झारखंड की राजधानी रांची में बरियातू थाना पुलिस की टीम ने अफीम, हेरोइन और ब्राउन शुगर के साथ छह लोगों को पकड़ा। वेट मशीन, कैंची, पोलीथिन पैकेट यानी छोटी सी पूरी पैकेजिंग यूनिट के साथ। वाट्सएप पर होम डिलिवरी होती थी। इसके ठीक दो दिन पहले रांची को धूमपान मुक्त जिला घोषित किया गया। धूमपान मुक्त जिला जिस दिन घोषित किया गया उसी के अगले दिन अखबारों में उसी समाहरणालय के बाहर सिगरेट का धुआं उड़ाते लोगों की तस्वीर अखबारों में थी, जहां डीसी ने धूमपान मुक्त रांची की घोषणा की थी। सिगरेट पीते लोगों की तस्वीर और अफीम, हेरोइन और ब्राउन शुगर के साथ नशे के शौदागरों की गिरफ्तारी, हालात की तस्वीर साफ कर देती है। धूमपान मुक्त जिला घोषित करते हुए उपायुक्त ने कहा कि इसके लिए सर्वे कराया गया था। कोटपा एक्ट ( सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट) के मापदंडों के तहत सर्वे कराने के बाद देखा गया कि जिले के सार्वजनिक स्थानों पर धूमपान निषेध है। इसी को आधार बनाकर रांची के धूमपान मुक्त होने का दावा किया गया। प्रदेश का पहला धूमपान मुक्त जिला होने का खिताब भी मिल गया मगर हकीकत सामने है। जिस दिन ब्राउन शुगर व हेरोइन के साथ तस्कर पकड़े गये थे उसी दिन नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ( एनसीबी) ने रांची के रिंग रोड पर 45 किलो गांजा के साथ छह तस्करों को पकड़ा था। नशे के सौदागरों के निशाने पर युवा पीढ़ी है, स्कूल-कॉलेज के छात्र हैं। कोतबाली के पास पकड़े गये एक नाबालिग छात्र ने भी कहा कि लालपुर के पास एक बड़े शिक्षण संस्थान के सामने ब्राउन शुगर की बिक्री होती है। कल्पना की उड़ान, उन्माद की हद, दुर्घटना, चौपट भविष्य, बर्बादी, किसी मां-बाप के सपनों का तार-तार होना, सब इस जहर की पुड़िया से गुथे हुए हैं।
सिने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत और उभरे विवाद के कारण ड्रग्स में डूबी माया नगरी की तस्वीर सामने आ रही है। यह एक दिन का रिश्ता नहीं होता। पकड़े गये गिरोह के लोगों ने माना कि रांची में भी तीन साल से यह धंधा चला रहे थे। सवाल एनसीबी के इंटेलिजेंस विंग पर है कि आखिर उसकी टीम अब तक क्या करती रही। अगर आपको कुछ चाहिए और नजर पैनी है तो सब हाजिर है। शहर में किसी को हुक्काबार की अनुमति नहीं है, लाइसेंस नहीं है मगर नाजायज तरीके से चलने वाले हुक्काबार भारी जेब वाले युवाओं की पसंदीदा जगह रहे। ई सिगरेट पर प्रतिबंध के बावजूद ये इन ठिकानों पर सर्व किये जाते रहे। गाहे-बगाहे रेड में पुलिस पकड़ती भी है। नारकोटिक्स ब्यूरो के एक अधिकारी ने कहा था कि झारखंड अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक केंद्र है, सप्लायर है। कम कीमत और उम्दा किस्म के कारण यहां के अफीम की मांग अधिक है। ब्राउन शुगर भी अब यहीं तैयार किया जाने लगा है। महिलाएं, नाबालिग, नक्सली, जंगली इलाकों में रहने वाले भटके हुए ग्रामीण, जिस पोस्ता से अफीम तैयार किया जाता है, ''कैश क्रॉप'' के धंधे और तस्करी से जुड़े हैं। चतरा और खूंटी सहित आधा दर्जन से अधिक जिले पोस्ता की अवैध खेती के गढ़ हैं। झारखंड में लोग अफीम नहीं , गांजा पसंद करते हैं। हालांकि यह पूरा सच नहीं है, ग्रामीण इलाकों में भी मोल्डेड सिगरेट की मांग बढ़ गई है। शहर-गांवों की गलियों से गुजरते हुए गांजे की गंध आपके नथुने में भर जायेगी। उस अधिकारी ने कहा था कि अफीम की अवैध खेती वाले जंगली पहाड़ी इलाके ऐसे भी हैं जहां 10-15 किलोमीटर पैदल चलकर जाना होगा। वहां पुलिस या एनसीबी की टीम की पहुंच नहीं है। नशे के सौदागरों की पैठ जांच केंद्रों में भी है। ब्राउन शुगर-पाउडर पकड़ाता है मगर लैब में जाते-जाते पाउडर, आटा में बदल जाता है। पीढ़ियां बर्बाद हो रही हैं। ज्यादा वक्त गुजरे इसके पहले जड़ तक पहुंच, समूल नाश करना होगा। सिर्फ सेवन करने वालों और छोटी मछलियों को पकड़ने से कुछ नहीं होगा।