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ऐ जालंधर की हवाओ तुम वीजा की मोहताज नहीं

पाकिस्तानी सूफी गायक अदील खान बर्की जब भी हिंदुस्तान आते हैं एक तकलीफ के साथ यहां से जाते हैं। बंटवारे के वक्त बर्की के बुजुर्गों को जालंधर से लाहौर पड़ा था। उनके दादा और वालिद की तमन्ना थी कि आखिरी वक्त में एक दफा वह जालंधर जरूर जाएं लेकिन वीजा की दिक्कतों के चलते उन्हें यह नसीब न हो सका। ऐसे में अदील खान के दादा और वालिद के खाक-ए-सुपुर्द होने के बाद उन्होंने उनकी कब्र पर कत्बा लगवाया, जिसपर लिखा ‘ए जालंधर की हवाओ अगर कभी इस तरफ से गुजरो तो कुछ देर इस कब्र पर ठहर जाना, तुम नहीं जानती कि मरने वाला तुम्हें कितना याद करता है क्योंकि तुम बदनसीब इंसानों की तरह वीजा की मोहताज नहीं हो।’ इस दफा जब अदील खान हिंदुस्तान आए तो आउटलुक की विशेष संवाददाता ने उनसे विशेष बातचीत की-
ऐ जालंधर की हवाओ तुम वीजा की मोहताज नहीं

 

किन-किन की गायकी ने आपको प्रभावित किया?

कव्वाली में गुलाम फरीद साहब, नुसरत फतेह अली खां साहब, गजल में मेंहदी हसन, सूफी में पठान खान, प्ले बैक सिंगिंग में  मोहम्मद रफी, रोमांटिक गानों में किशोर का जवाब नहीं।

 

घराने से सीखी गायकी को आप क्या कहेंगे?

घरानों से सीखी गायकी के अलग फायदे हैं लेकिन कलाकार हमेशा अपनी ही मेहनत से मंजिल पाता है। मैंने उस्ताद हाफिज अली खान तलवंडी, मोहम्मद हुसैन खान और उस्ताद शराफत अली खान (बंदिश की गायकी), उस्ताद काले खान (ख्याल, ठुमरी, दादर) और जगजीत सिंह से गजल गायकी सीखी।

 

गजल आज अपने किस रूप में है?            

गजल यानी दिल से निकली आवाज। जदीद गायकी के आखिरी हीरे तो मेंहदी हसन और गुलाम अली ही थे। इनके बाद जो भी गजल गायक आए उन्होंने जदीद गजल को आसान गजल में बदल दिया।

 

किसी भारतीय से जुड़ी खास याद?

2002 में कनाडा में एक शो था। माधुरी दीक्षित को लाइव परफॉर्म करना था। उन्होंने मेरे गाने पर डांस करने से मना कर दिया। मैं बहुत मायूस हुआ। किसी तरह मैं और मेरे दोस्त माधुरी के मेकअप रूम में चले गए जहां वह मेकअप करवा रही थीं। मैंने उनसे गुजारिश की। उन्होंने बोला कुछ गाकर सुनाओ। वह मेकअप करवाती रहीं, मैं गाता रहा। मैंने कहा फैसला सुना दें, वह कहने लगीं गाते रहो फैसला आखिर में होगा। आखिर में उन्होंने कहा कि ठीक है, मैं डांस करूंगी। यह पहला मौका था जिसने मेरा हौसला खूब बढ़ाया।

 

हिंदुस्तान में आज उर्दू की हालत बहुत अच्छी नहीं है, क्या कहेंगे?

उर्दू तो लखनऊ और दिल्ली में ही फैली-फली है। आज बॉलीवुड के गाने उर्दू से अछूते नहीं। भारत में ब्रिटिश इमारतों के रख रखाव के लिए आज गोरे लोग फंड देते हैं। वह ऐसा कर सकते हैं तो हम अपनी भाषा को क्यों नहीं बचा सकते। उर्दू कोई मुसलमानों की भाषा नहीं है। दरअसल बंटवारे के वक्त यह बात किसी को समझ नहीं आई। आई होती तो शायद हुक्मरान उर्दू को भी बांट देते।

 

भारत-पाकिस्तान के खटास भरे संबंधों पर क्या कहेंगे?     

हम जैसे कलाकार जैसे ही माहौल अच्छा करते हैं, कोई न कोई शरारत कर देता है और सियासतदां हमारे बनाए मोहब्बत के पुल को हर बार उड़ा देते हैं। हम तो कलाकार हैं, मोहब्बत भरी कोशिशें करते रहेंगे। जीत हमारी ही होगी। लेकिन ऐसी हरकतों की वजह से अमन की कोशिशें कम नहीं होनी चाहिए। बस सेवाएं बंद नहीं होनी चाहिए, व्यापार बंद नहीं होना चाहिए। ऐसा करने से शरारत करने वालों को शह मिलेगी।

 

सुबूत और इशारे पाकिस्तान की तरफ रहते हैं?

दूध पवित्र है। मान लो कोई दस मन दूध में एक कतरा पेशाब का डाल दे तो उस दस मन दूध में से कोई एक कप भी नहीं पिएगा।

 

हमारे यहां के कुछ नेता हर किसी को पाकिस्तान भेजने पर आमादा हैं, क्या कहेंगे ?

हंसते हुए, स्वागत है सभी का। आ जाएं सभी, इसी बहाने वीजा की दिक्कतें खत्म हो जाएंगी।

 

आगे की क्या योजना है?

हो सकता है जल्द बॉलीवुड में प्ले बैक सिंगिग का मौका मिल जाए। मुलाकातें जारी हैं।  

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