अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मोंटाना के प्रोफेसर डेनियल रेसेनफेल्ड ने इस संबंध में विस्तृत अध्ययन किया है। वह नासा के प्रबंधन वाले कासिनी अनुसंधान दल के सदस्य हैं जो शनि ग्रह के बारे में अध्ययन करता है। कासिनी वर्ष 2004 से शनि से जुड़े आंकड़े जुटा रहा है। कासिनी पर लगा एक उपकरण ग्रह के मैग्नेटोस्फीयर को मापता है। मैग्नेटोस्फीयर अंतरिक्ष का वह क्षेत्र होता है जहां आवेशित कण उस ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र से नियंत्रित रहते हैं। आवेशित कणों को प्लाज्मा के तौर पर जाना जाता है।
इससे पहले कासिनी ने खोज की थी कि शनि के प्लाज्मा में जल आयन होते हैं। यह शनि के चंद्रमा एंस्लेडस से आते हैं। एंस्लेडस अपने येलोस्टोन जैसे गीजर से पानी की बौछारों को छोड़ता है और उसी से जल आयन आते हैं। यह जानते हुए कि जल के आयन अनिश्चित काल तक नहीं रह सकते तो वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया कि कैसे यह शनि के मैग्नेटोस्फीयर से बच कर निकल जाते हैं।
वैज्ञानिकों ने पाया कि प्लाज्मा ने मैग्नेटोस्फीयर से बाहर जाने के लिए एक स्थान पाया हुआ है जो कि एक पुनर्जुड़ाव बिंदु (रीकनेक्शन प्वाइंट) पर है। यह वह बिंदु होता है जहां पर चुंबकीय क्षेत्र एक वातावरण से अलग होता है और दूसरे वातावरण से जुड़ता है।
शनि के मामले में वैज्ञानिकों ने इन रीकनेक्शन प्वाइंट्स को ग्रह के पीछे पाया। यहां पर चुंबकीय क्षेत्र का पिछला भाग (मैग्नेटोटेल) सौर पवनों के चुंबकीय क्षेत्र से जुड़ता है। रेसेनफेल्ड ने इसको उस स्थिति से समझाया कि जब आप किसी यातायात चक्र में फंस जाते हैं तो आपके पास बाहर निकलने के कम मार्ग होते हैं। जब तक आपको बाहर निकलने का स्थान नहीं मिलता, तब तक आप उसी चक्र में घूमते रहते हैं। ठीक इसी तरह शनि के चारों ओर पाया जाने वाला प्लाज्मा भी चक्र में फंस जाता है।
इसे एक्सप्रेस वे से बाहर निकलने वाले बिंदुओं के तौर पर समझा जा सकता है। इस शोध से वैज्ञानिकों को बृहस्पति जैसे ग्रह से उनके पदार्थों के बाहर निकलने के बारे में अधिक जानकारी जुटाने में मदद मिलेगी। यह शोध नेचर फिजिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है।