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नृत्य में उभरे इन्द्रधनुषी रंग

भारतीय नृत्य का परिदृश्य बदलता रहा है। कई नृत्यांगनाए है जो नई रचनात्मकता और ऊर्जा से अपने नृत्य शैली...
नृत्य में उभरे इन्द्रधनुषी रंग

भारतीय नृत्य का परिदृश्य बदलता रहा है। कई नृत्यांगनाए है जो नई रचनात्मकता और ऊर्जा से अपने नृत्य शैली में अभिनव रच रही है। इसके रूप रंग को निखार- संवार रही है। उनमें एक नाम भरतनाट्टयम नृत्यांगना सुश्री प्रिया वेकंटरमन का निश्चित ही उल्लेखनीय है। उनके नृत्य और अभिनव की भावप्रवण मुखरता मुग्धकारी होती है। 

भरतनाट्टयम के प्रचार- प्रसार के महत्व काम को उन्होंने अपने हाथ मे लिया है। नई पीढी को भरतनाट्टयम से जोड़ने व प्रोत्साहित करने के लिए उन्होने नृत्य दीक्षा, संस्था की स्थापना की और बतौर गुरू छात्रों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। उनसे सीखी कई शिष्याओं में दर्शिता सामंत नृत्य में तेजी से उभरी हैं। हाल ही त्रिवेणी कला संगम के समागार में उसके नृत्य की मनोरम प्रस्तुति हुई। पारंपरिक पुष्पांजलि की लय- ताल में गठी प्रस्तुति के उपरांत दर्शिता ने भरतनाट्टयम के प्रमुख हिस्सा वरनम को प्रस्तुत किया।

पौराणिक कथा प्रसंगों पर आधारित वरनम में नृत्य और अभिनय का कलात्मक समन्वय है। इस वरनम में शिव के प्रेम में डूबी नायिका शिव से याचना करती है कि वे अपने असीम व्यक्तित्व और सौन्दर्य रूप को प्रकट करके उसे आनन्दित करें। इसीलिए लोक रक्षक शिव मैं सप्रेम और भक्ति से तुम्हारे दर्शन करने आई हूँ। इस कथा प्रसंग को दर्शिता ने बडे भावपूर्ण अभिनय और नृत्य से प्रस्तुत करने में अपनी प्रतिभा को बखूबी से दर्शाया। 

अगली महिसासुर मर्दनी की प्रस्तुति देवी दुर्गा के रौद्र और विराट रूप दर्शिता के नृत्य और अभिनय में उन्मुकता से मुखर हुआ। इस प्रस्तुति में अधर्म पर धर्म की विजय की व्याख्या उत्तेजक थी। संत कवि महाराजा स्वाति तिरूनाल ने अपनी गहरी रचनशीलता से शिव के रूप को सूक्ष्मता से उभारा है। तीनो लोक में सर्वव्यापी भगवान शिव के प्रति जनमानस की आस्था उनके अलौकिक असीम व्यक्तित्व का धार्मिक विमर्श के आधार पर विवेचन और ईश्वर के ध्यान योग पर सारगर्मित रचना स्वाति तिरूनाल ने रची है। भगवान शिव की अराधना के जरिए उनकी अलौकिकता का आध्यात्मिक भाव से अनुभव करवाने में प्रिया वेंकटरमन ने नृत्य में उत्कृष्ट संरचना की। उसे दर्शिता ने भक्ति भाव में तन्मयता से प्रस्तुत किया। राग का चयन रचना के भाव के अनुरूप था। जिस सरस भाव में गायन था उसी आधार पर नृत्यांगना ने नृत्य और अभिनय में सुन्दरता और प्रवाह में अभिव्यक्त किया।

कार्यक्रम के आखिर में ताल और लय में बधा तिल्लाना को भी लयात्मक गति में दर्शिता ने सूझबूझ से सही लीक पर प्रस्तुत किया। नृत्य प्रस्तुति को गरिमा प्रदान करने के गायन में वंकटेश्वरम कुप्पूस्वामी, मृदंग वादन पर आर केशवम वालियन वादन में राघवेन्द्र प्रसाद और मंजीरा व नटुवांगम पर गुरू प्रिया वेंकटरमन की संगत सरस और उत्साहवर्धक थी।

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