समर अनार्य- क्या उदय प्रकाश ने साहित्य अकादमी के साथ साथ 'पारिवारिक समारोह' में योगी आदित्यनाथ से लिया पुरस्कार लौटाने की घोषणा भी कर दी है? या साहित्य अकादमी वाला लौटा देंगे योगी वाला रखे रहेंगे? उनके निर्णय पर लहालोट हुए जा रहे क्रांतिकारियों से।
- योगी आदित्यनाथ से पुरुस्कृत होकर उसे पारिवारिक कार्यक्रम बताने वाले उदय प्रकाश, गोरख पांडे से लेकर प्रतिरोध की हर आवाज को अपनी कहानियों में विदूषक बनाने वाले उदय प्रकाश, अनंतमूर्ति पर हमलों पर पुरस्कार न लौटाने वाले उदय प्रकाश, डाभोलकर की हत्या पर सन्न मार गए उदय प्रकाश, कलबुर्गी की हत्या के बाद बांसुरी सुनते फिर लम्बी चुप्पी ताने बैठे रहे उदय प्रकाश का जमीर अचानक जाग जाने की बधाई। बाकी अभी सलाम-वलाम नहीं बनता, पुरस्कार लेने में ही नहीं, लौटाने में भी राजनीति होती है- इलाहाबादी में कहें तो गणित। अभी समीकरण समझने दें, हमको तो ई किसी और पे निशाना लग रहा है- एक गैंग का।
- सरकारी पुरस्कार लेने वाले क्या इसीलिए लेते हैं कि वक्त पड़ने पर लौटा के हीरो बन सकें? उदय प्रकाश को 2010-11 में साहित्य अकादमी मिला था- मने कांग्रेस राज- मने सफदर हाशमी के हत्यारों से- मने हाशिमपुरा, भागलपुर, भिवंडी से शुरू कर 1984 तक के जिम्मेदारों से। तब सरकार/सत्ता का वर्ग चरित्र नहीं समझ आया था या सफदर के हत्यारे कलबुर्गी के हत्यारों से बेहतर हैं? ज्ञान न दीजियेगा, वह आपसे ज्यादा नहीं तो कम न होगा. तर्क हो कोई तो जरुर दें ताकि इस क्रांतिकारी कदम पर बधाई दे सकूं।
- कलबुर्गी की हत्या के विरोध में साहित्य अकादमी पुरस्कार (जो सफदर के हत्यारों और 1984 के दंगाइयों से लिया था) लौटा देने वाले उदय प्रकाश ने योगी आदित्यनाथ से लिया पुरस्कार अब तक नहीं लौटाया है। क्यों, ये गुत्थी सुलझाने की कोशिश में ये सूत्र हाथ लगे हैं -उदय प्रकाश का कोई जमीर हो, हो तो जागा हो ऐसा नहीं लगता। मने 30 को हत्या हुई और योगी से 'पारिवारिक' कार्यक्रम में पुरस्कृत उदय प्रकाश ने कुछ लिखा नहीं, औरों के दो तीन स्टेटस शेयर किए, फिर 31 आते न आते बांसुरी सुनने लगे। दो सितंबर तक कलबुर्गी साहब को एकदम भूल हड़ताली मूड में थे, कल भाषा विमर्श में लगे थे (लगा सीधे हेरोल्ड पिंटर से उठाए हैं मगर संदेह का लाभ दिया जा सकता है) फिर पुरस्कार लेने की राजनीति पर एक गजब उलझाऊ बयान दिया है- मने पेश है सीधे वहीं से- "यदि कोई इस एक बात पर मकबूल फिदा हुसैन और अटल बिहारी वाजपेयी को एक मान लेता है कि दोनों ने इंदिरा गांधी के बारे में दुर्गा का उपमान १९७१ में इस्तेमाल किया..(तो) शक मुझे उस दिमाग पर होता है, जो इन व्यक्तियों और विचारों के फर्क को गड्डमड्ड करता हुआ फ़क़त अपने खुश होने के लिए तालियां बटोरता है। और इसके बाद कुछ उलटबांसियों के बाद फिर एक कलाबाजी - "हांलाकि इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि सिर्फ गवर्नर बना दिए जाने से बाबू बजरंगी या माया कोडनानी निरापद, धर्म निरपेक्ष और संविधान सम्मत हो गये। " इसके 24 घंटे और लें भाई साहब- बीच में हुए कुछ करतबों के बाद इस छह महीने जर्मनी-अमेरिका रहने वाले विपिन्न लेखक का जमीर जाग गया। मने सिर्फ पुरस्कार लेने में ही नहीं, लौटाने में भी राजनीति होती है।
मदन तिवारी- सता की चमचई इसकासबसे बड़ा गुण था आजकल मिठाई नहीं मिल रही है तो नौटंकी कर रहा है . मध्य प्रदेश के संस्कृति एंव कला विभाग से ही प्रशिक्षण प्राप्त करते है दलालनुमा साहित्याकार। अजीब बात करते है घ्महाराज जी उदय प्रकाश राजेन्द्र यादव का चाचा है ए ये जो दीखते है वह होते नहीं । एक ने जीवन भर हंस के नाम पर ठगी की और मरने के पहले संजय सहाय को बेचकर चल दिया । उदय ने जीवन भर चमचई की है इसका इतिहास पढ़िए कभी इस विभाग से कभी उस विभाग से जुगाड़ भिडाकर कमाई करता रहा । भले आपलोगों को यह महान साहित्यकार दिखता हो हमलोग इसे दलाल के रूप में जानते है।
मोहम्मद अलतशाम- उदय प्रकाश जी का ओम थानवी दादा के विवाद पर पुरस्कार लौटाना कुछ और नहीं बस नौटंकीबाज़ी है। पिछले 4 सालों में उनका ज़मीर नहीं जागा था क्या। लेकिन अब जो हो रहा है इस से हिंदी साहित्य जगत की सड़ांध फिर से खुल कर आने लगी है।