“आज इंटरनेट से छात्र किसी भी शैक्षणिक संस्थान के बेहतरीन शिक्षक से वर्चुअल क्लास के जरिए पढ़ सकते हैं। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में सर्व शिक्षा को ऑनलाइन करने के दीर्घकालीन फायदे हो सकते हैं”
विज्ञान और तकनीक की प्रगति कभी-कभार विध्वंस का कारण बनती है, लेकिन उसका अगर विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग किया जाए तो उसके असाधारण लाभ हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जो नीति-निर्धारकों की प्राथमिकता नहीं रहे हैं। शासकों और प्रशासकों ने दशकों से शिक्षा की उपेक्षा की है, भले ही राष्ट्र-निर्माण में उसका स्थान सर्वोपरि है। कभी कम बजट का रोना रोकर, कभी सियासी मजबूरियों का हवाला देकर और कभी कोरी उदासीनता की वजह से। शिक्षा प्राथमिकताओं की फेहरिस्त में हमेशा अंतिम स्थान पर रही है। आजादी के पचहत्तर वर्ष बीत जाने के बाद भी देश की शिक्षा-व्यवस्था बद से बदतर होती गई है। कहीं सरकारी विद्यालयों के भवन जीर्णशीर्ण है तो कहीं शिक्षकों का टोटा है।
सत्ताधीशों के तमाम प्रयासों और योजनाओं के बावजूद आज सरकारी स्कूलों को अच्छी शिक्षा का पर्याय नहीं समझा जाता है। आम तौर पर ये शिक्षण संस्थान सिर्फ उसी तबके के लिए अंतिम विकल्प समझे जाते हैं, जिनकी हैसियत निजी संस्थानों की भारी-भरकम फीस भरने की नहीं है। गौरतलब है, यह तबका छोटा नहीं है। अभी भी करोड़ों लोग अपने बच्चों का सरकारी स्कूलों में ही दाखिला कराते हैं। हर वर्ष राज्य सरकारों द्वारा आयोजित मैट्रिक की परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की संख्या यह बताने के लिए काफी है कि देश के सर्वांगीण विकास के लिए निःशुल्क शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। लेकिन यह भी सही है कि हर वह परिवार जो निजी संस्थानों में अपने बच्चों का दाखिला कराने में सक्षम है, सरकारी विद्यालयों की ओर रुख नहीं करता। कल्याणकारी राज्य में इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि लोग निःशुल्क शिक्षा के साथ दोपहर का भोजन मिलने के बावजूद निजी संस्थानों को प्राथमिकता देते हैं, भले ही उन्हें अपने बाकी खर्चों में कटौती करनी पड़े। यही कारण है कि निजी संस्थान हर कस्बे में कुकुरमुत्ते की तरह पनप आए हैं, जिनकी विश्वसनीयता उस इलाके के किसी भी सरकारी विद्यालय से बेहतर समझी जाती है। इसके बावजूद हुक्मरानों से ऐसी अपेक्षा करना फिलहाल किसी दिवास्वप्न जैसा लगता है कि वे आने वाले समय में शिक्षा के लिए निर्धारित बजट को कम से कम दोगुना कर देंगे। आखिरकार शिक्षा को प्राथमिक एजेंडा बनाकर अभी तक कोई चुनाव नहीं जीता गया है।
शिक्षा का विकास किसी भी प्रगतिशील समाज की निशानी है। जो समाज जितना अशिक्षित रहता है, वह उतना ही पिछड़ा और रूढ़िवादी होता है। यह सही है कि किसी पिछड़े या विकासशील देश के लिए अन्य जरूरतों की कीमत पर महज शिक्षा के लिए देश के सालाना बजट का बड़ा भाग आवंटित नहीं किया जा सकता, लेकिन बहुत सारे ठोस कदम उठाए जा सकते हैं, जिनके लिए उपलब्ध राशि से अधिक राजनैतिक इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है। उपलब्ध संसाधनों का ही अगर समुचित उपयोग हो, तो शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हो सकती है और आधुनिक तकनीक इस लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग को सुगम बना सकती है।
आउटलुक की आवरण कथा इस बार उन शिक्षक-नायकों पर केंद्रित है, जिन्होंने इंटरनेट के दौर में अनूठे प्रयोग कर शिक्षा के क्षेत्र में नई लकीर खींची है। आज ये शिक्षक लाखों छात्रों को ऑनलाइन माध्यमों से पढ़ा रहे हैं। अपनी वर्चुअल क्लास में वे अपने तमाम छात्रों से सीधे संवाद कायम करने में सफल होते हैं। वैसे तो ऑनलाइन शिक्षा कोविड-19 महामारी से पहले से ही छात्रों को आकर्षित कर रही थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान उसकी लोकप्रियता में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। उस दौरान कई बड़ी कंपनियों ने भी इस क्षेत्र में कदम रखा लेकिन अधिकतर बाद में फ्लॉप हो गईं। सफलता सिर्फ उन्हें हाथ लगी जिनका ध्येय महज मुनाफा कमाना नहीं, छात्रों को कुछ नए ढंग से, अभिनव प्रयोग कर पढ़ाना था। एक विशेष गुण जो उन सबमें देखने को मिला, वह उनका लीक से हटकर अपने क्लासरूम को छात्रों के लिए ज्यादा से ज्यादा दिलचस्प बनाना। इन शिक्षकों ने निजी पहल कर गुणवत्तापूर्ण कोचिंग मुहैया कराई, जो देश और विदेश में रह रहे किसी भी छात्र के लिए सुगमता से उपलब्ध थी।
क्या इन शिक्षकों की सफलता से नीति-निर्धारकों को कुछ सीखने की जरूरत है? क्या कुछ ऐसा ही प्रयोग देश में गुणवत्ता शिक्षा प्रदान करने वाली हर संस्था को करने की आवश्यकता है, चाहे वे निजी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हों या सरकारी? देश में आखिरकार प्रतिभाशाली शिक्षकों की कमी नहीं, जो विभिन्न संस्थानों में कार्यरत हैं। उनके क्लासरूम के लाइव या रिकॉर्डेड प्रसारण से उन लाखों विद्यार्थियों को लाभान्वित किया जा सकता है, जो सुदूर इलाकों में रहते हैं। आज इंटरनेट डेटा की सर्वत्र उपलब्धता से यह संभव है कि वे किसी महानगर में स्थित शैक्षणिक संस्थान के बेहतरीन शिक्षक की वर्चुअल क्लास के माध्यम से ज्ञान अर्जित कर सकें। इसके लिए निश्चित रूप से अतिरिक्त संसाधन और राशि की जरूरत पड़ेगी लेकिन छात्रों से मामूली फीस लेकर या सरकारें रियायत देकर इसे संभव बना सकती हैं। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में सर्व शिक्षा को ऑनलाइन करने के दीर्घकालीन फायदे क्या हो सकते हैं, इस पर आज गौर करने की जरूरत है।