भारत में ग्रामीण इलाकों में रहने वाली लगभग आधी महिलाएं गर्भावस्था के दौरान कम खाना खाती हैं। इस वजह से गर्भावस्था के दौरान भी उनका वजन तय मानक के अनुरूप नहीं बढ़ता है। गर्भावस्था और मां बनने वाली महिलाओं की परेशानियों को समझने के लिए एक सर्वेक्षण किया गया। जच्चा-बच्चा सर्वेक्षण 2019 में कई बातें सामने आईं। आज इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी की गई। जेएबीएस सर्वेक्षण ज्यां द्रेज, रीतिका खेड़ा और अनमोल सोमंची द्वारा किए सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं को गर्भावस्था और उसके बाद की सावधानियों के बारे में बहुत कम जानकारी है।
छह राज्यों- छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में किए गए ‘जच्चा-बच्चा’ सर्वेक्षण में हर राज्य की 10-12 आंगनवाड़ी केंद्रों में ऐसी महिलाओं से बात की गई जो या तो गर्भवती थीं या जिन्होंने छह महीने पहले शिशु को जन्म दिया था। सर्वेक्षण में गर्भावस्था के दौरान और जन्म के बाद की परेशानियों पर सवाल पूछे गए। । सर्वेक्षण में टीमों में छात्र, स्वयंसेवक और स्थानीय स्वयंसेवक शामिल थे। यह सर्वेक्षण जून 2019 में किया गया था।
जरूरतों की अनदेखी
सर्वेक्षण में पाया गया कि महिलाओं को गर्भावस्था और उसके बाद की सावधानियों के बारे में बहुत कम जानकारी थी। ज्यादातर घरों में भोजन और आराम, स्वास्थ्य की देखभाल और विशेष जरूरतों पर ध्यान ही नहीं दिया जाता था। उत्तर प्रदेश में 48 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को पता ही नहीं था कि गर्भावस्था के दौरान उनका वजन बढ़ना जरूरी है। केवल 31 प्रतिशत महिलाएं ऐसी पाई गईं जो गर्भावस्था में पौष्टिक भोजन कर रही थीं। ये महिलाएं गर्भावस्था में और मां बनने के बाद भी अतिरिक्त आराम नहीं करती थीं बल्कि उसी तरह नियमित काम करती रहती थीं। इनमें 63 प्रतिशत ऐसी थीं, जिन्होंने डिलीवरी के दिन तक काम किया था।
वजन की उपेक्षा
कुछ गर्भवती महिलाएं ऐसी भी थीं जिनका वजन कम आहार लेने से बहुत कम बढ़ा था। कम बीएमआई की महिलाओं के लिए 13-18 किलोग्राम के मानक की तुलना में, गर्भवती महिला का वजन औसत 7 किलोग्राम तक ही बढ़ा था। दूसरे राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में यह संख्या 4 किलो थी। कुछ महिलाएं इतनी दुबली थीं कि उनकी गर्भावस्था के अंत तक उनका वजन 40 किलो से कम था।
उत्तर प्रदेश की स्थिति निराशाजनक
झारखंड, मध्य प्रदेश के साथ उत्तर प्रदेश की हालत सबसे निराशाजनक पाई गई। उत्तर प्रदेश के सभी आंगनवाड़ी केंद्र सर्वेक्षण के वक्त बंद पाए गए। यहां गर्भवती और हाल ही में बच्चे को जन्म देने वाली मांओं की देखरेख या उन्हें स्वास्थ्य के बारे में बताने के लिए कोई नहीं था। न ही यहां 3 से 6 साल तक के बच्चों के लिए खाना बनाया जा रहा था। जबकि छत्तीसगढ़ और ओडिशा की आंगनवाड़ी में बच्चों के लिए नाश्ता, एक प्री-स्कूल पाठ्यक्रम और स्वास्थ्य कार्यकर्ता मौजूद थे। इस सर्वे में हिमाचल प्रदेश सार्वजनिक सुविधां में अग्रणी पाया गया। हिमाचल में बाकी राज्यों की तुलना में महिलाएं समृद्ध, शिक्षित और आत्मविश्वासी थीं।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना की परेशानी
सर्वेक्षण में पाया गया कि पीएमएमवीवाय योजना की प्रक्रिया जटिल है, इसके कारण कई गर्भवती महिलाएं इसका लाभ नहीं ले पाती हैं। आधार को लिंक कराने के साथ इसके भुगतान में भी कई तरह की कठिनाइयां सामने आती हैं। कई राज्यों में बीएमएमवीवाय योजना का लाभ लेने के लिए पति का पहचान पत्र आवश्यक है। सर्वे में पाया गया कि जहां पति के पास आधार कार्ड नहीं था वे इस योजना के लिए आवेदन ही नहीं कर पाईं। कई महिलाएं एकल अभिभावक थीं, और वे जिन पुरुषों के साथ रह रही थीं, उनसे विवाहित नहीं थीं। ऐसी महिलाओं को भी इस योजना का लाभ नहीं मिला। इसके अलावा नाम की वर्तनी गलत होना, दो प्रमाण पत्रों में नाम का मेल न होने से भी भावी माओं को कष्टों का सामना करना पड़ा।