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बुझ गया 'अध चानणी रात 'का सितारा

ज्ञानपीठ तथा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित पंजाबी साहित्यकार प्रोफेसर गुरदयाल सिंह (83) का बठिंडा के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। सोशल मीडिया पर गुरुदयाल सिंह को कुछ इस प्रकार याद किया गया-
बुझ गया 'अध चानणी रात 'का सितारा

 

गिरीराज किशोर- पंजाबी के शीर्ष लेखक और ज्ञानपीठ अवार्डी प्रो. गुरदयाल सिंह जी हमें छोड़ गए। वे सेल्फ़मेड व्यक्ति थे। उपन्यासकार थे। वे बताया करते थे कि वे अभी भी लकड़ी का काम स्वयं कर लेते हैं। ज़मीन से जुड़े और जीवन के संघर्षों को जानते थे। उनका साहित्य भी इंसानी दुश्वारियों से भरा हुआ है। ज्ञानपीठ सम्मान उन्हें और निर्मल वर्मा के बीच बराबर बटा था। जेतो ग्राम के रहने वाले थे। उनका दाह संस्कार जेतो में 18 अगस्त को होगा। बटिंडा के एक प्रा. अस्पताल में अंतिम सांस ली। कभी कभी पत्र लिख देते थे। मुझे उनका जाना व्यक्तिगत हानि की तरह लगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। ऐसे बड़े पर निर्अंहकारी लेखक कम होते हैं।

 

कैलाश भसीन- गुरदयाल सिंह जन्म: 10 जनवरी, 1933, एक प्रसिद्ध पंजाबी साहित्यकार । इन्हें 1999 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अमृता प्रीतम के बाद गुरदयाल सिंह दूसरे पंजाबी साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। गुरदयाल सिंह आम आदमी की बात कहने वाले पंजाबी भाषा के विख्यात कथाकार थे ।कई प्रसिद्ध लेखकों की तरह उपन्यासकार के रूप में गुरदयाल सिंह की उपलब्धि को भी उनके आरंभिक जीवन के अनुभवों के संदर्भ में देखा जा सकता है। बुझ गया 'अध चानणी रात 'का सितारा- शत शत नमन।

 

दुष्यंत- महाश्वेता देवी के बाद भारतीय साहित्य के दूसरे समकालीन शिखर कथाकार पंजाबी लेखक गुरदयाल सिंह भी विदा कह गए। कितना निर्मम समय है !

 

जनविजय- अभी 13 अगस्त को मैंने पंजाबी के प्रसिद्ध लेखक गुरदयाल सिंह की तस्वीर जोड़कर पूछा था कि बताइए ये कौन हैं। और आज 16 अगस्त को गुरदयाल सिंह यह दुनिया छोड़कर चलते बने। इनसे पहली मुलाकात मास्को में 1986 में रस्सीया होटल में ज्ञानरंजन जी के साथ हुई थी। ये दोनों सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार पाकर 20 दिन की सोवियत संघ की यात्रा पर आए थे। मस्क्वा पहुंचते ही ज्ञान दा ने मुझे सूचित कर दिया था और मैं इन लोगों से मिलने इनके होटल पहुँचा था। तब गुरदयाल जी ने मुझे मढ़ी का दीवा उपन्यास का राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित पेपरबैक संस्करण भेंट किया था। उस उपन्यास को मैं एक ही शाम में पढ़ गया था। इसके बाद उनकी सारी किताबें मैं ख़रीदने लगा था। तद्भव में गुरदयाल जी की आत्मकथा प्रकशित हुई थी। उसे पढ़कर तो मैं उनपर फ़िदा ही हो गया था। गुरदयाल सिंह जी से चार-पांच मुलाकातें और हुईं और वे हर बार ड़ी आत्मीयता से मिले। अब वे हमेशा मेरे दिल में रहेंगे। अलविदा गुरदयाल जी।

 

अजय ब्रहम्त्ज- पंजाब के मशहूर साहित्यकार गुरदयाल सिंह की कहानी पर आधारित इस फिल्म में हिंदी फिल्मों में देखे पंजाब के सरसों के खेत और बल्ले-बल्ले करते हुए भांगड़ा में मस्त किरदार नहीं हैं। कुहासे में लिपटी नीरवता उदास करती है। किरदारों की खामोश हरकतों से खीझ होती है। समझ में आता है कि समाज और गांव के हाशिए पर मौजूद किरदार आनी विवशता और लाचारी के गवाह भर हो सकते हैंl

 

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