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पुरुष-पुरुष प्यार के कारण जीवन जेल हो गया

राजस्थान के रहने वाले नकुल शर्मा काफी परेशान हैं। इस दफा उन्हें संसद से काफी उम्मीद थी कि धारा 377 से संबंधी विधेयक पर जरूर कुछ न कुछ होगा। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने गेंद संसद के पाले में डाली है। लेकिन कांग्रेसी नेता शशि थुरूर का विधेयक पटल तक पर नहीं आ सका। इस संबंध में नकुल शर्मा की परेशानी यह है कि वह गे यानी समलैंगिक हैं। उनका कहना है कि उन्हें लैंगिक अल्पसंख्यक का दर्जा चाहिए। अपनी कहानी के जरिये नकुल बताते हैं कि बलात्कार सिर्फ मर्द औरत के बीच नहीं होता है बल्कि उनके जैसे असंख्य लोगों के साथ होता है तो कोई कानून नहीं है जो उन्हें न्याय दिलवा सके।
पुरुष-पुरुष प्यार के कारण जीवन जेल हो गया

स्त्री से स्त्री और पुरुष से पुरुष के लैंगिंक संबंधों पर नकुल का कहना है कि यह पुराने भारत में होता रहा है? इसमें वह क्या गलत कर रहे हैं। नकुल बताते हैं, ‘ मेरे ऊपर घर से शादी का बहुत दबाव है लेकिन मां नहीं जानती कि मैं गे हूं। भाई को शक है। मैं जैसा हूं मेरा परिवार मुझे वैसा कभी स्वीकार नहीं करेगा। किसी का नहीं करता। तभी मेरे सबसे करीबी दोस्त ने आत्महत्या कर ली थी।‘

 

‘ बचपन से जब मैं लड़का होकर भी लड़कों में घुलता-मिलता नहीं था तो मुझे मेरे स्कूल में लड़के तंग करते थे। सड़क पर छेड़ते थे। मैं समझ नहीं पाता था कि मैं किस कानून के तहत छेड़छाड़ का मामला कहां दर्ज करवाऊं। मुझे ‘छक्का’ ‘हिजड़ा’ कहा जाता। मैं लड़कियों के साथ सहज रहता था। मैं उस समय 14 साल का था। जब मेरी क्लास के एक लड़के ने स्कूल के टॉयलेट में मेरे साथ बलात्कार किया और ओरल सेक्स किया। मैं उस समय अपने आप से नफरत करने लगा। उस लड़के से नफरत करने लगा। मैं उस लड़के का चेहरा तक नहीं देखना चाहता था। लेकिन फिर धीरे-धीरे मैं लड़कों की ओर आकर्षित होने लगा। मुझे लगा कि मुझसे बलात्कार करने वाले उस लड़के के अलावा मैं किसी और लड़के के साथ सेक्स कर सकता हूं। पंद्रह वर्ष की उम्र तक आते-आते मैं लड़कों से सेक्स करने में आनंद लेने लगा। अभी तक सब ठीक चल रहा था।‘

 

‘ फिर मेरी जिंदगी का सबसे काला अध्याय शुरू हुआ जब मैं ग्याहरवीं क्लास में था। मुझे एक लड़के से प्रेम हो गया। वह मेरा सीनियर था और कॉलेज में था। उसने आपत्तिजनक स्थिति में मेरी अपने साथ कुछ तस्वीरे ले रखी थीं। हालांकि वह तस्वीरें मेरी मर्जी से ली गई थी लेकिन तब मैं उसके प्रेम में था। फिर उसने मुझे उन तस्वीरों को लेकर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया कि वह मेरे घर पर सब बता देगा। मैं किसी भी कीमत पर अपने घर पर नहीं बताना चाहता। मेरी मां यह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। मेरी बहनों की शादियां नहीं होंगी। लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं क्या करूं। कहां जाकर न्याय मांगूं? आखिरकार मैंने पढ़ाई छोड़ दी। उस लड़के के डर से कॉलेज जाना छोड़ दिया।‘

 

नकुल का कहना है कि अगर उन्हें उम्मीद होती कि उनका परिवार उनका साथ देगा तो वह अपनी पढ़ाई भी पूरी कर लेते और समाज से भी लड़ लेते। न उन्हें कोई ब्लैकमेल कर पाता। नकुल का कहना है कि लैंगिक असमानता की ही वजह से असंख्य ट्रांसजेंडर, गे और लेस्बियन (महिला समलैंगिक) अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ देते हैं। रोजी-रोटी के लिए वैश्यावृति करना उनकी मजबूरी हो जाती है। उनका कहना है कि पारिवारिक हिंसा के शिकार उनके एक दोस्त ने आत्महत्या कर ली थी। मरने पर उसके माता-पिता बोल रहे थे कि उन्होंने उसे खिलाया-पिलाया, घुमाया, पढ़ाया और आज वह उन्हें छोड़कर चला गया। नकुल के अनुसार,हम जैसे हैं, वैसे हमें स्वीकार किया जाए, परिवार स्वीकार कर लेगा तो समाज से लड़ने की ताकत आपने आप जाएगी। नकुल आज एक संस्था के जरिये अपने जैसे हजारों लोगों को अवसाद से निकाल रहे हैं ताकि उनके दोस्त की तरह फिर कोई आत्महत्या करने की न सोचे।  

     

     

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