चंद्रयान-एक से मिले आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर बर्फ की मौजूदगी पर मुहर लगाई है। बर्फ की यह मौजूदगी चंद्रमा के अंधेरे और सबसे ठंडे हिस्से में पाई गई है। भारत द्वारा चंद्रयान-एक दस साल पहले भेजा गया था।
सतह पर बर्फ की पर्याप्त मौजूदगी के बाद यह कहा जा सकता है कि भविष्य के शोध अभियानों में संसाधन के रुप में पानी तक पहुंच संभव होगी। इतना ही नहीं वहां रहने के लिए भी यह पर्याप्त होगा। इसके अलावा चंद्रमा की सतह के नीचे उपलब्धता के मुकाबले इसका उपयोग करना भी सरल होगा।
पीएनएएस जनरल में छपे एक शोध के अनुसार सतह पर बर्फ फैली हुई है और संभव है कि यह बहुत प्राचीन हो।
दक्षिणी ध्रुव पर जहां यह लूनर क्रेटर के पास अधिकतर बर्फ एकत्रित है जबकि उत्तरी ध्रुव अधिक बड़े इलाके में बिखरी है।
वैज्ञानिकों ने यह डेटा अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ‘मून मिनरोलॉजी मैपर’ यानि एम3 नामक उपकरण से लिया है जो भारतीय चंद्रयान पर लगया गया था। इस उपकरण से मिले आंकड़ों की तीन विशिष्ठ स्थितियों से यह ठोस निष्कर्ष निकाला है कि चंद्रमा पर बर्फ मौजूद है।
एम3 को खासतौर पर बर्फ की मौजूदगी पता लगाने के लिए ही लगाया गया था।
बर्फ की मौजूदगी अधिकर ध्रुवीय इलाकों में क्रेटर के पास छायादार भागों में मिली है। इन इलाकों में सबसे गर्म तापमान शून्य से नीचे 156 डिग्री सेल्सियस रहता है। चूंकि चंद्रमा की परिभ्रमण धुरी में परिवर्तन बहुत मामूली होता है, इसी वजह से इस भाग में सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता।
पिछले परीक्षणों ने अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरी ध्रुव पर बर्फ की मौजूदगी के बारे में बताया गया था। लेकिन यह निष्कर्ष भी अन्य क्रियायों के परीक्षण से निकलता था।
यह बर्फ कैसे वहां आई, इसके बारे में अधिक जानकारी और चंद्रमा के पर्यावरण को जानने में यह कैसे मददगार हो सकती है, ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो आने वाले समय में नासा के अभियानों की दिशा तय करने में मदद करेंगे।