन गए हैं। यह दिखाता है कि अब मुंबई या बॉलीवुड पर कलाकारों की निर्भरता खत्म सी हो गई है।
कठिन समय में खुद को कैसे मजबूत रखती हैं?
मेरा मानना है कि जीवन में अच्छा और बुरा लगा रहता है। बुरा समय आता है तो ही अच्छे समय की अहमियत रहती है। इसलिए हमें विचलित नहीं होना चाहिए। यह सब कुछ जीवन का हिस्सा है। इसे जीवन का अभिन्न अंग मानकर जीना चाहिए। अगर आप पूरी ईमानदारी से काम करते रहेंगे तो आप जरुर कामायाब बनेंगे और एक दिन आपकी तकलीफें, खुशियों में बदल जाएंगी।
आने वाले दिनों में आप किन नए प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं?
अभी तो मैं पूरी तरह से "नानक नाम जहाज है" की मार्केटिंग और रिलीज को लेकर काम कर रही हूं। मेरा सारा ध्यान उसी पर है। इसके बाद मेरी "क्यों चुप है गंगा", "झोलझाल डॉट कॉम", "काश तुमसे मोहब्बत न होती" नाम की तीन फिल्मों की प्लानिंग है। बस दर्शकों का प्यार मिलता रहे तो ये सफर यूं ही चलता रहेगा।