अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिकों ने एक विशेष प्रोटीन का पता लगाया है जो मनुष्यों के उत्तकों की मरम्मत की प्रक्रिया में अहम साबित हो सकता है। ड्यूक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर केन्नेथ पोस ने कहा, नष्ट हुए उतकों की मरम्मत के लिए आज सीमित मात्रा में सफल चिकित्सा पद्धतियां उपलब्ध हैं, ऐसे में हमें उनकी पुन: उत्पत्ति प्रोत्साहित करने को लेकर जेब्राफिश जैसे जीवों की ओर देखने की आवश्यकता है। जब जेब्राफिश की टूट चुकी रीढ़ की हड्डी की फिर से उत्पत्ति की प्रक्रिया शुरू होती है तो आठ सप्ताह में नए तंत्रिका उत्तक चोट से पैदा हुए फासले को भर देते हैं और जेब्राफिश गंभीर रूप से लकवाग्रस्त होने से बच जाती है। एक जेब्राफिश अपनी रीढ़ की हड्डी के टूटने के बाद उसकी स्वत: पूर्ण मरम्मत कर लेती है जबकि वही चोट मनुष्यों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है और वे लकवाग्रस्त हो सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने इस शानदार प्रक्रिया के लिए संभावित रूप से जिम्मेदार अणुओं को समझने के लिए उनकी उन सभी जीन का अध्ययन किया जिनकी गतिविधि रीढ़ की हड्डी की चोट के बाद अचानक बदली। इस प्रक्रिया में कनेक्टिंग टिशू ग्रोथ फैक्टर (सीटीजीएफ) अहम है। वैज्ञानिकों ने जब सीटीजीएफ को आनुवांशिक रूप से नष्ट करने की कोशिश की तो मछली उत्तक की फिर से उत्पत्ति नहीं कर पाई। मनुष्यों एवं जेब्राफिश में अधिकतर प्रोटीन कोडिंग जीन साझे हैं और सीटीजीएफ अपवाद नहीं है और जब वैज्ञानिकों ने मछली की चोट वाली जगह में सीटीजीएफ का मानवीय संस्करण जोड़ा तो इसने पुन: उत्पत्ति की प्रक्रिया को बढ़ाया और मछली चोट के दो सप्ताह बाद बेहतर तैरने लगी। पोस के समूह में शोधार्थी मायस्सा मोकाल्लड ने कहा, मछली लकवे की समस्या से उबरकर टैंक में तैरने लगी। इस प्रोटीन का प्रभाव विचित्र है। इस अध्ययन को पत्रिका साइंस में प्रकाशित किया गया है।