कोलिन टोडहंडर
मानव के रूम में, हमारा विकास कई सहस्राब्दियों में प्राकृतिक वातावरण के बीच हुआ है। हमने सीखा कि क्या खाएं और क्या नहीं। क्या और कैसे उगाएं। इसी के अनुसार, हमारा आहार विकसित हुआ। प्राणी के रूप में हमारा विकास धीरे-धीरे हुआ और मौसम, कीट, मिट्टी, पशु, पेड़, पौधे और बीजों से संबंध विकसित हुआ। लेकिन सिर्फ 60 साल में हरित क्रांति की विचारधार और पद्धतियों के परिणाम स्वरूप कृषि और खाद्य उत्पादन में भारी बदलाव आया।
हम आज जो खाते हैं, वह जेनेटिकली मॉडीफाइड (जीएम) है। हम अपनी खाद्य वस्तुएं कैसे उगाते हैं, उनके लिए क्या तरीका अपनाते हैं। आज, फसलों पर कई तरह के पेस्टीसाइड्स का छिड़काव होता है। हमारे घरों में उपलब्ध खाद्य वस्तुओं को पौष्टिकता घटाने वाले औद्योगिक स्तर पर प्रोसेस किया जाता है। इसमें रंग और स्वाद बढ़ाने वाले केमिकल और प्रिजरवेटिव मिलाए जाते हैं। कई अध्ययनों में बीमारियां बढ़ने का संबंध पेस्टीसाइड्स से होने का तथ्य सामने आया है। अमेरिका में नेशनल हेल्थ फेडरेशन की कैट कैरोल हमारे अंगों और न्यूरो सिस्टम की सक्रियता में अहम भूमिका निभाने वाले ह्यूमन गट बैक्टीरिया पर प्रभाव पड़ने को लेकर चिंतित हैं। गट माइक्रोबायम्स यानी गट बैक्टीरियां हमारे शरीर में रहने वाले जीवाणुओं के जीनोम हैं। इंसान के शरीर में 2.720 किलो बैक्टीरिया हो सकते हैं, जिन्हें कैरोल मानवीय मिट्टी कहती हैं।
ताकतवर कंपनियां एग्रोकेमिकल और फूड एडेटिव्स के जरिये हमारी इस मिट्टी और इसके जरिये मानव शरीर पर हमला कर रही हैं। कुछ मात्रा में गट बैक्टीरिया हमारे शरीर में जीवन भर स्थिर रहते हैं लेकिन काफी बैक्टीरिया हम जो खाते हैं, उससे बदल जाते हैं। जैसे ही हम स्थानीय स्तर पर उगने वाली, पारंपरिक रूप से प्रोसेस किए हुए और स्वस्थ मिट्टी में उगने वाली खाद्य वस्तुएं खाना बंद करते हैं और केमिकल के जरिये उगने वाली और प्रोसेस की हुई वस्तुएं खाना शुरू करते हैं, हमारा माइक्रोबायोलॉजिकल गहरा संपर्क टूट जाता है। हम मोनसेंटो (अब बायर), नेस्ले और कारगिल जैसी कंपनियों के कॉरपोरेट केमिकल, बीज और ग्लोबल फूड चेन में खो जाते हैं। यह धीमी गति से नहीं होता है, हमारे पास केमिकल के हमले से बचने के लिए कोई मौका नहीं होता है।
गट बैक्टीरिया हमारे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है। कई अहम न्यूरोट्रांसमीटर गट बैक्टीरिया में मौजूद होते हैं। प्रमुख अंगों की कार्यशीलता पर असर पड़ने के अलावा ये ट्रांसमीटर हमारी मनःस्थिति और सोच को भी प्रभावित करते हैं। एक बार हम गट बैक्टीरिया को बायोसाइट्स का कॉकटेल खिलाना शुरू करते हैं, हम खुद को तमाम तरह की बीमारियों और दिक्कतों को न्यौता देने लगते हैं। 2014 में ट्रांसलेशनल सायक्रिएट्री जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी में ठोस सबूत मिले हैं कि गट बैक्टीरिया से दिमाग पर सीधा असर पड़ता है। गट माइक्रोपॉयम की संरचना में बदलाव से न्यूरोलॉजिकल और सायक्रिएटिक स्थितियों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। इससे ऑटिज्म, असहनीय दर्द और पार्किंसन की बीमारियों को बढ़ावा मिलता है।
विज्ञान लेखक और न्यूरोबायोलॉटिस्ट मो कोस्टैंडी ने गट बैक्टीरिया की अहमियत और इसके संतुलन पर काफी अध्ययन किया है। किशोरावस्था में, मस्तिष्क अत्यधिक तंत्रकीय ढलनशीलता की लंबी अवधि से गुजरता है, इस दौरान दिमाग के अगले और ऊपरी हिस्से में बड़े संख्या में सूत्र युग्मन (सिनैप्सेज) समाप्त हो जाते हैं और मस्तिष्क के इस हिस्से में मायलिनेशन का प्रवाह होता है। इस प्रक्रिया से मस्तिष्ट के अगले हिस्से में सर्किट में बदलाव आता है और मस्तिष्ट के दूसरे हिस्सों के साथ सीधा संपर्क बढ़ जाता है। मायलिनेशन दिमाग की सामान्य और रोजमर्रा की सक्रियता के लिए महत्वपूर्ण होता है। मायलिन के जरिये नर्व फायबर की प्रवाह गति सौ गुना तक बढ़ा देता है, इससे दिमाग में विफलता बेहद खतरनाक हो सकती है।
हाल के अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि गट माइक्रोब्स परिपक्वता और अवांछित सिनेप्सेज को समाप्त करने वाले माइक्रोग्लिया, इम्यून सेल की सक्रियता को नियंत्रित करते हैं। गट माइक्रोब्स की संरचना में आयु संबंधी बदलावों से किशोरावस्था में मायलिनेशन और सिनेप्टिक प्रूनिंग नियंत्रित होता है। इस तरह यह ज्ञान संबंधी विकास में योगदान करता है। इसमें असामान्य बदलाव से बच्चों और किशोरों के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
बाल विकास से संबंधित न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के अतिरिक्त ब्रिटेन की पर्यावरणविद डॉ. रोजमेरी मैसन कहती हैं कि मोटापा गट बैक्टीरिया में कम बैक्टीरियल गुणता के कारण होता है। वह कुछ स्टडीज का हवाला देती है और समस्याओं के लिए एग्रोकेमिकल को जिम्मेदार बताती हैं। दुनिया में काफी इस्तेमाल होने वाले हर्बीसाइड यानी खरपतवारनाशी और कोबाल्ट, जिंक, मेंगनीज, कैल्शियम, मोलिब्डेनम और सल्फेट जैसे आवश्यक मिनरल के किलेटर जैसे ग्लायफोसेट का जरा भी इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। मैसन कहती हैं कि इनसे फायदेमंद गट बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं और क्लोस्ट्रीडियम डिफीसाइल जैसे जहरीले बैक्टीरिया को विकसित होने देते हैं। वह कहती हैं कि हमारे भोजन में ग्लायफोसेट के सूक्ष्म तत्वों से दो प्रमुख समस्याएं होती हैं। इससे हमारे भोजन की पौष्टिकता खासकर मिनरल और अमीनो-एसिड की कमी पैदा करते हैं और विषाक्तता बढ़ाते हैं। भारत के लोगों में एग्रोकेमिकल्स का अनियमित कॉकटेल लगातार बढ़ रहा है जिससे गट बैक्टीरिया प्रभावित हो रहे हैं।
पूरी दुनिया में एग्री-फूड क्षेत्र की कंपनियां पॉलिसी एजेंडा तय करने लगी हैं। ये कंपनियां और उनके हितों के लिए काम करने वाले संगठन और समूहों ने नियामक एजेंसियों और कई सरकारों पर कब्जा कर लिया है। एजेंसियां और सरकारें इनके साथ मिलीभगत करके उनके हितों के लिए काम कर रही हैं। यूएस एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के पूर्व अधिकारी से व्हिसिल ब्लोअर बने एवागेलोज वैलियानाटोस ने बायोसाइड्स के रेगुलेशन में हुए फ्रॉड और लैबोरेटरीज में व्याप्त भ्रष्टाचार का खुलासा किया है। ये लैबोरेटरीज ही जन स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए केमिकल्स की जांच करती हैं। शुरुआती टेस्ट में ही फेल होने वाले कई केमिकल सब्सेटेंस भी बाजार में बिक रहे हैं। कनाडा के वैज्ञानिक शिव चौपड़ा ने भी खुलासा किया है कि कई खतरनाक उत्पादों को बाजार में बेचने और फूड चेन में शामिल होने की अनुमति कैसे दी गई। उद्योग और सरकारी अधिकारियों के बीच मिलीभगत होने का यह खुला नमूना है।
अगर हमें उचित पोषण आवश्यकताएं सुनिश्चित करनी है और उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करनी है तो हमें फसलों के बचाव के छिकड़े जाने वाले और दुकानों की शेल्फ में सजे प्रोसेस्ड फूड में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स पर ध्यान देना होगा। 2017 में भोजन के अधिकार पर यूएन की विशेष प्रतिवेदक हिलाल एल्वर की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि पेस्टीसाइड्स निर्माता संभावित नुकसान को लेकर लगातार इन्कार करते रहे। उन्होंने आक्रामक, अनैतिक और कारोबारी तिकड़मों और सरकारों में जोरदार लॉबिंग का भी रास्ता अख्तियार किया। जिससे पेस्टीसाइड्स पर दुनियाभर में प्रतिबंध लगाने और सुधारों के प्रयास बाधित हो गए। रिपोर्ट का कहना है कि पेस्टीसाइड्स से पर्यावरण, मानव स्वास्थाय और समाज पर अत्यंत बुरा असर पड़ रहा है। रिपोर्ट चेतावनी देती है कि सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक भोजन और कृषि उत्पादन की ओर दुनिया को ले जाने के लिए यह महत्वपूर्ण पल है।
(लेखक विकास, फूड, कृषि और पर्यावरण क्षेत्र के अनुसंधानकर्ता हैं)