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सुप्रीम कोर्ट का आदेश बिहार के वोटरों से उनका अधिकार छीने जाने से बचाएगा: वोटर लिस्ट विवाद पर कांग्रेस

कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को...
सुप्रीम कोर्ट का आदेश बिहार के वोटरों से उनका अधिकार छीने जाने से बचाएगा: वोटर लिस्ट विवाद पर कांग्रेस

कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय के आदेश से यह स्पष्ट हो गया है कि "किसी भी याचिकाकर्ता ने रोक लगाने की मांग नहीं की थी", और उम्मीद जताई कि यह फैसला बहुसंख्य मतदाताओं को मताधिकार से वंचित होने से बचाएगा।

उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को चुनाव आयोग से कहा कि वह बिहार में मतदाता सूची के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज माने। इस साल के अंत में बिहार में चुनाव होने हैं।

एसआईआर को एक "संवैधानिक आदेश" बताते हुए, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची ने चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलीलों पर विचार किया और चुनाव आयोग को 7 करोड़ से अधिक मतदाताओं वाले बिहार में यह प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दे दी।

कांग्रेस महासचिव (संचार प्रभारी) जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद, जो अभी आधिकारिक रूप से सामने आया है, चुनाव आयोग को अब बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण में ईपीआईसी, आधार कार्ड और राशन कार्ड को शामिल करना होगा। इससे अधिकांश मतदाताओं को मताधिकार से वंचित होने से बचाया जा सकेगा।"

उन्होंने कहा, "इसके अलावा, चुनाव आयोग द्वारा कोई स्थगन न दिए जाने के दावे का भी स्पष्ट रूप से पर्दाफाश हो गया है। आदेश के पृष्ठ 7 से स्पष्ट है कि कल किसी भी याचिकाकर्ता ने कोई स्थगन नहीं माँगा था। इस तरह जानबूझकर भ्रामक हेडलाइन प्रबंधन एक संवैधानिक प्राधिकारी को शोभा नहीं देता।"

रमेश पर पलटवार करते हुए भाजपा ने उन पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की गलत व्याख्या करने का आरोप लगाया।

भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर अपने पोस्ट में कहा, "सर्वोच्च न्यायालय की गलत व्याख्या करना बंद करें। न्यायालय ने किसी भी अतिरिक्त दस्तावेज को स्वीकार करने का आदेश नहीं दिया है - उसने केवल यह कहा है कि वह उन पर विचार कर सकता है। न्यायमूर्ति धूलिया ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत का चुनाव आयोग (ईसीआई) किसी भी दस्तावेज को बाहर करने के लिए वैध कारणों को दर्ज करने के लिए स्वतंत्र है। विवेकाधिकार ईसीआई के पास है।"

उन्होंने कहा, "अदालत की टिप्पणियों को जानबूझकर गलत तरीके से पेश करना खतरनाक है - आप पर अदालत की अवमानना का आरोप लगाया जा सकता है, क्योंकि आपने वह बात अदालत के हवाले से कही जो उसने कभी कही ही नहीं। राहुल गांधी से पूछिए, जिन्हें कुछ समय पहले इसी तरह के अपराध के लिए सज़ा भुगतनी पड़ी थी।"

रमेश ने अपने पोस्ट के साथ अदालत के आदेश के स्क्रीनशॉट भी टैग किए।

आदेश में कहा गया है, "चूंकि ये मामले 1 अगस्त, 2025 से पहले उपयुक्त न्यायालय के समक्ष आएंगे, जो कि मसौदा मतदाता सूची की अधिसूचना के लिए निर्धारित तिथि है, इसलिए अंतरिम रोक के आवेदनों पर कोई आदेश पारित करने का वर्तमान में कोई अवसर नहीं है, और याचिकाकर्ता किसी भी स्थिति में इस स्तर पर रोक लगाने के लिए दबाव नहीं डालते हैं।"

इसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग के जवाब के आधार पर याचिकाकर्ताओं को अगली सूचीबद्धता तिथि पर स्थगन के लिए अपनी याचिका पर जोर देने की स्वतंत्रता होगी।

लोकतांत्रिक देश में मतदान के अधिकार को एक महत्वपूर्ण अधिकार बताते हुए पीठ ने कहा, "हम किसी संवैधानिक संस्था को वह करने से नहीं रोक सकते जो उसे करना चाहिए। साथ ही, हम उन्हें वह भी नहीं करने देंगे जो उन्हें नहीं करना चाहिए।"

पीठ ने अपने आदेश में आगे कहा, "दोनों पक्षों को सुनने के बाद, हमारी राय है कि इस मामले में तीन प्रश्न शामिल हैं। ए, यह प्रक्रिया करने के लिए चुनाव आयोग की शक्तियां, बी, प्रक्रिया और जिस तरीके से यह प्रक्रिया की जा रही है, और सी, समय, जिसमें मसौदा मतदाता सूची तैयार करने, आपत्तियां मांगने और अंतिम मतदाता सूची बनाने आदि के लिए दिया गया समय शामिल है, जो इस तथ्य को देखते हुए बहुत कम है कि बिहार चुनाव नवंबर 2025 में होने वाले हैं।"

मामले की सुनवाई की आवश्यकता पर बल देते हुए पीठ ने अभियान को चुनौती देने वाली 10 से अधिक याचिकाओं को 28 जुलाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

इस बीच, चुनाव आयोग को एक सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया, जिसके एक सप्ताह बाद याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रत्युत्तर दाखिल किया जा सकेगा।

पीठ ने चुनाव आयोग के इस कथन को रिकार्ड में लिया कि एसआईआर के लिए जिन 11 दस्तावेजों पर विचार करना था, उनकी सूची संपूर्ण नहीं थी।

पीठ ने आदेश दिया, "अतः, हमारे विचार में, चूंकि यह सूची संपूर्ण नहीं है, इसलिए न्याय के हित में यह होगा कि चुनाव आयोग निम्नलिखित तीन दस्तावेजों, जैसे आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड, पर भी विचार करे।"

हालांकि, चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल तथा मनिंदर सिंह ने आदेश के इस हिस्से पर आपत्ति जताई।

न्यायमूर्ति धूलिया ने टिप्पणी की, "हम यह नहीं कह रहे हैं कि आपको ऐसा करना ही होगा। इस पर विचार करना आप पर निर्भर है। हम कह रहे हैं कि ऐसा ही लगता है। वे वास्तविक हैं। यदि आपके पास उन्हें खारिज करने का कोई उचित कारण है तो उन्हें खारिज कर दीजिए। लेकिन कारण भी बताइए।"

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