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चैनलों पर अभिव्यक्ति की आजादी यूं दबा रही सरकार

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के स्वरों को पर्याप्त जगह देना ही नहीं बल्कि इन स्वरों का संरक्षण देना भी स्वस्‍थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है‍‍। मगर ऐसा लगता है कि हमारी केंद्र सरकार असहमति की छोटी से छोटी आवाज भी नहीं सुनना चाहती। तभी तो उसने देश के तीन बड़े समाचार चैनलों को याकूब मेमन की फांसी के कवरेज पर नोटिस जारी कर दिया है।
चैनलों पर अभिव्यक्ति की आजादी यूं दबा रही सरकार

इन चैनलों को याकूब मेमन की फांसी के दिन सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के फैसले पर सवाल उठाने वाले लोगों को जगह देने के आरोप में नोटिस भेजा गया है और कहा है 15 दिन के अंदर सरकार के सवालों का जवाब दें कि आखिर उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए। समाचार चैनल आज तक, एबीपी न्यूज और एनडीटीवी 24×7 को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नोटिस जारी किया है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद पहली बार इस तरह का अतिवादी कदम उठाया गया है।  ब्रॉडकास्टर्स एडिटरर्स एसोसिएशन (बीईए) के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने आउटलुक से बातचीत में कहा कि वह सरकार के इस कदम से बेहद चिंतित हैं क्योंकि यह अभिव्यक्ति की मूलभूत स्वतंत्रता का उल्लंघन है। बीईए की ओर से आयोजित बैठक में इस नोटिस को लेकर आश्चर्य जताया गया। बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया कि बीईए इस मुद्दे को सरकार के समक्ष उठाएगी। बीईए ने केबल टेलीविजन नेटवर्क (संशोधन) नियम 2015 पर भी चिंता जताई जिसमें आतंकवाद निरोधक अभियानों में मीडिया कवरेज को अभियान खत्म होने तक किसी अधिकारी द्वारा समय-समय पर सूचना देने तक सीमित कर दिया गया है। 

 

एबीपी न्यूज से जुड़े सूत्रों ने सरकार से नोटिस मिलने की बात कबूल की है और कहा है कि प्रबंधन इस बात पर विचार कर रहा है कि नोटिस का क्या जवाब दिया जाए। इस बारे में कानूनी सलाह भी ली जा रही है। गौरतलब है कि चैनलों के ऊपर जिस सामग्री को दिखाने का आरोप लगाया गया है वह आम पत्रकारीय अधिकार से जुड़े मसले हैं। उदाहरण के लिए आज तक और एबीपी से पूछा गया है कि उन्होंने फांसी वाले दिन अंडरवर्ल्ड सरगना छोटा शकील का इंटरव्यू क्यूं प्रसारित किया। इस इंटरव्यू में शकील ने भारत की न्यायिक व्यवस्‍था पर सवाल उठाए थे। दूसरी ओर एनडीटीवी को तो याकूब के वकील के इंटरव्यू में सिर्फ यह बताने पर नोटिस थमा दिया गया है कि दुनिया के कितने देशों में फांसी की सजा समाप्त हो चुकी है। वैसे इन चैनलों का संपदकीय नजरिया न तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले और मृत्युदंड के स्पष्ट विरोध का था और न याकूब मेमन के समर्थन का। उन्होंने महज विपरीत नजरिये को चैनल पर जगह दी। फिर भी उन्हें सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा। हालांकि संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के मौलिक अ‌धिकार और विश्वमान्य मानव अधिकारों के अनुसार चैनलों का संपादकीय नजरिया सरकार से असहमति का भी रहता तो उन्हें इसका हक है।  

बताया जा रहा है कि इन चैनलों को केबल टीवी नेटवर्क रूल, 1994 के नियम 6 के सेक्शन (1डी), सेक्शन (1जी) और सेक्शन (1ई) के तहत नोटिस भेजे गए हैं। सेक्शन (1डी) के अनुसार केबल टीवी पर अश्लील, अपमानसूचक,  झूठे,  अधूरा सच दर्शाने वाले कार्यक्रम प्रसारित नहीं किए जा सकते। इसी प्रकार सेक्शन (1जी) केबल टीवी चैनलों को ऐसे किसी भी कार्यक्रम का प्रसारण करने से रोकता है जिसमें देश के राष्ट्रपति या न्यायपालिका की निष्ठा पर अंगुली उठाई गई हो। सेक्‍शन (1ई)ऐसे किसी कार्यक्रम के प्रसारण को प्रतिबंधित करता है जिसकी सामग्री कानून व्यवस्‍था के लिए खतरा हो या जिससे समाज में हिंसा को बढ़ावा मिले।

याकूब मेमन को 30 जुलाई को एक लंबी न्यायिक सुनवाई के बाद फांसी दी गई थी। इसके बाद पूरे देश में फांसी के औचित्य पर तो बहस शुरू हो ही गई, कई लोगों ने न्यायिक फैसले पर भी सवाल उठाए। कुछ नेताओं ने इस मामले में सरकार और न्यायपालिका की तेजी को भी कठघरे में खड़ा किया।

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