इस वर्ष के लिए मानसून पूर्वानुमानों की घोषणा करते हुए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने कहा कि 94 प्रतिशत संभावना है कि देश में इस वर्ष सामान्य से लेकर सामान्य से ज्यादा बारिश होगी, जबकि कम बारिश होने की आशंका महज एक प्रतिशत है।
मानसून दीर्घावधिक औसत (एलपीए) 106 प्रतिशत रहेगा। इसमें गणना मॉडल में चूक के कारण पांच प्रतिशत कम या ज्यादा का फर्क आ सकता है। सामान्य मानसून एलपीए का 96-104 प्रतिशत होता है। 90 प्रतिशत से कम एलपीए को बहुत कम मानसून माना जाता है और 90-96 प्रतिशत एलपीए को सामान्य से कम मानसून माना जाता है। सामान्य से बेहतर मानसून एलपीए के 104-110 प्रतिशत के बीच होता है और 110 प्रतिशत से ज्यादा एलपीए को बहुत ज्यादा माना जाता है।
संवाददाताओं के एक सवाल के जवाब में राठौड़ ने कहा कि भयंकर सूखे की मार झेल रहे मराठवाड़ा और बुंदेलखंड में इस साल अच्छी बारिश होगी। उन्होंने कहा, इस वर्ष पूरे देश में मानसून का कमोबेश समान वितरण होगा। यह अच्छा वर्ष रहेगा। अच्छे मानसून में भी कुछ क्षेत्र ऐसे रहेंगे जैसे.... पूर्वोत्तर भारत जहां सामान्य से कुछ कम वर्षा होने की आशंका है। साथ ही प्रायद्वीप के दक्षिण-पूर्वी हिस्से जैसे तमिलनाडु और पास स्थित रायलसीमा जिलों में भी सामान्य से कुछ कम वर्षा हो सकती है।
राठौड़ ने कहा, हम मासिक रूप से भी अच्छी वर्षा की आशा कर रहे हैं, जिसके कारण मानसून के मध्य या बाद के हिस्से में भी दबाव का क्षेत्र बन सकता है।
मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डी.एस. पाई ने कहा कि अल नीनो प्रभाव कमजोर पड़ रहा है। इसके चलते ही पिछले वर्ष ना सिर्फ मानसून प्रभावित हुआ, बल्कि ठंड भी कम पड़ी। पाई ने कहा, पुराने आंकड़ों के विश्लेषण बताते हैं कि अल नीनो प्रभाव वाले वर्षों में 65 प्रतिशत मौकों पर पूरे देश में बारिश सामान्य से कम या बहुत कम हुई है। जबकि अल नीनो प्रभाव के बाद वाले वर्षों में 71 प्रतिशत मौकों पर मानसून सामान्य या सामान्य से बेहतर रहा है।
पाई ने कहा, मानसून मिशन कपल्ड क्लाईमेट मॉडल से मिला ताजा पूर्वानुमान दिखाता है कि अल नीनो प्रभाव मानसून के पहले भाग में सामान्य से कमजोर स्तर तक कम होने वाला है, और उसके बाद सामान्य स्थिति बने रहने की संभावना है। देश की जीडीपी में 15 प्रतिशत का योगदान देने वाली और देश की करीब 60 प्रतिशत जनता को रोजगार देने वाली कृषि मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है और कृषि भूमि का महज 40 प्रतिशत हिस्से में ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है।
खराब मानसून के कारण 2015-2016 फसल वर्ष (जुलाई से जून) को 10 राज्यों में सूखा घोषित किया गया और केंद्र ने किसानों की मदद के लिए करीब 10,000 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी है। वर्ष 2015 में मानसून में सामान्य से 14 प्रतिशत की कमी थी। सबसे ज्यादा उत्तर पश्चिमी भारत में 17 प्रतिशत कमी रही, मध्य भारत में 16 प्रतिशत, दक्षिणी प्रायद्वीप में 15 प्रतिशत और पूर्वी तथा पूर्वोत्तर भारत में आठ प्रतिशत की कमी रही।
पाई ने कहा कि मानसून के अंतिम पड़ाव पर (अगस्त-सितंबर में) ला नीना प्रभाव बनने की पूरी संभावना है। भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो अल नीनो प्रभाव हमेशा चिंता का विषय रहता है क्योंकि इससे दक्षिण-पश्चिमी मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जैसा कि 2009 और 2015 में हुआ। वहीं दूसरी ओर ला नीना देश के लिए अच्छा साबित होता है और मानसून में मददगार होता है।