नेशनल जियोग्राफिक चैनल, हिस्ट्री चैनल, डिस्कवरी चैनल भारत में आए तो टेलीविजन अचानक दो भागों में बंट गया। दफ्तर से लौट कर खबरिया चैनलों पर इधर-उधर कूदने वाले अचानक डिस्कवरी के प्रशंसक हो गए। फिर बातचीत में शान से यह बताना नहीं भूलते थे कि वे 'टीवी नहीं देखते, 'डिस्कवरी’ देखते हैं।’ जिस दौर में एकता कपूर ने दो रुपये की चमक की बिंदी को चालीस रुपये की और अलमारी में धूल खाती जरी-गोटे की साड़ियों को 'नाइट ड्रेस’ तक पहुंचा दिया तब एक खास वर्ग का टेलीविजन से लगभग मोह भंग हो गया। दिन भर काम से ऊबी महिलाओं को छोड़ कर बाकी के लिए यह शोध का विषय हो गया कि 'आखिर इन धारावाहिकों में होता क्या है?’ बालों को ऊंगलियों में उमेठती महिलाएं और कमान के आकार की भौंहों वाली महिलाओं के साथ-साथ टीवी पर चीख-चीख कर खबरें बताते पत्रकार, तेज-तेज चिल्लाते टीवी प्रस्तोताओं से भी टेलीविजन पर कुछ खास नहीं का तमगा लगने लगा। पूरे परिवार के लिए टेलीविजन का खयाल जब लगभग डूबने की कगार पर आ गया तब ऐसे वक्त में साल भर पहले एपिक चैनल ने दस्तक दी और इसके लिए दर्शकों ने धीरे-धीरे दरवाजे खोलना शुरू कर दिए। एपिक ने उस वैक्यूम को भरा जो खबरों की पुनरावृत्ति और सास-बहू की एकरसता से ऊब कर कुछ नया चाहते थे।
टेलीविजन पर हिंदी में ऐसे किसी विचार की बहुत कमी थी जो भारत और उससे जुड़ी बातों को मनोरंजक ढंग से दर्शकों के सामने रख सके। डिस्कवरी, नेशनल जियोग्राफिक और हिस्ट्री जैसे अंग्रेजी में कई चैनल हैं जो प्रोग्रामिंग पर आधारित हैं। प्रोग्रामिंग यानी किसी मुद्दे पर पटकथा लिख कर उसका टेली रूपांतरण कर दिया जाए। इसमें खबर हो लेकिन रोजमर्रा की खबर जैसी न हो। एपिक चैनल ने हिंदी में इस कमी को पूरा किया और साल भर के भीतर इसकी चर्चा होने लगी। भारत में धारावाहिकों के चैनल के रूप में स्टार प्लस को अपनी नंबर वन की पदवी से अभी तक कोई नहीं हटा पाया है। लगभग छह साल पहले जब कलर्स ने दस्तक दी थी तब जरूर स्टार प्लस को कुछ दिनों तक संकट का सामना करना पड़ा था। स्टार प्लस का यह सिंहासन तब भी नहीं डोला जब जिंदगी चैनल ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी।
एपिक चैनल पर रवींद्र नाथ की कहानियां हैं, जावेद अख्तर से गप्पे हैं, नसीरुद्दीन शाह के साथ क्रिकेट का ज्ञान है, देवदत्त पटनायक के साथ पौराणिक कथाएं और उनका महत्व है, पूरे देश के ऐसे खानपान की जानकारी है जो लुप्त हो रही है, सियासत में दांवपेंच की दास्तान है। यह एपिक यानी महाकाव्य है, जो हर विषय को वाकई महाकाव्य के रूप में दर्शकों को परोस रहा है। एपिक में नए-नए शो की भरमार है और किसी भी शो के बारे में दर्शक यह नहीं कह सकते कि यह तो बकवास है।
एपिक चैनल नेटवर्क के मैनेजिंग डायरेक्टर महेश समत कहते हैं, 'भारत में हर बात का इतिहास है, लेकिन इस इतिहास को ज्यादातर पश्चिम की दृष्टि से देखा गया है या देशभक्ति के कोण से। एपिक इस इतिहास को दिखाने के लिए मधयमार्गी की भूमिका में आना चाहता है।’ हर दौर में इतिहास को फिर नए नजरिए से देखा जाता है। इतिहास के प्रति अतीतानुराग ही इस चैनल का मुख्य आधार है। लेकिन इतिहास को बेचना इतना आसान नहीं होता। वह भी टेलीविजन जैसे माध्यम पर जहां इसे विशुद्ध रूप से मनोरंजन के तौर पर देखा जाता हो। महेश कहते हैं, 'यह एक नया विचार था, जो चलेगा या नहीं इसके प्रति आश्वस्ति नहीं थी। इतिहास मनोरंजन के लिए भी हो सकता है यह साल भर पहले तक कौन सोच सकता था।’
टेलीविजन पर करोड़ों के मनोरंजन जगत में एपिक ने जब कदम रखा तो इसका दांव 47,500 करोड़ रुपये था। भारतीय टीवी उद्योग में यह कोई बड़ी रकम थी। लेकिन इसका नतीजा धीरे-धीरे सकारात्मक आने लगा। इसके दो कारण थे, पहला-यह अपनी तरह का अकेला गंभीर चैनल था, दूसरा बजट बहुत अच्छा था। बजट अच्छा होने की वजह से ही अनुराग बासु इतनी खूबसूरती से रवींद्र नाथ टैगौर की कहानियां इतने विश्वसनीय ढंग से छोटे परदे पर उतार पाए। इसी चैनल पर आ रहे एक कार्यक्रम एकांत के लिए जगह के चुनाव के लिए ही अलग टीम है, जो हमेशा नई-नई जगहों की खोज में लगी रहती है।
मीडिया कंसल्टेंसी और टीवी व्यापार पर नजर रखने वाली कंपनी मुगल के विपल पन्नू कहते हैं, 'एपिक ने सिर्फ अपने कार्यक्रम दर्शकों पर थोप नहीं दिए। बल्कि लगभग सभी कार्यक्रमों में एक सूत्रधार भी निर्धारित किया जो कहानी को दर्शकों को समझाता चलता है। इसके लिए बड़े इतिहासविद, उस विषय पर काम करने वाले विशेषज्ञ, विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर और नामी लेखकों की मदद ली गई है।’
सन 2012 में जब इस कंपनी की स्थापना हुई थी तो एक अध्ययन से पता चला था कि हिंदी धारावाहिकों पर अपना समय लगाने वाले दर्शकों में लगभग एक चौथाई लोग पौराणिक-ऐतिहासिक धारावाहिक देखना पसंद करते हैं। जैसे कलर्स पर अशोका, जी पर जोधा अकबर, स्टार पर श्री गणेश। इसी तरह शिव और रामायण पर भी अलग-अलग धारावाहिक चल रहे थे। इन सब के बीच एपिक के लिए अच्छा मौका था। एपिक ने इसी मौके का फायदा उठाया और इतिहास या पौराणिक कथाओं में बिना छेड़छाड़ कर दर्शकों के लिए विश्वसनीय जानकारी पहुंचाई। हालांकि एपिक के लिए यह बड़ी चुनौती थी कि आखिर दर्शक अपने धारावाहिक छोड़ कर क्यों उनके चैनल पर आएंगे।
एपिक ने अपनी कहानियां, उन्हें कहने का तरीका, मेकअप और कलाकार उन सब से अलग रखे जो लोकप्रिय टीवी चैनलों पर पहले से मौजूद थे। दर्शक जिन भी बातों के आदी थे एपिक पर वह नदारद था। इनमें राजा, रसोई और अन्य कहानियां में भारतीय रसोई का इतिहास और उससे जुड़ी कथाएं परोसी गईं। एकांत में ऐसी जगहों के बारे में बताया गया जो निर्जन थीं, पर उनके पीछे एक इतिहास था।
विपुल कहते हैं, 'संरचना में इमारतों के बनने और इनकी वास्तु की कहानी कहती है। इन शो के लिए माहौल धीरे-धीरे बना लेकिन अब ये कार्यक्रम दर्शकों की पसंद सूची में जगह पा गए हैं।’ समत कहते हैं, ‘हमारे ज्यादातर शो गंभीर किस्म के थे। रोजमर्रा में टेलीविजन पर आने वाले कार्यक्रमों से अलग। नियमित दर्शकों को जैसे कार्यक्रम देखने की आदत है, एपिक में वैसे कार्यक्रम नहीं थे। लेकिन इस चैनल के बारे में अलग तरह की समझ जरूर बनी और इसी का फायदा मिला।’
इस चैनल में मुकेश अंबानी (25.8 प्रतिशत) और आनंद महिंद्रा (25.8 प्रतिशत) पैसा लगा हुआ है। पहले भारत में डिज्नी का कामकाज देखने वाले महेश समत के पास सबसे बड़ा शेयर (लगभग 49 प्रतिशत) है। समत कहते हैं, ‘हम आध्यात्मिक-पौराणिक बातों को अलग ढंग से दिखाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमारी कहानियां अलग ढंग से जानी और पहचानी जाएं।’ इसमें कोई शक नहीं कि एपिक चैनल का दर्शक वर्ग हर दिन बढ़ रहा है। टीवी रेटिंग और इस पर काम करने वाली संस्थाएं भी इस चैनल के प्रति आशान्वित हैं। विज्ञापन से ज्यादा एक-दूसरे से सुन कर दर्शक अपने सेटअप बॉक्स में इस चैनल के नंबर को खोजते हैं। ऐसी एक दर्शक प्रिया धर कहती हैं, ‘मुझे अपने परिचित से इस चैनल के बारे में पता चला। पहली बार देखा तो कुछ मजा नहीं आया। लेकिन जब सियासत में मुगलों की कहानी देखना शुरू की तो मैं इस चैनल की मुरीद हो गई। वैसे भी इतिहास पढ़ना थोड़ा उबाऊ लगता है। लेकिन यदि कोई मजेदार ढंग से कहानी समझा दे तो याद रह जाता है।’
एपिक इकलौता ऐसा चैनल है जिसने ट्वीटर पर अलार्म सेट कर दिया है। यानी चैनल के ट्विटर खाते पर एक विशेष ट्वीट के जरिये खुद को जोड़ लीजिए और ठीक दस बजे एक एप्लीकेशन के जरिये ट्वीटर आपको याद दिला देगा। दस बजे के शो के लिए 9.45 पर एपिक आपको दस्तक दे देगा ताकि आप एक महाकाव्य का हिस्सा बनने से न रह जाएं।