ओटीटी माध्यम आने से प्रतिभाशाली कलाकारों को अभिव्यक्ति के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। इस कारण युवा कलाकारों की प्रतिभा संपूर्णता के साथ सामने आ रही है और गुणवत्ता से लबरेज कॉन्टेंट का निर्माण भी हो रहा है। "कोटा फैक्ट्री", "बेसमेंट कंपनी", "लिटल थिंग्स", "गर्लफ्रेंड चोर" जैसी वेब सीरीज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके अभिनेता मयूर मोरे, ऐसे ही प्रतिभावान अभिनेता हैं, जिन्होंने ओटीटी माध्यम से अपनी पहचान बनाई है। वेब सीरीज के साथ साथ " सचिन ए बिलियन ड्रीम्स", "कसाई" जैसी फिल्मों में अपने काम से मयूर मोरे ने दर्शकों को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। फिलहाल मयूर मोरे वेब सीरीज "चिड़िया उड़" की शूटिंग कर रहे हैं। मयूर मोरे से उनके जीवन, अभिनय सफर को लेकर आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।
अपनी आगामी वेब सीरीज "चिड़िया उड़" के बारे में कुछ बताइए?
चिड़िया उड़ मुम्बई के कमाटीपुरा इलाके पर आधारित वेब शो है। यह इलाका आम तौर पर वैश्यावृत्ति की गतिविधियों के कारण चर्चा में रहता है। इसमें जैकी श्रॉफ, मीता वशिष्ठ, सिकंदर खेर, गोपाल कुमार सिंह जैसे कमाल के कलाकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
जीवन के शुरुआती दिनों को याद करते हुए हमें अपनी यात्रा के बारे में बताएं?
मैं सूरत में पैदा हुआ और मुंबई में परवरिश हुई।पढाई से बचने के लिए स्कूल में जब कभी सांस्कृतिक कार्यक्रम होते तो मैं उन सभी में बढ़ चढ़कर भाग लेता था। मगर हर कार्यक्रम एक बुरा स्वप्न साबित होता।एक दौर आया जब क्रिकेट से दीवानगी की हद तक इश्क़ हो गया। मैं दिलीप वेंगसरकर क्रिकेट अकेडमी में दाखिला लेने गया। वहां के कोच मेरी गेंदबाजी से बहुत प्रभावित हुए। मगर मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नही थी कि मैं फीस दे पाता इसलिए मैं अकेडमी ज्वॉइन नहीं कर सका। तब बहुत पीड़ा हुई। जब क्रिकेटर बनने का सपना टूटा तो लगा कि अब क्या किया जाए। मेरे आस पास कोई होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहा था तो कोई आईटीआई का कोर्स। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए। तभी एक दिन विज्ञापन नजर आए कि म्यूजिक विडियो में काम करने के लिए लड़के लड़कियों की ज़रूरत है। मेरे भीतर हमेशा से यह चाहत थी कि मैं टीवी पर आऊं। मैंने प्रयास किए लेकिन फिर असफलता हाथ लगी। मुझे मालूम हुआ कि वीडियो में काम करने के लिए सेटिंग चाहिए थी कुछ पैसा खर्च भी खर्च करना था। दिन बीत रहे थे और मुझे कुछ न कुछ करना था। तब मैंने एक कॉल सेंटर में जॉब की। यह सबसे अजीब अनुभव था। जॉब में मुझे महसूस हुआ कि मैं कुछ भी कर सकता हूँ लेकिन नौकरी नहीं। मैं रोया करता था। मेरा दर्द, मेरी पीड़ा चरम पर थी। इस पीड़ा से मुक्ति के लिए मैंने नाटकों में काम करना शुरू किया। थियेटर ज्वॉइन करने के बाद मेरी सोच बदल गई, जीवन निखर गया। मुझे आत्मविश्वास मिला और धीरे धीरे बैक स्टेज से शुरू कर के छोटे रोल करते करते लोगों की बीच मेरी पहचान बनने लगी।इस तरह अभिनय शुरू हुआ।फिर समय के साथ,इस सफर में टीवी शो, फिल्म, वेब शो जुड़ते गए।
अभिनय की दुनिया में आपको क्या आकर्षित कर रहा था ?
अभिनय ने मुझे मौक़ा दिया है उन चरित्रों को जीने का, जो मैं नहीं हूँ, न हो सकता हूँ। उदाहरण के लिए, मैं क्रिकेटर बनना चाहता था मगर बन नहीं पाया। लेकिन अपनी पहली ही फिल्म “सचिन ए बिलियन ड्रीम्स” में मैंने क्रिकेटर का किरदार निभाया। यानी अपने अधूरे सपने को जी सका। इसलिए अभिनय एक वरदान की तरह है मेरे लिए।
"सचिन ए बिलियन ड्रीम्स" में सचिन की भूमिका निभाना कितना अहम था ?
क्रिकेट मेरी जिन्दगी का आधार था। मैं सुबह उठने से रात सोने तक केवल क्रिकेट के बारे में सोचता था। मैं अवसर ढूंढता था कि पढ़ाई से बचकर क्रिकेट खेल सकूं। लेकिन मैं जिस परिवार से आया हूँ, वहां हमेशा से ही आर्थिक अस्थिरता रही। पिताजी का कारपेंटर का काम था। इसलिए क्रिकेटर बनने के लिए जरूरी ट्रेनिंग नहीं ले सका। मगर जब "सचिन ए बिलियन ड्रीम्स" में अवसर मिला तो जीवन में पहली बार मुझे मेरे वजूद का एहसास हुआ। लोगों ने पहली बार यह महसूस किया कि मेरा कुछ मूल्य है। सचिन का किरदार निभाना सचमुच स्वप्न के सच होने जैसा था।
जीवन में क्या कोई ऐसा वक़्त भी आया, जब लगा कि सब खत्म हो गया है?
आर्टिस्ट जीवन में रोज ही ऐसे मौके आते हैं,जब कमज़ोर महसूस होता है। जब आप सौ रूपये और पांच सौ रूपये कमाने के लिए दिन भर मेहनत करते हैं। जब आप एक छोटे से सीन के लिए सुबह से शाम और फिर रात तक इंतज़ार करते हैं। जब आप छोटी छोटी जरूरतों के लिए घर वालों की तरफ़ देखते हैं, तब कमज़ोर महसूस होता है।सब कोई आपकी प्रतिभा को नहीं पहचान रहा होता है तो असहज महसूस होता है। लेकिन मैंने कभी इसे दुःख की तरह नहीं लिया। हर सुख एक क़ीमत पर आता है। मुझसे पहले हजारों लोग संघर्ष का रास्ता तय करने के बाद ही महान बने हैं। वह आदर्श और उदाहरण हैं कि हमें अपने संघर्ष का शोक नहीं करना है।
जीवन में सुकून के क्षण कौन से रहे ?
सबसे सुकून का पल तो क्रिकेट से ही जुड़ा है। फिल्म “ सचिन ए बिलियन ड्रीम्स” का हिस्सा बनने के बाद मेरे बचपन के, मोहल्ले के, स्कूल के दोस्तों ने जो प्रेम, सम्मान, ख़ुशी देने का सिलसिला शुरू किया वह सबसे अधिक सुकून देने वाला पल था। तब मैंने महसूस किया कि जब आपकी एक उम्मीद टूट जाए तो हताश मत होइए। बहुत मुमकिन है कि ईश्वर, अस्तित्व, प्रकृति आपके लिए कई दूसरे चिराग़ रोशन कर दें।
जीवन में क्या डर हैं ?
एक सामान्य व्यक्ति को जो डर होते हैं, अगर उससे हटकर बात करें तो मुझे यह डर रहता है कि मैं कहीं एक्टिंग से बोर न हो जाऊं। मेरा ऐसा स्वाभाव रहा है कि मैं अक्सर चीज़ों से बोर हो जाता हूँ। इसलिए डरता हूँ कभी कभी कि एक्टिंग से जो किसी रोज़ बोर हो गया तो क्या करूँगा। बाक़ी तो सब आता जाता रहता है, इसलिए उसका डर कैसा।