‘मेरे आंसुओं पे ना मुस्कुरा, कई ख्वाब थे जो मचल गये’....ये गाना फिल्म ‘मोरे मन मितवा’ का है, जो सन 1965 में आयी थी। इस गाने के संगीतकार थे दत्ताराम। मुबारक बेगम की बिल्कुल अलग तरह की आवाज़, उसका दर्द और उसके भीतर छिपी नाज़ुकी जैसे गानों में छलक-छलक पड़ती है। कमाल की बात ये है कि मुबारक बेगम को कई-कई बेमिसाल गाने मिले, शायरी के नज़रिये से भी और धुन के नज़रिये से भी। जैसे सन 1953 में आई फिल्म ‘दायरा’ को याद कीजिए। संगीतकार थे जमाल सेन। मंदिर के घंटों के बीच आते मुबारक बेगम और रफ़ी के स्वर। उस पर बहुत ही विकलता भरा आलाप....। ‘थाम लो अपनी राधा को भगवन/ ये ना कहने लगे कोई बिरहन/ मुंह छिपाकर संवरिया ने मारा/ देवता तुम हो मेरा सहारा’।
तलत महमूद के साथ उनका गाया ‘शगुन’ फिल्म का गाना याद कीजिए—‘इतने क़रीब आके क्या जाने किसलिए कुछ अजनबी से आप हैं कुछ अजनबी से हम’। इसे साहिर ने लिखा और खैयाम ने स्वरबद्ध किया। सन 1955 में सचिन देव बर्मन के निर्देशन में गाया साहिर लुधियानवी का लिखा गीत याद कीजिए—‘वो ना आयेंगे पलटकर, उन्हें लाख हम बुलायें’।
2010 में हम एक आयोजन के सिलसिले में साथ इलाहाबाद गए थे। उनके भीतर बहुत दर्द था, तड़प थी, जिंदगी ने उनके साथ इंसाफ़ नहीं किया। जिस तरह की बातें उनके बारे में प्रचलित थीं, उसके बाद उनके क़रीब जाते डर लगता था। पर उनकी दुनिया में जाकर पता लगा कि उनके भीतर एक मासूम बच्ची है। बहुत भोली थीं वो। विविध-भारती के लिए 2014 में उनसे लंबी बातचीत की थी। तब वो बहुत कुछ भूल जाती थीं। इसलिए इंटरव्यू का स्वरूप ऐसा बना लिया था कि मानो घर के किसी बुजुर्ग से पुरानी बातें दोहरवाई जा रही हों। जिंदगी भर संघर्ष किया 'आपा' ने। याद आ रहा है कि पच्चीस दिसंबर की उस शाम जब मंच से उन्होंने गाया था--'बेमुरव्वत बेवफ़ा बेगाना-ए-दिल आप हैं/ आप मानें या ना मानें मेरे क़ातिल आप हैं' और ये भी 'मेरे आंसुओं पे ना मुस्कुरा कई ख्वाब थे जो मचल गए'
(लेखक विविध-भारती में कार्यरत हैं।)