कोविड-19 के दौरान दुनिया भर की परिवहन प्रणालियों को बड़े पैमाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और भारत में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। उदहारण के तौर पर, लॉकडाउन में दिल्ली मेट्रो को 1000 करोड़ रुपयों से भी ज्यादा का राजस्व नुकसान हुआ है। एक दूसरे से दूरी बनाए रखना अर्थात सोशल डिस्टन्सिंग अब एक नियम बन चूका है और यात्राएं अभी भी कम हो रही है, इसलिए परिवहन प्रणालियों की मध्यम अवधि की वित्तीय व्यवहार्यता के लिए खतरा कायम है। फिर भी, सरकारें और शहरी योजनाकार सुरक्षित, सस्तें और विश्वसनीय परिवहन विकल्प प्रदान करने के लिए परिवहन प्रणालियों को नया स्वरूप दे रहे हैं। इस प्रक्रिया में, यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि नई प्रणाली सभी के लिए समावेशी और सुविधाजनक हो। यह अगर नहीं हो पाया तो 100 मिलियन से भी अधिक भारतीय विकलांगों जैसे कई कमज़ोर समुदायों को और अधिक पीछे और दुर्बल कर देने का खतरा है।
कोविड-19 से पहले भी, विकलांग व्यक्तियों (PwDs) को परिवहन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था, जिससे विभिन्न सामाजिक आर्थिक अवसरों तक उनकी पहुंच सीमित रही है। कर्ब रैंप्स न होने, ऊबड़खाबड़ रास्तें, आवारा जानवरों और अनधिकृत अतिक्रमण के कारण वे फुटपाथों का भी सुरक्षित इस्तेमाल नहीं कर पाते। मुंबई के एक व्हीलचेयर यूज़र थॉमस डिसूज़ा ने जानकारी दी कि वे सेंट माइकल्स चर्च की ओर जाने वाले रेती बंदर फुटपाथ पर 100 मीटर्स तक भी अपने आप, सुरक्षित रूप से जा नहीं पाते।3 देश भर के अधिकांश ट्रेन स्टेशनों में उचित रैंप नहीं हैं।4 इससे व्हीलचेयर यूज़र्स के लिए स्टेशन में प्रवेश करना, सही प्लेटफार्म तक पहुंचना और ट्रेन में चढ़ पाना नामुमकिन हो जाता है। मुंबई के एक अंध व्यक्ति केतन कोठरी बताते है कि दृश्य विकलांगता वाले यात्री अपने आसपास के गैर-विकलांग यात्रियों से सहायता लिए बिना बस नंबर नहीं पढ़ पाते।5 नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड की एक नेत्रहीन महिला ने बताया, कई बार, बस स्टॉप पर विकलांग यात्रियों को लेने के लिए बसें रुकती नहीं। परिवहन प्रणालियों में विकलांग व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव और कलंक के कई मामलें सामने आए हैं। एक कार्यकर्ता गीजा घोष को एक बार उनकी विकलांगता सेरेब्रल पाल्सी के लिए एक फ्लाइट से जबरन डी-बोर्ड किया गया था।6
संचालन प्रक्रियाओं को अद्यतन करने, डिजिटलीकरण शुरू करने और नए बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सरकार और परिवहन परिवहन संचालक परिवहन को फिर से शुरू करने के लिए तेज़ी से दौड़ लगा रहे हैं। तत्काल जरुरत होने के बावजूद, आज भारत उपयोगितावादी दृष्टिकोण लेने का, कमजोर और पिछड़े हुए लोगों को नुकसान पहुंचाकर बहुसंख्यकों के लिए समाधान बनाने का जोखिम नहीं उठा सकता है।
इससे पहले, जब भौतिक और डिजिटल बुनियादी सुविधाओं ने इन समुदायों को विफल कर दिया था, सामाजिक बुनियादी ढांचे ने कुछ हद तक कमियों को भरने में मदद की। हालांकि, कोविड-19 के बाद, सामाजिक बुनियादी ढांचे में भी कई दरारें दिखाई दी हैं। राइजिंग फ़्लेम और साइटसेवर्स द्वारा प्रकाशित जुलाई 2020 की रिपोर्ट में कोविड लॉकडाउन के दौरान विकलांग महिलाओं द्वारा अनुभव की गयी चुनौतियों को दर्ज किया गया है।7 रिसर्च में सहभागी हुए 82 में से 90% से अधिक ने बताया कि उन्हें सूचना, संचार, भौतिक और डिजिटल स्थानों तक पहुंच में बाधाओं का सामना करना पड़ा। एक 35 वर्षीय बहरी महिला ने कहा कि वे कोविड- लॉकडाउन के दौरान मोबिलिटी के बारे में विश्वसनीय जानकारी समय पर प्राप्त नहीं कर सकी क्योंकि वह जानकारी सांकेतिक भाषा में प्रकाशित नहीं हुई थी। दृश्य विकलांगता वाले प्रतिभागियों ने बताया कि जानकारी, आवश्यक सेवाओं, भुगतान आदि के लिए विभिन्न एप्लिकेशन और वेबसाइटें पहुंच से बाहर थीं। बैसाखी का उपयोग करने वाली एक 39 वर्षीय महिला ने एक उदाहरण साझा किया जब वह फिसल गई और नीचे गिर गई, कोविड -19 के डर से कोई भी उनकी सहायता के लिए आगे नहीं आया।8 नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एंप्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड लोगों की हाल ही की रिपोर्ट के अनुसार, कई विकलांग व्यक्तियों के देखभालकर्ता परिवहन प्रतिबंधों के कारण उन तक नहीं सकते थे और उन्हें अकेला रहना पड़ा।9 महामारी के दौरान परिवहन व्यवस्थाओं में विकलांग व्यक्तियों के प्रति घृणित भाषण, कलंक और भेदभाव के कई समाचार बताए गए हैं। स्वाभाविक है कि विकलांग व्यक्तियों को जब घर से बाहर निकलना पड़ता है तब वो अपनी सुरक्षा के बारे में अकेलापन, चिंता और भय महसूस करते हैं।
कोविड-19 महामारी ने फिर से बेहतर बुनियादी ढांचा बनाने के अवसर प्रस्तुत किए हैं। हालांकि, इसे 'बेहतर' कहना गलत साबित होगा अगर नया बुनियादी ढांचा भारत की 10% आबादी को विभिन्न सामाजिक-आर्थिक अवसरों तक पहुंचने से रोकता है। इसलिए, आसानी से पहुंचने योग्य, सुरक्षित, समावेशी भारतीय शहरों और परिवहन के निर्माण को प्राथमिकता देने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए।
कोविड-19 से जुड़े सभी परिवहन निर्देशों में विकलांग व्यक्तियों की जरूरतों का ध्यान रखा जाना चाहिए। उदहारण के लिए, यूनाइटेड किंगडम में सरकार ने विकलांग व्यक्तियों को मास्क पहनने से छूट दी है, खास कर जहां विकलांगता की वजह से मास्क पहनना या उसे हटाना मुश्किल हो।10
शहरी योजनाकारों, परिवहन संचालकों, ग्राहकों से सीधे संपर्क में आने वाले परिवहन कर्मचारियों और पुलिस को विकलांग लोगों की पहुंच आवश्यकताओं पर संवेदनशीलता के साथ-साथ उन्हें समर्थन देने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
परिवहन और शहरी विकास के लिए समावेश और सार्वभौमिक पहुंच महत्वपूर्ण प्रदर्शन संकेतक होना चाहिए। सुलभ निर्मित पर्यावरण और परिवहन के लिए राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय (राष्ट्रीय मानक न हो तब) मानकों को नए विकास के साथ-साथ मौजूदा बुनियादी ढांचे की मरम्मत / संशोधन में नियोजन चरण से ही लागू किया जाना चाहिए।
नए परिवहन ऑपरेटिंग मॉडल की रचना समावेशी होनी चाहिए। विकलांग व्यक्तियों के लिए एक सम्मानजनक, सुरक्षित, सस्ता और विश्वसनीय परिवहन अनुभव सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त उपाय किए जाने चाहिए।
शहरीकरण की योजना और विकास के साथ-साथ परिवहन संरचना के लिए जिम्मेदार टीमों में एक्सेसिबिलिटी पेशेवरों और व्यक्तियों को शामिल किया जाना चाहिए।
शहरीकरण की योजना और विकास के साथ-साथ परिवहन संरचना के लिए जिम्मेदार टीमों में एक्सेसिबिलिटी पेशेवरों और व्यक्तियों को शामिल किया जाना चाहिए।
परिवहन प्रणालियों में निवेश का प्रभाव दशकों तक कायम रहता है। आज किए गए निवेश के माध्यम से सुलभ, सुरक्षित और समावेशी बुनियादी ढांचा तैयार करने में विफलता हमारे भविष्य को बाधित करेगी। जिस देश का उद्देश्य 'सबका साथ, सबका विकास' है ऐसा देश होने के नाते भारत के पास नए सिरे से शुरुआत करने और सार्वभौमिक पहुंच हासिल करने का दुर्लभ अवसर आया है - एक ऐसा अवसर, जिसका लाभ अवश्य ही लेना चाहिए।
(अपूर्व कुलकर्णी, ओला मोबिलिटी इंस्टिट्यूट के एसोसिएट डायरेक्टर और एनआईयूए के बिल्डिंग एक्सेसिबल सेफ इन्क्लूसिव सिटीज प्रोग्राम की एडवाइजरी कमिटी के सदस्य है।)