दिल्ली हाई कोर्ट ने गर्भपात की समय सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते करने संबंधी याचिका पर केंद्र सरकार और महिला आयोग से जवाब मांगा है। देश में गर्भपात की अवधि फिलहाल 20 हफ्ते तक की है। मामले में अगली सुनवाई 6 अगस्त को होगी।
याचिका में किसी गर्भवती महिला या उसके गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को कोई खतरा होने की स्थिति में गर्भपात कराने की समयसीमा बढ़ाने की मांग की गई है। वकील अमित साहनी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को भी कानून के तहत वैधानिक गर्भपात की मंजूरी मिलनी चाहिए। देश में अभी तक स्वास्थ्य को कोई खतरा न हो तो गर्भवती महिलाएं 20 हफ्ते तक के समय में गर्भपात करा सकती हैं।
गर्भपात की समय सीमा बढ़ाने के पक्ष में यह तर्क भी दिया जाता रहा है कि परिवार नियोजन के लिहाज से यह अहम है। इसके साथ ही महिलाओं के अपने शरीर और संतान पैदा करने की स्वेच्छा के लिहाज से भी यह अहम हैं।
यह है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में इससे संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट 1971 में बदलाव कानून के जरिए ही होना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि समय सीमा ऐसे अजन्मे बच्चों पर लागू नहीं होनी चाहिए जिन्हें जन्म के साथ ही गंभीर बीमारियों का खतरा हो। साथ ही गर्भपात के प्रावधान से विवाहित शब्द को भी हटाया जाना चाहिए ताकि अन्य महिलाएं भी इसके दायरे में आ सकें।
इस वजह से की गई है मांग
पिछले साल गर्भपात की समय सीमा बढ़ाने को लेकर एक संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी। गर्भपात की समय सीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते करने का असर होगा कि कुंवारी महिलाएं जो गर्भपात करवाना चाहती हैं उनके लिए गैर मान्यता प्राप्त क्लीनिक में जाने की मजबूरी खत्म हो जाएगी। ऐसे क्लीनिक में गर्भपात का खराब असर महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर साल माताओं की मृत्यु दर में 8 प्रतिशत मौत असुरक्षित गर्भपात के कारण होती हैं।