गंगाजल की विशिष्टताओं को लेकर कई परिकल्पनाएं लंबे समय से मौजूद रही हैं लेकिन अभी तक कुछ भी निष्कर्ष के आधार पर नहीं कहा जा सका है। एक निर्णायक प्रयास के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने इस रहस्य को सुलझाने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिया है। इस कथित ब्रह्म द्रव्य का रहस्य वैज्ञानिक तरीके से सुलझाने के लिए कई संस्थानों के सहयोग वाला 150 करोड़ रूपए से ज्यादा का प्रयास जारी है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने वित्तीय मदद समेत सभी सहयोग इस अनुसंधान के लिए उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया है। इस अनुसंधान का उद्देश्य विभिन्न मौजूदा शोध और अध्ययनों के जरिए किए जाने वाले दावों को परखना है, जिनमें कहा जाता है कि गंगाजल में चिकित्सीय गुण हैं और यह विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है ताकि इसे मानव स्वास्थ्य के लिहाज से प्रयोग किया जा सके।
गंगा नदी इसके आसपास की 2500 किलोमीटर से अधिक की भूमि पर रहने वाले 30-40 करोड़ लोगों के लिए जीवन रेखा का काम करती है। फिर भी आज गंगा दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में से एक है। इसके जल में प्रदूषण का स्तर स्वीकार्य स्तर से हजारों गुना ज्यादा है। फिर भी श्रद्धालु गंगाजल में जहर के इस स्तर से अनभिज्ञ रहकर डुबकी लगाते रहते हैं।
गंगा जल के खास होने को लेकर कई परिकल्पनाएं पेश की जाती रही हैं। एेसा माना जाता है कि गंगा के किनारे उगने वाले चिकित्सीय पौधे विशेष गुण प्रदान करते हैं। इसके अलावा बैक्टीरिया को हटाने वाले मारक सूक्ष्मजीवों की मौजूदगी को भी एक कारण माना जाता है। गंगा को स्वच्छ रखने में मदद करने वाले कुछ विशेष रेडियोधर्मी तत्वों की मौजूदगी की भी बात कही जाती है। गंगा किनारे बजने वाले शंखों और घंटों से निकलने वाली तेज ध्वनियों का भी इसमें योगदान माना जाता है। इन सभी विचारों के बावजूद कभी कोई निष्कर्षात्मक साक्ष्य नहीं मिल पाया है।
पिछले सप्ताह नयी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में 200 से ज्यादा प्रमुख वैज्ञानिक गंगाजल के न सड़ने के गुणों पर विमर्श करने के लिए जुटे थे। इन लोगों में सिविल इंजीनियर, सूक्ष्म जीवविज्ञानी, वनस्पति विज्ञानी, विषाणु विज्ञानी, जैव-तकनीक विज्ञानी और यहां तक कि आरएसएस के सांस्कृतिक नेता भी मौजूद थे। ये सभी इस बात पर विचार कर रहे थे कि किस तरह से गंगा के सदियों से चले आ रहे रहस्य को सुलझाया जा सकता है।
अकबरनामा में गंगा के गुण का जिक्र
गंगा जल के शोधन गुणों पर विशेष तौर पर आधारित अध्ययनों और अनुसंधान के आधार पर गंगा को समझने वाले पर्यावरणविद कृष्णा गोपाल ने बैठक में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि गंगा नदी में बैक्टीरिया खत्म करने वाली क्रिया की मौजूदगी का पता बहुत पहले ही लग गया था। इसके लिए उन्होंने अकबरनामा और वर्ष 1896 में ब्रितानी जीवाणु विज्ञानी अर्नस्ट हैनबरी हांकिन की रिपोर्ट का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इस दावे की पुष्टि के लिए नया अनुसंधान किए जाने की जरूरत है।
गंगा के रहस्य की खोज के लिए 150 करोड़ की परियोजना
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने कहा कि इस दिशा में, 150 करोड़ रूपए का एक अध्ययन पहले ही नागपुर के नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट यानी एनईईआरआई द्वारा किया जा रहा है। इसके तहत अब तक गंगा जल एवं इसके तलछट के 150 से ज्यादा नमूने जुटाए जा चुके हैं ताकि इसके सूक्ष्म जैवीय गुणों का विश्लेषण किया जा सके। इस अध्ययन को पूरा होने में छह माह और लगेंगे।
उमा भारती ने कहा कि हर साल विभिन्न धार्मिक अवसरों पर करोड़ों लोगों के इस नदी में डुबकी लगाने के बावजूद नदी से कोई महामारी नहीं फैली। यह नदी के जल की किसी आत्मशोधन क्षमता का परिणाम रहा होगा, जिसने क्षय को रोका। उनका मानना है कि इस पवित्रा नदी में वास्तव में क्या हो रहा है, इसका पता एक विस्तृत अध्ययन के जरिए लगाया जा सकता है। गंगा नदी को इसके विशेष गुण प्रदान करने वाले संभावित रहस्यमयी एक्स फैक्टर को भारती ब्रह्म द्रव्य या दैवी द्रव्य की संज्ञा देती हैं।
गंगा शोध और हिंदुत्व का एजेंडा
इस नए कदम को सत्ताधारी राष्टीय जनतांत्रिक गठबंधन का एक नया कदम माना जा सकता है। राजग ने गंगा को स्वच्छ बनाने को अपने मूल एजेंडे में शामिल किया है। तो क्या यह ताकतवर दक्षिणपंथियों का हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक प्रयास है? संभवत: एेसा हो लेकिन जो उच्च स्तरीय वैज्ञानिक संस्थान इसमें शामिल हैं, उनका एेसे दबावों के वशीभूत हो जाना मुश्किल लगता है। इस विस्तृत अध्ययन में एम्स, नयीदिल्ली के अलावा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, नयी दिल्ली, आईआईटी कानपुर और रूड़की, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, नागपुर और नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ शामिल होंगे। इनमें से किसी को भी राजनीतिक दबाव के लिए नहीं जाना जाता।
गंगाजल के 16 साल पुराने नमूनों में भी आत्मशोधन के गुण
नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ के निदेशक चंद्र शेखर नौटियाल ने कहा कि गंगाजल के 16 साल पुराने नमूनों में भी आत्मशोधन के गुण मौजूद रहते हैं। उन्होंने कहा कि गंगाजल का इस्तेमाल लंबे समय से चिकित्सीय और अनुष्ठानात्मक उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है क्योंकि यह लंबे समय तक संग्रहित करके रखने के बावजूद सड़ता नहीं है।
एक दशक से ज्यादा समय तक गंगाजल का अध्ययन कर चुके नौटियाल का मानना है कि गंगाजल मृदु है और इसमें सल्फर की मात्राा अधिक है। उन्होंने कहा कि रोगजनक बैक्टीरिया के खिलाफ बैक्टीरिया नाशकों की मौजूदगी सिर्फ गंगाजल में ही पाई गई। एनईईआरआई के निदेशक सतीश वाटे इस प्रयास का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अधिकतर नदियों में कार्बनिक पदार्थ आम तौर पर किसी नदी में उपलब्ध आॅक्सीजन को नष्ट कर देते हैं और फिर पानी सड़ना शुरू हो जाता है।
(जाने-माने विज्ञान लेखक पल्लव बाग्ला का पीटीआई-भाषा के लिए लिखा गया साप्ताहिक स्तंभ )