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आसां हुई दिल की निगरानी

अमेरिका में भारतीय मूल के चिकित्सक डॉ. जय एस. यादव ने हृदय की निगरानी के लिए एक ऐसा उपकरण बनाया है जो दिल से फेफड़े की ओर जाने वाली धमनी (पल्मोनरी आर्टरी) में रक्त के दबाव की सटीक मॉनिटरिंग करता है और वह भी मरीज के घर में रहने के दौरान।
आसां हुई दिल की निगरानी

हार्ट अटैक से होने वाली मौतें डॉक्टरों के लिए हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही हैं। किसी व्यक्ति का हृदय कैसा व्यवहार कर रहा है इसका परीक्षण करने लिए मरीज को अस्पताल में भर्ती करके महंगे उपकरणों के जरिये मॉनिटरिंग की जाती है। अस्पताल से निकलने के बाद मरीज फिर से भगवान के भरोसे ही होता है और हार्ट की कोई निगरानी नहीं हो पाती। मगर अब स्थिति बदलने वाली है। अमेरिका में भारतीय मूल के चिकित्सक डॉ. जय एस. यादव ने हृदय की निगरानी के लिए एक ऐसा उपकरण बनाया है जो दिल से फेफड़े की ओर जाने वाली धमनी (पल्मोनरी आर्टरी) में रक्त के दबाव की सटीक मॉनिटरिंग करता है और वह भी मरीज के घर में रहने के दौरान। इससे डॉक्टर को मरीज की स्थिति की सटीक जानकारी मिलती रहती है। जाहिर है कि यह एक क्रांतिकारी तकनीक है जो हृदय रोग के इलाज में बेहद कारगर साबित हो सकती है। इस तकनीक के बारे में खुद डॉ. यादव कहते हैं, 'कार्डियो एमईएमएस हार्ट फेल्योर सिस्टम एक बेहद छोटा उपकरण है जो डॉक्टर को ये मॉनीटर करने में मदद करता है कि मरीज का हार्ट फेल न हो। मरीज के पल्मोनरी आर्टरी प्रेशर को मॉनीटर करके डॉक्टर इलाज के दौरान दवाओं में बदलाव कर सकते हैं, जिससे अस्पताल में भर्ती होने के खर्चे से बचा जा सकता है। इस उपकरण को एक छोटे से ऑपरेशन के जरिये मरीज के शरीर में आरोपित किया जाता है और इस सेंसर से सटीक डाटा डॉक्टर को मिलते हैं। एक बार इस उपकरण को मरीज के शरीर में लगाने के बाद मरीज खुद ही एक कंप्यूटर और एंटेना की मदद से अपने घर पर ही धमनियों में रक्त दबाव की रीडिंग ले सकता है। इस एंटेना को मरीज के तकिए में लगाया जाता है। मरीज इस तकिए पर सीधा लेटता है और एंटेना इस डिवाइस के सेंसर से रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए रीडिंग लेता है। 18 सेकेंड के पल्मोनरी प्रेशर को रिकॉर्ड करके कंप्यूटर के जरिये एक सुरक्षित वेबसाइट पर डाला जाता है जहां मरीज का डॉक्टर उसे देख सकता है और मरीज की स्थिति से अवगत हो सकता है। सारी प्रक्रिया मरीज के लेटे-लेटे एक बटन दबाने से पूरी हो जाती है।
डॉक्टर यादव के अनुसार इससे पहले किसी ने बिना बैटरी चालित डिवाइस से ऐसी सूचना हासिल करने में कामयाबी हासिल नहीं की थी। शुरुआत में इस तकनीक पर कई सवाल भी उठाए गए मगर दस साल तक लैब और क्लिनिकल ट्रायल के बाद इस उपकरण को बाजार में लाना संभव हुआ है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेटर (एफडीए) ने इसी वर्ष 28 मई को इसे बाजार में उतारने के लिए अंतिम मंजूरी दे दी है। इस उपकरण को बाजार में लाने के लिए डॉ. यादव ने सेंट जूड मेडिकल के साथ करार किया है। इस कंपनी की पहुंच पूरी दुनिया में है और भारत में भी इस कंपनी से इस उपकरण को मंगाने की सुविधा है। जहां तक कीमत की बात है तो डॉ. यादव कहते हैं कि बार-बार अस्पताल में भर्ती होने के खर्च से अगर तुलना करें तो इस तकनीक में खर्च बेहद कम आएगा मगर इसका दूसरा और ज्यादा बड़ा फायदा यह होगा कि आपके डॉक्टर के पास आपकी मॉनिटरिंग का डाटा पहले से मौजूद होने के कारण इलाज ज्यादा आसान हो जाएगा।
इस उपकरण को लेकर भारत के हृदय रोग विशेषज्ञ भी उत्सुक हैं। बी एल के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुशांत श्रीवास्तव का मानना है कि यह उपकरण चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ी छलांग प्रतीत हो रहा है। दिल के मरीज का इलाज करने में पहले से मौजूद जानकारी बड़ा रोल अदा करती है। डॉ. यादव की रिसर्च और उपकरण के बारे में उपलब्ध जानकारी से ऐसा लगता है कि इस उपकरण की हृदय रोग के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। हालांकि डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार अभी इस उपकरण को भारत आने में थोड़ा वक्त लगेगा, पहले स्वास्थ्य मंत्रालय बड़े अस्पतालों के जरिये इस पर शोध करवाएगी, फिर इसे भारत में प्रयोग करने के लिए लाइसेंस मिलेगा, उसके बाद ही इसका इस्तेमाल भारत में हो पाएगा।
मूलचंद अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ पद्मश्री  डॉ. के.के अग्रवाल भी मानते हैं कि यह उपकरण हृदय की सटीक जानकारी देने में सहायक होगा। ऐसी तकनीक का स्वागत करना चाहिए क्योंकि ये बार-बार होने वाली चेकअप की पीड़ा को कम कर सकती है। एफडीए की मंजूरी के बाद अभी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया इस उपकरण का ट्रायल करेगी। संसदीय समिति में स्वास्थ्य क्षेत्र के सदस्य के रूप में डॉ. अग्रवाल को लगता है कि इस उपकरण के देश के सभी हिस्सों में ट्रायल होगा क्योंकि अलग-अलग मौसम की परिस्थितियों में ट्रायल के रिजल्ट अलग-अलग हो सकते हैं। हृदय धमनियों के प्रेशर की सटीक जानकारी मिले, इससे बड़ा वरदान हृदय रोग के इलाज में कुछ नहीं हो सकता। हालांकि डॉ. अग्रवाल को नहीं लगता कि आम लोगों को 5-6 साल से पहले किफायती दामों में इस उपकरण का लाभ मिल सकता है।

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