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भरतनाट्यम परंपरा भी और प्रयोग भी

भारतीय नृत्य शैलियों में भरतनाट्यम नृत्य का विशिष्ट स्थान है। अपने गठन, मुद्राओं और संरचना में इसका...
भरतनाट्यम परंपरा भी और प्रयोग भी

भारतीय नृत्य शैलियों में भरतनाट्यम नृत्य का विशिष्ट स्थान है। अपने गठन, मुद्राओं और संरचना में इसका एक अलग ही रंगरूप दिखता है। इसका शास्त्र और कलात्मक सौन्दर्य की छठा बहुत ही मनमोहक है।  अन्य नृत्य शैलियों की तरह भरतनाट्यम की परंपरा भी ईश्वर की भक्ति से जुड़ी रही है। इस नृत्य को एक बड़े रूपाकार में विकसित करने और निखार देने में कई में कई बड़े गुरुओं का उल्लेखनीय योगदान है। इस समय कई भरतनाट्यम गुरुओं के बीच एक उत्कृष्ट नृत्यागंना और गुरू के रूप में सुश्री सिन्धु मिश्रा का नाम दर्ज है। उन्होंने इस नृत्य की समृद्ध परंपरा से नई पीढ़ी के युवाओं को जोड़ने और पूरी निष्ठा और लगन से नृत्य सिखाकर उनकी प्रतिभा को निखारने में पुरे जोर से सराहनीय प्रयास किया नतीजतन उनसे सीखी कई युवा नृत्यांगनाए मंच पर अपनी आभा को प्रदर्शित कर रही है। उनमें युवा नृत्यांगना रिया गुप्ता है, जो बहुत ही प्रतिभावान कलाकार के रूप में उभरती दिख रही है। हाल ही कतचरल सोसायिटी अयाम द्वारा नई दिल्ली के एल टी जी सभागार में रिया के नृत्य कार्यक्रम की प्रस्तुति हुई।

गुरु सिन्धु मिश्रा द्वारा नृत्य में संरचित' शिव-शक्ति को प्रस्तुत करते ही उसने अपने चपल नृत्य और अभिनय से दर्शकों को मोह लिया। संकल्पना में शिव अलौकिक प्रेम और असीम शक्ति के प्रतीक हैं। एक सूत्र में बन्धे शिव-पार्वती का रूप ब्रह्मंडीय है अति विशाल है। दोनों की शक्ति में विनाश और उत्पत्ति का संयोग है उसके काल चक्र में पूरा ब्रह्मांड बन्धा हुआ है सिन्धु मिश्रा ने बौद्धिक स्तर पर उस जगह को तलाशने का प्रयास किया है जहां पर भरतनाट्‌यम की परंपरा में नयेपन को अंगीकार करने की संभावना बन सके इसे करने में और काफी हद तक उनका प्रयोग सार्थक भी रहा। काव्य रचना पर आधारित नृत्य संरचना में कर्नाटक और हिन्दुस्तानी संगीत को बड़ी सजगता और सरसता से जोड़ा गया है। प्रस्तुति में शिव और पार्वती की अवधारणा को तुलसी की रामचरित मानस की काव्य रचनाओ के माध्यम से बड़ी सजींदगी से उजारगर किया गया। उसे रिया ने बड़ी सूझबूझ से नृत्य और अभिनय के जरिए सुंदरता से प्रस्तुत किया। एक नृत्यांगना के रूप में मंच पर रिया की यह पहली नृत्य प्रस्तुति थी और उसने अपनी प्रतिमा का भरपूर परिचय दिया। उसने परंपरागत भरतनाट्‌यम नृत्य के चलन और बारीकियों को गहराई से सीखा है और इसे बखूबी से उसने अपने नृत्य में उतारा है। जीवन की तरह नृत्य भी निरंतर गतिशील है और नृत्य कलाकार डूबकर इस गतिशीलता में अपने को ढालते रहे और नृत्य के विकास के मार्ग को प्रशस्त करते रहें तो निश्चय ही श्रेष्ठ नृत्य कलाओं की विरासत सरक्षित रहेगी। रिया ने नृत्य का शुभारंभ गणेश कृति– “आनंद नरथना गणपतिम माये” को भक्तिभाव में डूबकर किया।

तुलसीदास की रामायण में बालखंड मे उद्धृत पार्वती प्रसंग की पद्म  में प्रस्तुति बहुत ही सरस और दर्शनीय थी। इसमें शिव के प्रेम में आसक्त पार्वती के तप और भक्ति की कथा सुन्दर का जो सुन्दर है वर्णन है उसकी मनोरम छवि रिया के अभिनय- नृत्य में निखरी। राग सहाना और आदि ताल में निबद्ध इस रचना का जीवत रूप गायक नितिन शर्मा के मधुर कंठ वाणी में बहुत ही प्रभावी रूप में उभरा। कीर्तनम की प्रस्तुति भी भक्ति भाव को जगाने वाली थी। आखिर में हिन्डोलम पर तिल्लना की लय और ताल में बन्धी प्रस्तुति में रिया का लयात्मकगति में नृत्य रंजक था। नृत्य को गरिमा प्रदान करने में कर्नाटक में जी एलन गोवन हिन्दुस्तानी संगीत में नितिन शर्मा,  तबला पर सचिन शर्मा,  मृद्गंम पर राममूर्ति केशवम और नटुवांगम पर सिन्धु मिश्रा की रसपूर्ण संगत बहुत असरदार थी।

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