सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में दिव्यांग कैदियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं और देश भर की जेलों में दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम, 2016 के क्रियान्वयन के अनुरोध वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता सत्यन नरवूर द्वारा दायर याचिका पर भारत संघ और अन्य को नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा, ‘‘नोटिस जारी कर रहे हैं, जिसका जवाब चार सप्ताह के भीतर दिया जाए।’’
दिव्यांग कैदियों की ‘‘गंभीर उपेक्षा’’ को उजागर करने के लिए प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा और सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के उदाहरण देते हुए याचिका में कहा गया है कि दिव्यांग कैदियों की विशेष जरूरतों को पूरा करने के लिए मौजूदा जेल अधिनियम में आवश्यक प्रावधान शामिल किए जाने चाहिए।
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा की पिछले साल 12 अक्टूबर को हैदराबाद के एक सरकारी अस्पताल में स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के कारण मृत्यु हो गई थी। मौत से सात महीने पहले उन्हें माओवादियों के साथ कथित संबंधों के आरोप वाले एक मामले में 10 साल जेल में रहने के बाद बरी किया गया था।
भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए स्वामी की 2021 में मुंबई के होली फैमिली अस्पताल में मौत हो गई थी।
याचिका में कहा गया है कि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के लागू होने के आठ साल से अधिक समय बाद भी अधिकतर राज्य जेल नियमावली में ‘रैंप’ (दिव्यांगजनों के अनुकूल मार्ग) और अन्य आवश्यक उपायों के लिए अनिवार्य प्रावधान शामिल नहीं हैं।
याचिका में कहा गया है, ‘‘यह विफलता जेल परिसर के भीतर दिव्यांग कैदियों की बुनियादी गतिशीलता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है, जो सीधे तौर पर अधिनियम की वैधानिक आवश्यकताओं का उल्लंघन करती है।’’
‘रैंप’ और सुलभ शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी की ओर इशारा करते हुए याचिका में दावा किया गया कि दिव्यांग कैदी अक्सर अपने दैनिक कार्यों में सहायता के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं।